मनोचिकित्सक बोले मानसिक स्वास्थ्य की अनदेखी कर रहे लोग
जिले में जनवरी से अब तक 200 दिनों में 221 लोगों ने कर ली आत्महत्या
अक्षरविश्व न्यूज. उज्जैन:वर्तमान दौर में भावनात्मक असंतुलन, मानसिक तनाव, पारिवारिक कलह और आर्थिक समस्याओं से जूझ रहा समाज का एक बड़ा तबका अवसाद में है। जीवन की कठिन समस्याओं के लिए अपने आप को दोषी मानकर हर दिन लोग खुद को सजा ए मौत दे रहे हैं आत्महत्या कर रहे हैं।
जीवन का ऐसा अंत किसी भी मायने में ठीक नहीं है। मनोचिकित्सकों की दृष्टि में आत्महत्या के विचार आना केवल मानसिक रोग है। समाजशास्त्री मानते हैं कि एकाकी परिवार की वजह से अकेलापन बढ़ रहा है वहीं संतों का कहना है कि लोग आधुनिकता की अंधीदौड़ में अध्यात्म से दूर हो गए हैं। कहीं ना कहीं आत्महत्या के पीछे ये तीनों ही कारण हैं।
उज्जैन जिला अस्पताल में जनवरी से जुलाई तक 200 दिनों में 450 शवों के पोस्टमॉर्टम हुए हैं। इनमें से 221 लोगों की मौत का कारण आत्महत्या है। इसके बाद सड़क दुर्घटना या अन्य कारण से लोगों की मौत हुई। मतलब हर दिन एक या दो लोगों ने फांसी लगाकर, जहर खाकर या ट्रेन के सामने कूदकर सुसाइड कर लिया।
हाल ही की घटनाओं पर एक नजर….
1. हाट बाजार में मसाला बेचने वाले संजय पिता बद्रीलाल उम्र 35 साल ने रविवार रात फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। मृतक की पत्नी और तीन बच्चें हैं। पुलिस के मुताबिक आर्थिक समस्याओं को लेकर संजय ने सुसाइड किया।
2. इंदौर रोड बायपास की तिरूपति ड्रीम्स कॉलोनी मे रहने वाले मनीष पिता रमेशचंद्र उम्र 46 वर्ष ने शनिवार रात जहर खाकर आत्महत्या कर ली। संजय कोर्ट में बाबू की नौकरी में था। उसके पत्नी अपने दो बच्चों के साथ मायके में थी। पारिवारिक विवाद के चलते घटना होने की बात सामने आई।
3. पिछले दिनों नागदा उज्जैन रेल लाइन पर नागदा के ग्राम पारदी के रहने वाले 18 वर्षीय पूजा और 21 वर्षीय सुनील ने ट्रेन के सामने कूदकर आत्महत्या कर ली। घटना का कारण प्रेम प्रसंग में उठाया गया कदम बताया जा रहा है लेकिन स्पष्ट नहीं हुआ है कि दोनों ने आत्महत्या क्यों की।
भारत में संयुक्त परिवार खत्म होकर एकाकी परिवारों का चलन हो गया है। एकाकी परिवार में रहने वाले बच्चे और युवा अपने करीबी रिश्तों से दूर होकर अकेलापन महसूस करते हैं। इसके अलावा आधुनिक जीवनशैली की अंधी दौड़ में आपसी रिश्तों में प्रेम, आदर और अपनापन खत्म हो रहा है। यही सब अवसाद का कारण है और तनाव इतना बढ़ रहा कि लोग आत्महत्या जैसा कदम उठा रहे हैं।-प्रदीप कुमार गुप्ता, प्राध्यापक समाजशास्त्र
लोग धर्म और अध्यात्म से दूर हो रहे हैं। आधुनिक जीवनशैली के चक्रव्यूह में अपने जीवन को दिशाहीन कर रहे हैं। 84 लाख यौनियों के बाद मनुष्य जीवन मिलता है। यदि कोई आत्महत्या करता है तो उसे इहलोक और परलोक कहीं भी जगह नहीं मिलती और मृत्यु के बाद भी उसे कष्टों से मुक्ति नहीं मिलती।-संत अवधेशपुरी जी महाराज
मानसिक स्वास्थ्य की अनदेखी
व्यक्ति आत्महत्या जैसा कदम तत्क्षण नहीं उठाता। मन में कईं बार जीवन की कठिनाइयों को खत्म करने के लिए आत्महत्या का विचार आता है। फिर एक दिन वह विचारों में ठान लेता है और आत्महत्या करता है। मन में आत्महत्या जैसा विचार आना ही मनोरोग है। लोग मानसिक स्वास्थ्य की अनदेखी कर रहे हैं। अपनी या अपनों की मनोदशा को लोग समझ नहीं पा रहे हैं। मनोरोग का उपचार नहीं करवा रहे। यदि समय पर विशेषज्ञ चिकित्सक से परामर्श ले तो आत्महत्या जैसे मामलों पर नियंत्रण किया जा सकता है।-डॉ. विनित अग्रवाल, मनोचिकित्सक