महाशिवरात्रि पर क्राउड मैनेजमेंट भले शानदार रहा। पर इस मैनेजमेंट के बीच दूरदराज से आने वाले लाखों शिव भक्त मूलभूत सुविधाओं से वंचित हो गए। शहर सीमा से बाहल सड़कों के किनारे रोक दिए गए श्रद्धालुओं के बैठक,भोजन,और विश्राम के इंतजाम पर ध्यान ही नहीं दिया।
प्रशासन द्वारा तय पार्किंग भर जाने और श्रद्धालुओं की भारी संख्या के साथ ही महाकाल मंदिर और शिप्रा नदी के आसपास भीड़ बढऩे के कारण बाहर से आने वाले वाहनों को नगर निगम सीमा से बहुत दूर रोक दिया। खाली पड़ी जमीन पर गाडियों को खडा करा लिया गया।
हालांकि श्रद्धालुओं को मंदिर तक जाने के लिए फ्री बस की सुविधा थी,लेकिन वह भी दिक्कत से भरपूर रही। बहरहाल मूल मुद्दे की बात करें तो पार्किंग स्थल पर श्रद्धालुओं की मूलभूत जरुरतों का ख्याल ही नहीं रखा। इन दिनों तापमान 32 डिग्री या इसके आसपास बना हुआ है। दोपहर के समय धूप मे तीखापन हैं और छाया के लिए शामियाने नहीं लगाए गए।
पीने के पानी तक की व्यवस्था नही थी। ऐसे भी श्रद्धालुओं के कई धार्मिक यात्रा दल भोजन के संसाधन और सामग्री लेकर आए थे,परन्तु वे पीने और भोजन बनाने के पानी की तलाश में इधर-उधर भटकते रहेंं।
इसमें महिला पुरुष और बच्चे भी शामिल थे। विश्राम के इंतजाम का तो सवाल ही नहीं उठता हैं। शहर से बाहर बने अस्थायी पार्किंग पर रोशनी के प्रबंध नहीं थे। श्रद्धालुओं को रात के अंधेरे में परेशान हुई। फ्री बस भी बाहर से आने वालों के लिए समस्याओं का कारण बन गई। दरअसल उन्हें खासकर गैर हिन्दीभाषी प्रांत (तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र) के लोगों को यह बताने वाला ही कोई नहीं था कि यह बसें कहां तक जाएगी और फिर वापसी कहां से होगी। बसों पर केवल इतना लिखा था…’नि:शुल्क/फ्री’। शहर, इसकी सीमा और इलाकों से अनजान अन्य राज्यों के लोगों के लिए ‘बस’ परेशानियों की वजह रही। इतना ही नहीं लोग लूट ( मनमाने किराया, मंहगे नाश्ते, चाय,पानी) का शिकार भी हुए….।