देवयज्ञ करके आर्य समाज में मनाया उत्तरायण पर्व
उज्जैन। संपूर्ण विश्व में मकर संक्रांति अलग-अलग नामों एवं परंपराओं के साथ मनाई जाती है। यह सूर्य की उपासना का पर्व है। हमको गति करता हुआ सूर्य दिखता है, परंतु वास्तव में पृथ्वी गति करती है उत्तरायण के बाद सूर्य की जो किरणे तिरछी आ रही थी वह सीधी होने लगती है। हमारा पूरा जीवन सूर्य की रोशनी से प्रभावित होता है। वर्ष में प्रतिमाह संक्रांति होती हैं, किन्तु अन्य 11 संक्रांतियों में सूर्य की स्थिति में बड़ा परिवर्तन नहीं होता है।
उक्त विचार जीवाजी वेधशाला के अधीक्षक खगोल शास्त्री डॉ. राजेंद्र प्रकाश गुप्त ने मकर संक्रांति पर्व के अवसर पर आर्य समाज मंदिर उज्जैन में व्यक्त किए। डोंगला वेधशाला के प्रभारी घनश्याम रतनानी ने कहा कि काल गणना के संदर्भ में विश्व के वैज्ञानिकों में अनेक मतभेद है हमारे ऋषि-मुनियों ने सृष्टि की आयु 4 अरब वर्ष बताई है। इसमें से एक अरब 96 करोड़ 8 लाख 53 हजार 122 वर्ष बीत चुके हैं। तिथि वार नक्षत्र की अवधारणा भी हमारे ऋषि-मुनियों ने सूर्य और चंद्रमा के आधार पर दी है। इसके पूर्व धर्माचार्य मुकेश आर्य द्वारा विशेष आहुतियों से देव यज्ञ संपन्न करवाया गया।