50′ अखबारी कागज का ही उत्पादन होता है देश में हमारी जरूरत का
नई दिल्ली। अखबारी कागज की कीमत लगातार बढ़ रही है। पिछले दो साल में ही कागज की कीमत तीन गुना तक बढ़ गई है। कागज का उत्पादन लगातार घट रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध का असर भी कागज के आयात पर पड़ा है और सप्लाई बाधित हुई है।
दुनियाभर के अखबार कागज़ के संकट का सामना कर रहे हैं। जहां एक ओर अखबारी कागज के दामों में बेतहाशा वृद्धि हुई है, वहीं दुनियाभर में इसकी उपलब्धता की बहुत ज्यादा कमी से अखबार निकालना और चुनौतीपूर्ण हो गया है। कागज़ का उत्पादन घटा है, सप्लाई कमजोर हुई है। ऐसे में इसके दाम ऑलटाइम हाई यानी सर्वोच्च स्तर पर हैं। भारत अपनी जरूरत का करीब 50 प्रतिशत अखबारी कागज आयात करता है। आयातित अखबारी कागज की कीमत दिसंबर 2020 तक 380 से 400 अमेरिकी डॉलर प्रति मीट्रिक टन थी, वह अब 1050 से 1100 अमेरिकी डॉलर प्रति मीट्रिक टन हो गई है। यानी दामों में 175त्न से ज्यादा की वृद्धि।
कोरोना काल में अखबारों की विज्ञापनों से होने वाला रेवेन्यू भी कमजोर हुआ है…
अख़बारी कागज के दामों में वृद्धि के 5 प्रमुख कारण
1. भारत जरूरत का करीब 50 ‘ कागज रूस, कनाडा और यूरोप से आयात करता है। रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से सप्लाई बाधित हो गई।
2. कनाडा में कोविड वैक्सीनेशन अनिवार्य किए जाने की वजह से ट्रक ड्राइवर्स की हड़ताल हो गई। इसके चलते सप्लाई थम गई है।
3. ऑनलाइन शॉपिंग बढऩे से ब्राउन पेपर की डिमांड बढ़ गई है। पेपर मिल ब्राउन पेपर का उत्पादन ज्यादा कर रही हैं। अखबारी कागज का उत्पादन घट गया है। 2017 में जहां दुनिया में 2.38 करोड़ टन अखबारी कागज का उत्पादन होता था, अब यह 50’ घटकर 1.36 करोड़ टन रह गया है।
4. महामारी में रद्दी का संकलन भी घटा, जो अखबारी कागज के लिए मुख्य कच्चा माल है। कभी 10 से 12 रुपए किलो बिकने वाली रद्दी 35 से 40 रुपए प्रति किलो बिक रही है।
5. जुलाई 2020 में चीन ने वेस्टेज इम्पोर्ट पर बैन लगा दिया। चीनी मिलों को कच्चे माल की किल्लत हुई। चीन ऊंची दरों पर कागज मंगाने लगा। भारत ने भी चीन को निर्यात किया और देश में कागज का संकट खड़ा हो गया।