कहा राजनीति में बढ़ रही महिलाओं की भागीदारी
उज्जैन। अक्षरविश्व अकादमी के प्रशिक्षु पत्रकारों से रूबरू होते हुए कांग्रेस नेत्री एवं पूर्व पार्षद माया त्रिवेदी ने कहा कि आज समय की मांग है कि राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़े…और यह हो भी रहा है। प्रियंका गांधी द्वारा उत्तर प्रदेश में महिलाओं को विस चुनाव के दौरान कुल सीटों का 40 प्रतिशत देना इस बात का सबूत है। उन्होंने कहा कि आज राजनीतिज्ञों से जनता सुचिता, सहिष्णुता और इमानदारी की अपेक्षा करते हैं। महिला राजनीतिज्ञों को लेकर जनता की राय इन मामलों में अच्छी है। अब समय आ गया है कि महिलाएं घरों से निकलें और गृहस्थी की जवाबदारी के साथ समाज निर्माण में भी सहभागी बनें।
श्रीमती त्रिवेदी ने कहा कि महिलाओं को राजनीति में लाने से एक बड़ा फायदा यह मिलेगा कि राजनीतिज्ञों पर जो भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं, वे कम होंगे। चुनावों में धन बल एवं बाहुबल कम होगा तथा गुंडागर्दी के आधार पर वोट डलवाने एवं डालने की प्रवृत्ति पर रोक लगेगी। महिलाओं के साथ जिस प्रकार के अत्याचार बढ़े हैं, उन पर रोक लगेगी। महिलाएं यदि राजनीति में आती हैं तो यह तय है कि व्यवस्थाओं में तेजी से सुधार होगा। अनर्गल हस्तक्षेप कम होंगे तथा सरकारी कामकाजों में पारदर्शिता आएगी। उन्होंने दावा किया कि आज भी महिलाओं पर भ्रष्ट्राचार, अनेतिकता और गुंडागर्दी जैसे आरोप नहीं लगते। छिटपुट मामले आते भी हैं तो वे समाज के बीच निरंक है। इसीलिए महिलाओं को समाज सुधार के लिए ही, राजनीति में रुचि रखना चाहिए और आगे बढऩा चाहिए।
प्रशिक्षु पत्रकार वंशिका, सक्सेना, नमन मेहता, पंकज ने प्रश्न किए। इनके प्रश्नों के उत्तर में माया त्रिवेदी ने कहा कि राजनीति का मतलब राजधर्म को निभाना है। न कि अपने और अपने हितेषियों को विभिन्न लाभ पहुंचाकर उन्हें मजबूत करना। यदि महिलाएं राजनीति में आएंगी तो मानकर चलिए कि वे समाज को भी परिवार के रूप में देखते हुए उसके कल्याण के लिए काम करेंगी। इस प्रश्न पर कि महिलाओं को राजनीति में आने पर असुरक्षा महसूस होती है, ऐसे में परिवार ही उन्हें नहीं आने देता? इसका क्या हल है? उन्होंने कहा कि सिर पर पल्लू लेना अदब में आता है। राजनीति या समाज कार्य करनेवाली युवतियों, महिलाओं को सबसे पहले स्वयं पर विजय हांसिल करना होगी। यदि हम गलत होते हैं तो गलत दिशा में जाते हैं। हम सही हैं तो सामने वाले को भी बता देते हैं कि उसे सही रहना है।
पुरुषों के बीच रहकर काम करने में असहजता तब आती है जब हमारे कांसेप्ट क्लियर नहीं होते हैं। जब हम अपनी जगह मजबूती से खड़ी रहेंगी तो हमारे सामने गलत लोग टिक नहीं पाएंगे। इसके लिए युवतियों, महिलाओं को अपने आप को तैयार करना होगा। उन्होंने उदाहरण दिया कि वे भी गृहणि बनकर ही अपने ससुराल आई। एक समय ऐसा आया जब पति ने राजनीति में आने को कहा। अपने ससुर से पूछा तो उन्होंने हामी भर दी। यह बताता है कि उन्होंने बहू के रूप में घर में रहते हुए कुछ देखा होगा, तभी हां भरी। इसलिए कहना चाहूंगी कि हम अपने को अंदर से कमजोर नहीं मानेंगी तो ही समाजसेवा और राजनीति में कुछ अच्छा दे सकेंगी। प्रारंभ में अतिथि परिचय एवं स्वागत अकादेमी निदेशक डॉ.श्रुति जैन ने किया। विभाग प्रमुख ललित ज्वेल ने संचालन किया।