अक्षरविश्व सामाजिक सरोकार
मां के पास किटी और पिता के पास बिजनेस का समय हैं, बच्चें के लिए नहीं
किशोर और युवा घर के बाहर दोस्तों के बीच तलाश रहे है खुशियां..
उज्जैन।जबलपुर के बरगी विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस विधायक के किशोर पुत्र द्वारा आत्महत्या किए जाने से युवाओं और किशोरों की मानसिक स्थिति को लेकर समाज में चिंता है। आखिर क्या वजह है कि किशोर और युवा मौत को गले लगा रहे हैं। अक्षरविश्व ने अपने सामाजिक सरोकार के दायित्व को आगे बढ़ाते हुए शहर के विशेषज्ञों से खास चर्चा कर यह जानने का प्रयास किया कि किशोर और युवाओं में जान देने की प्रवृत्ति आखिर क्यों लगातार बढ़ रही है।
कारण भले ही सामने नहीं आ रहे है लेकिन खुदकुशी के बढ़ते मामलों ने समाज के सामने कई सवाल खड़े कर दिए है। कांग्रेस विधायक के किशोर पुत्र द्वारा आत्महत्या किए जाने के बाद फिर से इस बात की चर्चा शुरू हो गई है। आखिर ऐसी क्या वजह है कि कम उम्र में ही बच्चें खुदकुशी कर रहे हैं। जानकारों और विशेषज्ञों की माने तो किशोर और युवाओं में आत्म-हत्या की प्रवृत्ति संयुक्त परिवारों के विघटन और माता-पिता द्वारा बच्चों की अनदेखी है। मां के पास किटी का समय हैं, बेटी के लिए नहीं हैं। पिता बिजनेस और धन कमाने में बिजी हैं।
यह भी सवाल
आखिर क्या कारण है कि आत्महत्या जिसे नैतिक और कानूनी दृष्टिकोण से अपराध की संज्ञा दी जाती है वह खुदकुशी करने वालों को दु:ख का अंत क्यों लगती है। ऐसे में सभी का दायित्व बन जाता है कि वह खुदकुशी की प्रवृत्ति को रोकने की दिशा में काम करें।
घरों में सही राह बताने वाला कोई नहीं
भारतीय जैन संगठना की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य और गल्र्स-इमपावरमेंट और कपल इमपावरमेंट काउंसलर साशा जैन के अनुसार खुदकुशी सिर्फ एक इंसान की जान नहीं लेती बल्कि उससे जुड़े परिवार के अन्य लोग जीते जी मर जाते है। किशोर और युवाओं में आत्म-हत्या करने वालों का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा हैं। पेरेंट्स के पास अपने बच्चों के लिए समय नहीं है और बच्चें है कि अपने माता-पिता की महत्वाकांक्षा, प्रतिस्पर्धा, दिखावे और अहंकार के बोझ तले दबे हुए है। किशोर और युवाओं को घर में खुशियां और अभिभावकों से समय ही नहीं मिल रहा हैं। ऐसे में वे अपनी खुशियां दोस्तों के बीच घर के बाहर तलाश रहे है। जहां उन्हें घरों में सही राह बताने वाला कोई नहीं है। इसके कारण युवाओं में मानसिक तनाव भी बढ़ रहे है।
नकारात्मकता हावी हो रही है
पेरेंटिंग कोच हर्षिता धनवानी के मुताबिक युवाओं में आत्महत्या के मामले बढ़े हैं। युवाओं को कॅरियर की चिंता या असफलता और परिवार की अनदेखी आत्महत्या करने के लिए विवश कर रही है। युवा किसी भी परिस्थिति का सामना करने को तैयार नहीं है। पेरेंट्स के साथ-साथ किशोर और युवाओं ने स्वयं की महात्वाकांक्षा बढा ली है।
युवाओं में किसी भी काम के लिए भी ना कहने और प्रवृति बढ़ गई। वे ना सुनाना भी नहीं चाहते है। नकारात्मकाता हावी हो रही है। संघर्ष तो जैसे करना ही नहीं चाहते है। वे कुछ नया सकारात्मक एडवेंचर करने की बजाए,स्मोकिंग,ड्रिंक,गाड़ी तेज चालने,सोशल मीडिया में व्यस्त होकर एडवेंचर को शो कर रहे है। यह सब घातक है। बच्चों को डांटने की जगह, उन्हें सामान्य तरीके से समझाएं और उनकी गलती का अहसास कराएं।
ना प्रॉब्लम शेयर, ना सॉल्युशन मिल रहा
विक्रम विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त आचार्य प्रो.नागेश शिंदे के अनुसार बच्चें अपने अभिभावकों की अनदेखी का खामियाजा भुगत रहे हैं। परिवार छोटे होने से न प्रॉब्लम शेयर हो रही है और न सॉल्युशन मिल रहा है। दिखावे और कॉम्पिटिशन की होड़ में माता-पिता अपने बच्चों को संस्कार, संस्कृति, पंरपराओं और नैतिकता से दूर कर रहे हैं। समाज भी अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड रहा हैं। बच्चा घर में जो चाहता हैं वह मिल नहीं रहा। घर के बिगडे माहौल में वह बाहर समान सोच-विचार वालें दोस्तों के बीच खुशियां और परेशानियों का हल तलाश रहा हैं। इसे पाने में नाकामयाब हैं। यहीं वजह हैं कि किशोर और युवा जरा से आवेश में आकर आत्मघाती कदम उठा रहे हैं। माता-पिता अपने बच्चों को समय और साथ दें। मां-बाप समय-समय पर बच्चों की काउंसलिंग करें।