Wednesday, November 29, 2023
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उज्ज्वला योजना… लाभ लेने में हितग्राहियों की रूचि कम…

80 से 85 प्रतिशत परिवारों में फिर फूंका जा रहा चूल्हा, सिलेंडर लेने में निरंतरता नहीं

उज्ज्वला योजना… लाभ लेने में हितग्राहियों की रूचि कम…

अक्षरविश्व न्यूज. उज्जैन:ग्रामीण और गरीब महिलाओं को धुएं से छुटकारा दिलाने के लिए केंद्र सरकार ने 2016 में जिस उज्ज्वला योजना की शुरुआत की थी, अब उनके घरों की छतों से फिर धुएं के गुबार दिखने लगे हैं। योजना में उज्जैन जिले में 1 लाख 30 हजार 960 गैस कनेक्शन दिए जा चुके हैं, इसमें से करीब 26 हजार से अधिक हितग्राही ऐसे हैं, जो दोबारा गैस सिलेंडर भरवाने ही नहीं पहुंचे, वहीं 50 प्रतिशत ऐसे उपभोक्ता हैं, जिनकी सिलेंडर लेने में निरंतरता नहीं है। ऐसे में ज्यादातर लोगों की योजना का लाभ लेने में रूचि नहीं है।

जिले की अधिकृत गैस एजेंसियों से जुड़े सूत्रों की मानें तो अधिकृत तौर पर यह पुख्ता नहीं है कि कितने हितग्राही उज्ज्वला योजना में शामिल होने के बाद भी इसका लाभ नहीं ले रहे हैं। लेकिन इस योजना के तहत लाभान्वित होने वाले परिवारों में से 80 से 85 प्रतिशत परिवार फिर से चूल्हा फूंक रहे हैं।

इसका कारण बिना सब्सिडी वाले सिलेंडर के ऊंचे दाम और ग्रामीण इलाकों में गैस सिलेंडर्स की अपेक्षाकृत कम उपलब्धता को बताया जा रहा है। ग्रामीण इलाकों में हालात और भी खराब हैं। उज्जैन जिले में उज्जवला योजना के 1 लाख 30 हजार 960 कनेक्शन दिए जा चुके हैं, लेकिन ज्यादातर लोग दोबारा टंकी भरवाने नहीं पहुंचे।

शुरुआती 6 सिलेंडरों पर सब्सिडी नहीं…

कनेक्शन के बावजूद टंकी नहीं भराने को लेकर उपभोक्ताओं का तर्क है कि शुरुआती 6 सिलेंडरों पर सब्सिडी नहीं मिलना भी रहा है। पूरी तरह मुफ्त लगने वाली इस योजना में सिर्फ खाली टंकी की कीमत शामिल नहीं है, बल्कि गरीब परिवारों को यह कनेक्शन 1600 से 2000 तक के ऋण पर दिए गए हैं।

ऋण की भरपाई कनेक्शन धारकों को बिना सब्सिडी वाले सिलेंडर से चुकाना है। गैस कनेक्शन के एवज में चूल्हे और भरी हुई टंकी के पैसे सब्सिडी के रूप में नहीं, बल्कि ऋण के रूप में दिए गए। इसके एवज में शर्त यह है कि जब तक ऋण वसूल नहीं हो जाता, तब तक बिना सब्सिडी वाले सिलेंडर खरीदना होंगे। एलपीजी की कीमतों में बढ़ोतरी के चलते गैस चूल्हे की कीमत मिलाकर ऋण के रूप में दी गई यह राशि दो हजार तक पहुंचने लगी थी।

बढ़ती कीमत भी उपभोक्ताओं की दूरी का कारण

हितग्राहियों के मुताबिक योजना में शामिल होने वाले ज्यादातर गरीब परिवार हैं। मजदूरी कर पेट पालने वाले इस परिवार के लिए यह कभी संभव नहीं हो सका कि गैस टंकी दोबारा रीफिलिंग करा लें। महंगे बिना सब्सिडी वाले सिलेंडर रीफिल कराना इन गरीब परिवारों के बस की बात नहीं है। जिन्हें सब्सिडी की पात्रता है, वह उपभोक्ता भी कतराने लगे हैं। पहले उपभोक्ताओं को सब्सिडी वाली कीमत ही अदा करनी पड़ती थी। सब्सिडी की राशि सीधे कंपनियों के खाते में चली जाती थी। अब उपभोक्ताओं को टंकी की पूरी राशि एकमुश्त देनी होती है। सब्सिडी खाते में आती है। ग्रामीण क्षेत्रों में कमजोर बैंकिंग सुविधाओं के चलते भी ग्रामीणों को सब्सिडी का यह तरीका रास नहीं आ रहा।

शिविर लगाकर बांटे थे कनेक्शन

प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना को 1 मई, 2016 में लांच किया गया था, जिसके तहत गरीब महिलाओं के मिट्टी के चूल्हे से आजादी देने के लिए फ्री गैस कनेक्शन देने का प्रावधान था। सरकार ने बीपीएल महिलाओं को 3 साल में गैस कनेक्शन को मुहैया कराने का लक्ष्य रखा था। इसके लिए जगह-जगह शिविर लगाने के साथ ही गैस एजेंसी संचालको ने बीपीएल सूची के आधार पर घर-घर सर्वे कर आवेदन प्राप्त किए थे।

आंकड़े बता रहे उज्जवला की हकीकत

178796 केवायसी फॉर्म भरे

133479 आवेदन स्वीकृत

130960 कनेक्शन जारी

26000 दोबारा सिलेंडर रीफिल नहीं

74000  रीफिल में निरंतरता नहीं

शिविर लगाकर बांटे थे कनेक्शन

प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना को 1 मई, 2016 में लांच किया गया था, जिसके तहत गरीब महिलाओं के मिट्टी के चूल्हे से आजादी देने के लिए फ्री गैस कनेक्शन देने का प्रावधान था। सरकार ने बीपीएल महिलाओं को 3 साल में गैस कनेक्शन को मुहैया कराने का लक्ष्य रखा था। इसके लिए जगह-जगह शिविर लगाने के साथ ही गैस एजेंसी संचालको ने बीपीएल सूची के आधार पर घर-घर सर्वे कर आवेदन प्राप्त किए थे।

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