ब्रह्म काल में कल होलिका पूजन, दहन
अक्षरविश्व न्यूज.उज्जैन।होलिका पूजन की मान्यता पंचांग की गणना के अनुसार फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर है। इस बार भी 6 मार्च सोमवार के दिन मघा नक्षत्र के साक्षी एवं सुकर्मा योग तथा सिंह राशि के चंद्रमा की प्रति साक्षी में प्रदोष काल के दौरान शाम 6.29 पर होलिका का पूजन होगा।
पंचाग और ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक प्रदोष काल में होलिका पूजन के बाद कई स्थानों पर दहन की मान्यता है, किंतु प्राचीन एवं परंपरागत स्थानों पर समय तथा मुहूर्त का आधार पर निशा काल या अपर रात्रि अथवा ब्रह्ममुहूर्त में होलिका का दहन किया जाता है।
वर्तमान में होलिका की पूजन की तिथि को लेकर के भ्रांति या भ्रम की स्थिति चल रही है जो कि न्याय संगत नहीं है। धर्म सिंधु की मान्यता के अनुसार देखें तो धर्म सिंधु ग्रंथ पर पेज नंबर 218, 219, 220 इस संदर्भ को स्पष्ट रूप से रेखांकित करता है जिसमें भद्रा, प्रदोष काल, हो या पूर्णिमा तिथि इन तीनों का अलग अलग और संयुक्त विवेचन किया गया है। संपूर्ण गणना के बाद 6 मार्च सोमवार को प्रदोष काल में ही होलिका की पूजन श्रेष्ठ है और मध्य रात्रि या ब्रह्म मुहूर्त में दहन की परंपरा को आगे बढ़ाना चाहिए।
भारत के सभी प्रमुख पंचांग में 6 मार्च को होली का पूजन
भारत के लगभग सभी प्रमुख पंचांगों में 6 मार्च की पूर्णिमा तिथि पर प्रदोष काल में होलिका की पूजन की बात लिखी गई है। वहीं 7 मार्च को धूलंडी पर्व काल को मनाना शास्त्र सम्मत बताया गया है, जो कि धर्म शास्त्रीय मान्यता तथा समय वेलांतर की गणना से कुछ स्थानों पर परिवर्तन का चक्र परंपरा के अनुसार होता है। शास्त्रीय अभिमत में 6 मार्च की ही होलिका मान्य की गई है।