पार्ट-2 : भारत के भविष्य की नस्ल को चौपट कर रहे बड़े कोचिंग संस्थान….
प्रवेश के साथ दे देते हैं 100 प्रतिशत प्रेक्टिकल मार्क्स दिलवाने की गारंटी
अक्षरविश्व न्यूज. उज्जैन:शहर में कतिपय बड़े शिक्षा माफियाओं द्वारा अपने संस्थान में दो वर्ष तक पढ़ाई करने का ठेका लेकर कतिपय निजी स्कूलों में रेग्युलर प्रवेश दिलवाने का धंधा तेजी से फेल रहा है। हालात यह है कि ऐसे स्कूल संचालकों द्वारा प्रवेश के साथ गारंटी दी जाती है कि उनके पाल्य को 100 प्रतिशत प्रेक्टिकल माक्र्स मिलेंगे वहीं उपस्थिति 75 प्रतिशत से अधिक रहेगी। वे जब चाहें स्कूल दिखावे के लिए आ सकते हैं? नहीं आए तो भी चलेगा…..?
संभाग का मुख्यालय तथा जिला मुख्यालय होने तमगा लगानेवाले उज्जैन शहर में एक जिला शिक्षा विभाग है। यह विभाग लम्बे समय से सुसुप्त अवस्था में है। यहां पदस्थ अधिकारी शासन स्तर पर आनेवाली डाक को भेजने तथा सभी को खुश रखने के काम में लगे हुए है। इनके पास जनहित की कोई भी शिकायत पहुंचे। पहले वे यह देखते हैं कि उनका कितना लाभ या हानि है? इसके बाद वे मन बनाते हैं कि कार्रवाई करें या नहीं? बहुत अधिक कुरेदने पर यूनिवर्सल वाक्य दोहरा देते हैं- राजनीतिक दबाव बहुत अधिक है। यह कार्रवाई तो हम कर ही नहीं सकते…..।
यही कारण है कि शहर में शिक्षा माफिया चौतरफा पैर पसार रहा है और जिला शिक्षा विभाग कुंभकर्णी नींद में सोया हुआ है। यह कहना हमारा नहीं पालकों का है,जो कहीं न कहीं शिक्षा माफिया के द्वारा ठगाए जा रहे हैं। वे अपनी पीड़ा को व्यक्त करते हुए आरोप लगाते हैं कि शिक्षा माफिया इतना अधिक सिर उठा लेगा,कल्पना करना भी मुश्किल है।
बच्चों के सामने स्वयं को कर रहे ठगा महसूस
इस प्रतिनिधि से चर्चा में कुछ पालकों ने अपनी पीढ़ा व्यक्त की। उक्त पालकों के नाम हमारे पास है,उनके इस आग्रह पर कि उनके बच्चे की पढ़ाई पर असर न गिरे,हम प्रकाशित नहीं कर रहे हैं। ऐसे पालकों -बेटा 11वीं कक्षा में है। उसके स्कूल में बड़े शिक्षा संस्थान वाले गए थे ज्ञान की बात बताने। ज्ञान कितना दिया पता नहीं लेकिन यह ज्ञान दे दिया कि उनके संस्थान में 2 वर्ष तक पढ़ाई करें। निजी स्कूल में नियमित विद्यार्थी के रूप में प्रवेश मिल जाएगा। इसके बाद स्कूल मत जाना,हमारे यहां सुबह से शाम तक पढऩा।
दोनों कक्षाओं में अच्छा रिजल्ट बनेगा। प्रेक्टिकल माक्र्स भी अच्छे मिलेंगे। प्रतियोगिता परीक्षा में चयन हो ही जाएगा। बस,उस दिन से वह रट्टा लगाए बैठा है कि संबंधित शिक्षा संस्थान में प्रवेश दिलवाओ। जबकि फिस लाखो रूपए है। हम कैसे इंतजाम करें।
वह तो इतना ही कहता है-मैरे सभी दोस्त जा रहे हैं वहां? उक्त पालक अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि उनके बच्चों के मोबाइल नम्बर ज्ञान दान के समय ले लिए गए और अब फोन करके पूछताछ की जाती है। उन्होने आरोप लगाया कि हालात ऐसे कर दिए कि कई बच्चों ने प्रवेश ले लिया और निजी स्कूल में फिस जमा करके डमी स्टूडेंट भी बन गए। स्कूलवालों और ऐसे संस्थानों के खिलाफ जिला शिक्षा विभाग द्वारा कार्रवाई करना चाहिए। ताकि इस व्यवसाय में भ्रमित करके धंधा करने का प्रचलन समाप्त हो जाए।
इस संबंध में जिला शिक्षाधिकारी आनंद शर्मा से चर्चा की गई तो उन्होने कहाकि उनकी पत्नि का स्वास्थ्य ठीक नहीं है। वे फ्री होकर चर्चा करेंगे।