एक ही व्यक्ति को बार-बार मौका देने से ‘बोर’ हुए कार्यकर्ता

एक ही व्यक्ति को बार-बार मौका देने से ‘बोर’ हुए कार्यकर्ता

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रोकस के ‘राज’ से ‘ऐश’ का अवसर…

जिला चिकित्सालय में रोगी कल्याण समिति यानि ‘रोकस’ में दो अशासकीय सदस्यों को मनोनीत कर दिया गया हैं। वैसे तो ‘रोकस’ की कल्पना और स्थापना रोगियों के ‘कल्याण’, स्वास्थ्य और अस्पताल के ‘विकास’ के लिए की गई थी,लेकिन उज्जैन की बात करें तो ऐसा सिर्फ ‘दस्तावेजों’ तक सीमित हैं। ‘हकीकत’ कुछ और ही कहती हैं।

रोकस के लक्ष्य,उद्देश्य बहुत बड़े और लम्बे हैं पर गाहे-बगाहे इससे जुड़कर अपनी स्वार्थपूर्ति करने वाले भी कम नहीं हैं। सभी जिलों में रोकस का अस्तित्व हैं। दशकों पहले इसका गठन हुआ।

उज्जैन के संदर्भ मे रोकस की बीते 10-15 सालों की बात की जाए तो सुविधा/बड़ी सौगात/ उपलब्धियों के नाम पर कुछ भी नहीं हैं। डेढ़ दशक मे कुछ ऐसे भी हैं जो ‘रोकस’ के माध्यम से अपने इकॉनमी बेस को मजबूत कर व्हाइट कॉलर कैडर में शामिल हो गए।

यह अलग है की रोकस से ‘मनी पॉवर’ हासिल करने वाले की पहचान जिला चिकित्सालय में कुछ साल पहले तक एक अघोषित ‘वार्ड बॉय’ के तौर पर रही..।

किस्मत चमकी और एक वरिष्ठ जनप्रतिनिधि का आशीर्वाद पाकर रोकस के मैदान में ‘दांवपेंच’ दिखाने लगे। ‘रोकस’ में लगातार पार्टी की ओर से एक ही शख्स को बार-बार मौका देने से पार्टी के लोग ‘बोर’ हो चुके हैं और ‘दबे स्वरों’ मे ‘अप्रसन्नता’ भी जाहिर कर रहे है। मामला ‘अनुशासन’ का हैं,तो खुलकर कोई बोल नहीं रहा हैं। बहरहाल जितने ‘मुंह’ उतनी बातें हैं।

इनमें से एक बात ‘इलेक्शन टॉनिक’ की हैं। भाई साहब की तमन्ना जिला चिकित्सालय से निकल कर नगर ‘राज’ में ‘ऐश’ करने की थी। अवसर भी मिला और निकल पडे जिला चिकित्सालय में ‘इलेक्शन टॉनिक’ के लिए…।

‘टॉनिक’ के लिए सभी पर ‘दबाव-प्रभाव’ बनाया…मदद और सहयोग का वादा भी किया। कई ने ‘इलेक्शन टॉनिक’ दिया,किसी ने अपनी मजबूरी बताकर इनकार कर दिया..। ‘टॉनिक’ मिलने के बाद भी ‘भारी भरकम’ प्रतिस्पर्धी से ‘ईवीएम’ में मात खा गए…..।

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