धर्मसभा में मुनिश्री सुप्रभसागरजी के प्रवचन
अक्षरविश्व न्यूज. उज्जैन ज्येष्ठ वही है जिसकी सोच श्रेष्ठ है, कुछ प्राप्त करना है तो विनय समर्पण श्रद्धा की जरूरत है। सीख वही सकता है जिसकी सोच बड़ी है। पंचमकाल में कोई निर्दोष होता ही नहीं है। दोष के भी गुण रूप पुरूषार्थ पूर्वक बदले जा सकते हैं। गुण दोष संगति से परिवर्तित देखे जाते हैं। सम्यग्दृष्टि 77 गुण से युक्त और 44 दोष रहित होता है। एक बार मिथ्यात्व के सेवन से एक लाख वेश्याओं के सेवन का दोष लगता है।
यह उद्गार मुनिश्री सुप्रभसागरजी ने ऋषिनगर दि. जैन मंदिर में वर्षायोग के दौरान आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किये। मीडिया प्रभारी प्रदीप झांझरी ने बताया कि मुनिश्री ससंघ के सानिध्य में श्री इंद्रध्वज महामंडल विधान का आयोजन 23 जुलाई से प्रारंभ होगा। सकल जैन समाज द्वारा किया जाने वाला आयोजन 1 अगस्त तक चलेगा। जिसके प्रमुख पात्रों का चयन 16 जुलाई को होगा। इस मौके पर कैलाश जैन पूर्व प्राधिकरण अध्यक्ष, शांति कासलीवाल, प्रमोद जैन, नरेन्द्र डोसी, दिनेश गोधा, कमल मोदी, अशोक जैन, आरसी जैन, जिनेन्द्र पंडित आदि मौजूद रहे।