Wednesday, October 4, 2023
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पर्यावरण दिवस पर विशेष, उज्जैन जिले में वन की स्थिति खराब

पर्यावरण दिवस पर विशेष, उज्जैन जिले में वन की स्थिति खराब

जिले में जंगल का दायरा 42 वर्ग किमी का बचा, 25 वर्षों में नहीं मिली जमीन…

अक्षरविश्व न्यूज. उज्जैन 25 सालों में जिले के वन क्षेत्र में मात्र 67 हेक्टेयर जमीन का इजाफा हो पाया है। इसके विपरित शहरी क्षेत्र सीमा में वृद्धि हुई है। जिले का कुल क्षेत्रफल 6 हजार 91 वर्ग किलोमीटर है। इसमें से उज्जैन शहर 92.68 वर्ग किलोमीटर तक फैल गया है। इसके मुकाबले वन क्षेत्र के लिए सिर्फ 42 वर्ग किलोमीटर की जमीन ही बची है।

बढ़ते शहरीकरण से जंगलों का दायरा सिमटता जा रहा है। उज्जैन जिले में स्थिति चिंताजनक है। वन विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक पिछले करीब 3 दशक से जिस तरह जिले में शहरीकरण बढ़ा है, उसके मुकाबले वन क्षेत्र की जमीन में कोई खास इजाफा नहीं हुआ है।

उज्जैन जिले के कुल क्षेत्रफल 6 हजार 91 वर्ग किलोमीटर में से वन विभाग के पास जंगल के लिए जमीन का दायरा 42 वर्ग किलोमीटर का ही है। उज्जैन शहर की ही बात की जाए तो यहां अब तेजी से शहरी क्षेत्र का फैलाव हो रहा है।पिछले एक दशक में तेजी से नई कॉलोनियां विकसित होती जा रही है, इसके चलते अब अकेले उज्जैन शहर का फैलाव ही 92.68 वर्ग किलोमीटर तक हो गया है।

इसके मुकाबले पूरे जिले में वनों के लिए जमीन का दायरा मात्र 42 वर्ग किलोमीटर का है जो आधे से भी कम है। पूरे जिले के क्षेत्रफल और वनों के लिए आरक्षित इस जमीन का आंकलन किया जाए तो यह कुल क्षेत्रफल का एक प्रतिशत भी नहीं हैं।

वन के लिए दो बार जमीन मिली

वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार पिछले 25 सालों में उज्जैन जिले में विभाग की मांग पर शासन से दो बार ही जमीन मिली है। इसमें साल 2003-04 में सिंहस्थ के पूर्व त्रिवेणी के पास 2 हेक्टेयर जमीन शासन द्वारा वन विभाग को हस्तांतरित की गई थी। इसके लगभग 12 साल बाद वर्ष 2016 में खाचरौद तहसील के दिवेल गांव में चंबल नदी के किनारे विभाग को 65 हेक्टेयर जमीन सौंपी गई थी। कुल मिलाकर पिछले 25 सालों में वन विभाग को वनों के लिए सिर्फ 67 हेक्टेयर जमीन ही मिल पाई है। इसे मिलाकर पूरे जिले में वन क्षेत्र का दायरा 42 वर्ग किलोमीटर का हो पाया है

नहीं है वाइल्ड लाइफ सेंचूरी

वन विभाग ने करीब 5 साल पहले शहर से आठ किमी दूर नौलखी बीड में वाइल्ड लाइफ सेंचूरी की तर्ज पर इको टूरिज्म पार्क विकसित करने के लिए 28 लाख रु. खर्च किए थे। 55 हेक्टेयर में जमीन पर वाइल्ड लाइफ सेंचूरी के साथ एडवेंचर पार्क बनाने का दावा किया था, लेकिन रख-रखाव और ठीक से संचालन के अभाव में नौलखी बीड उपेक्षित हो गया है। यहां ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे का दावा किया गया था।

वन विभाग का दावा था कि इको टूरिज्म पार्क में विभिन्न पक्षियों के बीच बंजी जंपिग, मंकी, बोटिंग से लोग रोमांचित हो उठेंगे। नौलखी बीड यूं तो प्राकृतिक पेड़, पौधे, तालाब आदि से सराबोर है और इसे आमजन को प्रकृति से जोडऩे के लिए इसे पिकनिक स्पॉट के तौर पर विकसित करने का लक्ष्य था। फिलहाल वहां ऐसा कुछ नहीं है। पार्क में रोमांच बढ़ाने के लिए करीब 1 किमी क्षेत्र में भूलभूलैया तैयार की गई थी,जो बहुत ही खराब स्थिति में है। पार्क में तालाब भी बनाया, लेकिन इसमें न मछली और ना ही बत्तखों के झुंड। तालाब में बोटिंग शुरू किए जाने की योजना थी। इस पर अमल ही नहीें किया गया। पार्क में फूलदार पौधों के अते-पते ही नहीं है।

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