नागपंचमी पर भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन को उमड़े लाखों श्रद्धालु
रात 12 बजे खुले नाचंद्रेश्वर मंदिर के पट
नागचंद्रेश्वर मंदिर: पट खुलते ही त्रिकाल पूजन, कई अव्यवस्थाओं का सामना करना पड़ा दर्शनार्थियों को
2 लाख श्रद्धालुओं ने लिया दर्शन लाभ, भक्तों का सैलाब…
नागपंचमी के अवसर पर उज्जैन के नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट खोलने के बाद रविवार की रात को सबसे पहले पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े के महंत विनीत गिरि महाराज ने त्रिकाल पूजन और अभिषेक किया। इसके पश्चात दर्शन का सिलसिला शुरू हुआ।
अक्षरविश्व न्यूज. उज्जैन:नागपंचमी और श्रावण सोमवार के संयोग के पूर्व उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर के शीर्ष पर विराजमान नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट रविवार मध्य रात्रि को खोले गए। पट वर्ष में एक बार नागपंचमी पर ही खुलते हैं। रविवार की रात को पट खुलने के कई घंटे पहले श्रद्धालु कतार में लग चुके थे। मंदिर में विशेष पूजन के बाद दर्शनों का सिलसिला प्रारंभ हुआ। महाकाल मंदिर प्रबंध समिति के अनुसार सोमवार दोपहर १२ बजे तक २ लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने दर्शन किए। दर्शनों का यह क्रम सोमवार रात 12 बजे तक चलेगा। इधर कई जगह प्रशासन और मंदिर प्रबंध समिति के इंतजाम खोखले साबित हुए।
प्राचीनकाल से पंचांग तिथि अनुसार सावन महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन ही इस मंदिर के पट खुलने की परंपरा है। श्री नागचंद्रेश्वर भगवान की यह प्रतिमा 11वीं शताब्दी की है। इस प्रतिमा में फन फैलाए नाग के आसन पर शिव जी के साथ देवी पार्वती बैठी हैं। संभवत: दुनिया में ये एक मात्र ऐसी प्रतिमा है, जिसमें भगवान शिव नाग शैया पर विराजमान हैं। मंदिर में शिवजी, मां पार्वती, श्रीगणेश जी के साथ ही सप्तमुखी नाग देव हैं। दोनों के वाहन नंदी और सिंह भी विराजमान हैं। शिव के गले और भुजाओं में भी नाग लिपटे हुए हैं।
व्यवस्थाओं के दावे खोखले साबित हुए जिला प्रशासन और महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति द्वारा श्रद्धालुओं की सुविधा और व्यवस्थाओं के जो दावे किए थे, वे खोखले नजर आए।
पार्किंग दूर होने के साथ मंदिर तक जाने के लिए वाहनों की जानकारी नहीं होने से श्रद्धालुओं को कतार में लगने के निर्धारित स्थान तक पहुंचने के लिए लंबा पैदल चलना पड़ा। इस बीच कहीं भी पेयजल, अस्थायी सुविधाघर या अल्प विश्राम की व्यवस्था नहीं थी। नतीजतन लोग परेशान हुए।
दर्शनार्थी चारधाम मंदिर की ओर लाइन में लगकर बैरिकेट्स से हरिसिद्धि माता मंदिर और फिर बड़े गणेश मंदिर होते हुए श्री नागचंद्रेश्वर मंदिर पहुंच रहे हैं। मंदिर प्रशासन ने यहां तक जाने के लिए पिछले साल बनाए ब्रिज से ही व्यवस्था की है। चारधाम से लाइन में लगने के बाद करीब एक घंटे में लोगों को दर्शन का दावा मंदिर समिति ने किया है। इसके पहले पैदल चलकर बैरिकेट्स तक पहुंचने के टाइम को शामिल नहीं किया।
शहर के अन्य मार्गो पर मैजिक, ऑटो, ई-रिक्शा वालों की मनमानी जारी रही। बीच सड़क में सवारी को बैठाने, उतारने का सिलसिला जारी रही। वहीं वाहनों में ओवर लोडिंग भी हुई। यातायात की इस बाधा को रोकने वाला कोई नहीं था।
ना थैली ना ही टोकन
