Monday, December 4, 2023
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प्रायवेट स्कूलों ने पालकों को भेजना शुरू किया चिंहित दुकानों पर…

प्रायवेट स्कूलों ने पालकों को भेजना शुरू किया चिंहित दुकानों पर…

तय फार्मेट वाले गणवेश और पुस्तक-कापी की खरीदी के लिए

अक्षरविश्व न्यूज. उज्जैन:जुलाई माह के प्रारंभ से ही स्कूलों में बच्चों की हलचल बढ़ गई है। कक्षाओं में पढ़ाई का सिलिसिला भी चल पड़ा है। इस बीच एक बार फिर जिला शिक्षा विभाग की अनदेखी के कारण कतिपय प्रायवेट स्कूल संचालकों ने मनमानी प्रारंभ कर दी है। पालकों पर दबाव बनाकर चिंहित दुकानों पर भेजा जा रहा है। ताकि वहीं से तय फार्मेट वाले गणवेश, पुस्तक, कापी वे खरीद लें। पालक परेशान हैं कि वे विरोध कैसे करें? बच्चे को वर्षभर स्कूल में पढ़ाना जो है।

शहर में स्थित कतिपय प्रायवेट स्कूलों में जहां अपने बच्चों को प्रवेश दिलाने के लिए पालकों के बीच एक छिपी हुई जंग छिड़ी हुई है वहीं स्कूल संचालकों द्वारा इसका सीधा लाभ अपने द्वारा कथित रूप से अधिकृत दुकानों पर पालकों को भेजकर तय फार्मेट वाला गणवेश एवं पुस्तक, कापी खरीदा जा रहा है।

स्कूल संचालकों द्वारा ऐसा करके छिपा हुआ मुनाफा कमाने के आरोप पालक लगा रहे हैं लेकिन सीधे तोर पर कोई भी शिकायत लेकर न तो कलेक्टर के पास पहुंच रहा है और न ही जिला शिक्षा विभाग के पास। पालक केवल आक्रोश की अभिव्यक्ति देकर जैसा कहा जा रहा है, वैसा कर रहा है।

शहर के कतिपय स्कूलों में प्रवेश दिलवाने वाले एक दर्जन पालकों की प्रतिक्रिया अक्षरविश्व ने ली। इन पालकों ने अक्षरविश्व को नामजद उल्लेख करते हुए जानकारी दी। दो प्रतिक्रिया हम पाठकों तक पहुंचा रहे हंै। पालकों ने आरोप लगाया कि-

उनके बच्चे को वे सीबीएसई स्कूल में प्रवेश दिलवाने गए। वहां कहा गया कि एडमिशन तो हो गया लेकिन गणवेश एवं कापी, किताबें खरीदने के लिए फलां दुकान पर चले जाएं। वहीं से लेना है। कापी, किताबें लेकर कक्षा शिक्षक को बताएं। साथ ही बिल बताकर नाम भी दर्ज करवाएं। तर्क दिया गया कि बहुत से दुकानदार गलत किताब दे देते हैं। कापी भी गलत दे देते हैं। ऐसे में बच्चा परेशान होता है। कक्षा में एकरूपता नहीं रहती है।

एक पालक ने प्रदेश के शिक्षा विभाग द्वारा संचालित स्कूल पर टिप्पणी की कि उन्हे कहा गया कि फलां दुकान पर ही जाएं। वहां गणवेश पर स्कूल का मोनो भी लगाया जाएगा,ताकि गणवेश की प्रामाणिकता रहे। आप अपने हिसाब से गणवेश मत बनवा लेना वरना दोबारा खर्च करना होगा।

इसी प्रकार कापी और किताबों को खरीदने के लिए तय दुकान का नाम बताया। जब वहां पहुंचे तो किताब पर दुकानदार की सील लगी थी। अर्थात यदि अन्य जगह से खरीद लें तो स्कूल वालों को पता चल जाएगा कि तय दुकान से नहीं खरीदी गई है। इसी प्रकार कापी की संख्या, साइज का बंडल उन्हें दिया गया। जो राशि मांगी, वही देना पड़ी। भाव-मोल तो ठीक, कापी के कागज की गुणवत्ता वह नहीं थी, जितने रुपए लिए गए? बच्चे को पढ़ाना है, इसलिए सहन कर लिया।

जिला शिक्षाधिकारी से चर्चा नहीं हो सकी। जिला परियोजना अधिकारी गिरिश तिवारी ने कहाकि इसप्रकार की शिकायतें लिखित में कोई नहीं देता है। उन्हे जानकारियां मिलती रहती है। कलेक्टर के संज्ञान में लाएंगे और एक आदेश जारी करवाएंगे। ताकि पालकों पर इस प्रकार से दबाव न बने। स्कूल संचालकों के खिलाफ तभी कार्रवाई कर सकते हैं जब लिखित और नामजद शिकायत मिले। पूर्व में शिकायतें मिलने पर कार्रवाई होती रही है। पालक हमें जानकारी दें, हम कार्रवाई करेंगे।

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