‘टैक्स दो, सुविधा लो,
निगम का खजाना नगर के भरोसे..!
शैलेष व्यास\उज्जैन :नगर निगम के बजट की तैयारियां शुरू हो गई हैं। वर्तमान बोर्ड का यह पहला बजट है। सभी की निगाहें ‘सिटी बजट’ पर हैं। इसके लिए नगर निगम उन गणमान्यजनों के ‘मन को टटोल’ रही हैं, जो व्यवस्थाओं में ‘हस्तक्षेप’ करने का माद्दा रखते हैं। निगम ने दो दिन पहले तीन सत्र में अलग-अलग परिचर्चा का आयोजन कर सभी से फीडबैक लिया गया।
विषय था ‘उज्जैन विकास एवं बजट।, इसका उद्देश्य यही था कि शहर का विकास कैसे हो और नगर निगम की आय कैसे बढ़े। ससम्मान आमंत्रितों के विचारों और सुझावों को खुले मन से सुना और समझा गया।
इसका सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्ष तो कमिश्नर के उस आह्वान से निकाला जा सकता हैं, जिसमें उन्होंने निकायों को लेकर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के सर्वेक्षण के साथ भारत सरकार के आत्मनिर्भर अभियान हवाला देते हुए बातों-बातों में कहा कि निकायों को चलाने के लिए आय के नए स्रोतों को खोजने के साथ सुविधा उपभोग के एवज में ‘टैक्स’ के रूप में शुल्क अदा करना होगा।
योजनाएं तो कई हैं पर उन्हें नागरिकों के सहयोग से अमल में लाया जा सकता हैं। कमिश्नर ने निगम की राजस्व वसूली और काम की लागत राशि के अंतर को इशारे-इशारे में समझाते हुए कहा कि ‘शहर की जलप्रदाय व्यवस्था पर सालाना खर्च 25 करोड़ होता हैं और वसूली 10 करोड़ भी नहीं होती। ‘निकायों का उद्देश्य लाभ अर्जित करना नहीं हैं, लेकिन कम से कम खर्च की पूर्ति तो होना ही चाहिए। इसके लिए शहर को आगे आना होगा।
बहरहाल निकायों में अधोसंरचना विकास और सौंदर्यीकरण, सड़क, सीवेज, जलप्रदाय, स्ट्रीट लाईट के कामों के लिए अब और अधिक फंड की आवश्यकता है। निकायों को अपनी मौजूदा आय बढ़ाने की जरूरत है। कैसे निकायों की आय बढ़ाई जाए। कैसे उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है। जिस तरह स्वच्छता के आधार पर शहरों की रैंकिंग की जाती है, उसी तर्ज पर अब मप्र के नगरीय निकायों में प्राप्त राजस्व वसूली के आधार पर ग्रेडिंग तय होगी। निकायों को स्थानीय स्तर पर प्राप्त आय से ही अपना खर्च चलाना होगा।
दरअसल प्रदेश के नगरीय निकाय खुद का खर्च भी मुश्किल से निकाल पा रहे हैं। कुछ दिन पहले नगरीय निकायों की स्थिति को लेकर भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी चिंता जताई। आरबीआई का मानना है कि नगर निकायों को अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत करने की जरूरत है जिसके लिए उन्हें चाहिए कि केंद्र और राज्य सरकारों से मिलने वाले अनुदान के अलावा अपने राजस्व के लिए मजबूत साधन जुटाए जाएं।
नगर निकायों के पास अपने राजस्व के लिए कोई ठोस तरीका नहीं है। यदि संपत्तिकर, ठोस अपशिष्ट प्रभार, जलकर समेत अन्य की 100 प्रतिशत वसूली हो जाए, तो निकायों को कर्ज/अनुदान पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। रिपोर्ट में राजस्व को जुटाने के लिए कई तरीके भी बताए हैं जैसे सभी ‘कर’ की शत-प्रतिशत वसूली और ‘यूटिलिटी टैक्स’। नगर निगम उज्जैन की तैयारी इसी दिशा में हैं। यानि ‘टैक्स दो-सुविधा लो!’