प्रशासन ने कहा था कि श्रद्धालुओं के लिए भील समाज धर्मशाला, हरसिद्धि की पाल पर वृहद स्तर का जूता स्टैण्ड होंगे। चरण पादुकाएं रखने के लिए कपड़ों की थैलियां बनवाई जाकर पृथक-पृथक कलर के टोकन दिए जाएंगे, लेकिन यह व्यवस्था छिन्न-भिन्न रही। कई स्टैण्ड पर न थैलियों के पते थे और ना ही कोई टोकन..।
आज नागपंचमी पर विशेष
अवंतिका का अति प्राचीन नाग-तलैया तीर्थ
श्रावण शुक्ल पंचमी को विशेषत: पहाड़ी क्षेत्रों एवं सामान्यत: सर्वत्र मनाया जाने वाला नागपंचमी का त्योहार भारतीय संस्कृति के इस उदात्त व उदार चिन्तन का प्रमाण है कि हम जीव मात्र के प्रति दया भाव रखते हैं। मानव जाति के लिए सबसे खतरनाक समझे जाने वाले साँप को हम न केवल दूध पिलाते हैं अपितु वर्ष में एक दिन कुमकुम-अक्षत-चन्दनादि से पूजा भी करते हैं।
अनुमान है कि सर्प भय से मुक्ति हेतु ही नागपूजन की परम्परा का आरम्भ हुआ होगा। पौराणिक सन्दर्भों के अनुसार इस पृथ्वी को शेषनाग ने ही अपने ऊपर धारण कर रखा है। जगतपत् िभगवान् विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग की शैय्या पर शयन करते हैं। नाग भगवान् शिव का आभूषण है।
”श्री शिवपंचाक्षर स्तोत्रम्” में भगवान् शिव को ‘नागेन्द्रहाराय’ व ‘नागयज्ञोपवीतम्’ और बटुकभैरवअष्टोत्तर शतनामस्तोत्रम’ में नागहारो, नागपाशो, सर्पयुक्त और नागयज्ञोपवीतम्’ कहा गया है। नाग गणेशजी का भी अलंकार है। अग्निपुराण में आठ प्रकार के नागकुलों का वर्णन है। ऋग्वेद, अथर्ववेद, यजुर्वेद, कथासरित्सागर, मार्कण्डेयपुराण, गरुड़पुराण, भविष्यपुराण, वराहपुराण, शंकरसंहिता, सुश्रुतसंहिता आदि ग्रंथों में नागों की महिमा और नागकथाओं का वर्णन पाया जाता है। चपलता, शक्ति, विषाक्तता और भंयकरता के कारण मनुष्य नागपूजा करके स्वयं की सुरक्षा का अभिलाषी रहता है।
भगवान् नागचंद्रेश्वर की दिव्य मूर्ति
भगवान् महाकाल ज्योतिर्लिंग का मंदिर भवन व शिखर पांचस्तरीय बताया जाता है। महाकाल का ज्योतिर्लिंग गुहामार्ग से आगे एक गर्भगृह में प्रतिष्ठित है। इसके ऊपर पहली मंजिल पर पंडों के बैठने का सभागृह, दूसरे पर भगवान ओंकारेश्वर नामक शिवलिंग स्थापित है जो कुछ प्राचीन प्रस्तर स्तम्भों के बीच से होकर जाने पर दर्शनीय है। इसके ऊपर तीसरी मंजिल पर वर्ष में केवल एक बार नागपंचमी पर ही दर्शन हेतु उपलब्ध नागचन्द्रेश्वर की मराठी शैली में करीब तीन सौ वर्ष पूर्व निर्मित है। मूर्ति अत्यंत आकर्षक है।
शिव-पार्वती की इन प्रतिमाओं पर नागों के ऊपर सात नाग फण छाया किये हुए हैं तथा वे नाग द्वारा बनाये आसन पर ही विराजमान हैं। शिव के दायीं ओर ऊपर गणेशजी तथा नीचे वाहन नन्दी है। देवी पार्वती के बायीं ओर ऊपर गरुड़ जी बायां पैर मोड़कर विराजमान हैं तथा नीचे की ओर वाहन सिंह हैं। यहां कहीं कार्तिकेय दिखाई नहीं दे रहे हैं। दोनों वाहनों के ऊपर भी 5-5 नागफण हैं। शिव के चार हाथ हैं जिनमें नाग व त्रिशूल व बायां हाथ देवी पार्वती की कमर पर रखा है। मूलत: यह उमा-महेश्वर की चौकी के ऊपर ललितासन प्रतिमा है। ऊपर चन्द्र व सूर्य बने हैं तथा दोनों ओर के स्तम्भों में शिव के गण हैं। इस प्रकार यह दिव्य नागचन्द्रेश्वर प्रतिमा उत्कृष्ट कलाकृति का बेजोड़ नमूना है।
उज्जैन के पटनी बाजार क्षेत्र की नागनाथ गली में चौरासी महादेव मंदिरों में गण्य एक नागचण्डेश्वर मंदिर है (१9/84) स्कन्दपुराण में वर्णित इसकी कथा में नागचण्ड एक पुरुष है। कदाचित् उच्चारण की दुरुहता के कारण इसे भी नागचन्द्रेश्वर मंदिर कहा जाता रहा।
उज्जयिनी में कहाँ है यह नागतीर्थ?
स्कन्दपुराण में नागतीर्थ की महिमा लिखी है। गत संध्या मैं और फोटोग्राफर (देवेश दीक्षित) ने नगर के जानकार लोगों के निर्देश पर शिप्रा नदी के बड़े पुल से दाईं ओर रणजीत हुनमान के पहले श्री जंगजीत हनुमान मंदिर से बायें मुड़कर उसी मार्ग पर आगे फिर बायें मुड़कर करीब 1 किमी सीधे जाकर अति प्राचीन नाग तलैया स्थल का अध्ययन किया। यहां शेषनाग महाराज का विशाल मंदिर है जिसके दक्षिण-पश्चिम कोण में अति प्राचीन बावड़ी है जिसकी गहराई अतल है। बावड़ी की पश्चिमी दीवार पर कोई पांच फीट ऊंची गणेशजी की भव्य मूर्ति दिखाई देती है।
यह मूर्ति वर्तमान में बावड़ी के जल में डूबी है, केवल ऊपरी कुछ श्यामवर्ण पथरीली आकृति ही दिख पा रही है किन्तु फोटो में उनकी बायीं आंख के स्पष्ट दर्शन हो रहे हैं। यहां एक चार फीट ऊंचा भूरे पत्थर का शिलालेख है जिस पर ग्वालियर राज्य के प्रतीक चिह्न दोनों ओर नागों से भूषित सूर्यदेव की आकृति है तथा उर्दू व अंग्रेजी में यहां ”इस तालाब पर शिकार करने की मनाई है” यह 1966 का वर्ष अंकित है जो विक्रम संवत् होकर 114 वर्ष पुराना है। स्पष्ट है यह तालाब बड़ा रहा होगा। कालान्तर में यहां तलैया रह गई, अत: वर्तमान में इसे जानकार व क्षेत्रवासी ‘नागतलैया’ ही कहते हैं। नागतलैया के मार्ग के सम्मुख एक पक्का नाग मंदिर बना है। इस मंदिर का गर्भगृह 5-6 सीढिय़ां चढ़कर खुला हुआ है जिसके मध्य करीब ढाई-फीट ऊंची दायीं ओर शेषनाग की तथा बायीं ओर पद्मादेवी (नागिन) की दो मूर्तियां स्थापित हैं। सामने उठा हुआ सभामण्डप है जिसकी निचली सतह पर करीब 2500 वर्गफीट का मंदिर का परकौटा है। बताया गया है कि यहीं पर प्राचीनकाल में नागों का यज्ञ हुआ था।
अवन्तिका में नागतीर्थ की महिमा
स्कन्द महापुराण के अवन्ति-माहात्म्य खण्ड में अवंतिका में नागतीर्थ होने का उल्लेख है। एक योजन (चार कोस– करीब 13 किमी.) विस्तृत महाकालवन में कुशस्थली नामक पुरी में एक नागालय है जहां श्रीहरि की भी समीपता है। इस नागतीर्थ में बकदाल्भ्य ऋषि ने व्रताचरण, लोमश ऋषि, महामुनि मार्कण्डेय ने निवास तथा कपिल मुनि ने सिद्धिलाभ प्राप्त किया। राजा हरिशचंद्र ने भी चाण्डाल योनि से इसी नागतीर्थ में मुक्तिलाभ किया। सप्तर्षियों ने भी यहीं निर्वाणपद प्राप्त किया था। इसी कारण यह तीर्थ परम पुण्यप्रद माना जाता है।
कथा कहती है देवर्षि सनत्कुमार ने व्यासदेव से कहा कि पूर्वकाल में नागगण माता के शाप से परिभ्रष्ट होकर जन्मेजय के यज्ञ में दग्ध हो गये थे, किन्तु आस्तीक ऋषि की कृपा से कुछ नाग मरने से बच गये। महात्मा आस्तिक ने शेष बचे नागों को अवंतिका के इस नागालय में रहने भेजा।
इन नागों में एलापत्र, कम्बल, कर्कोटक, धनंजय, वासुकि, नागश्रेष्ठ तक्षक, नील आदि ने यहाँ उत्तम पुण्यप्रद कुण्डों का निर्माण किया। यहां वृक्षादि सदा पुष्पित रहते, पक्षी नृत्य करते थे, देवांगनाएं विहार करती तथा श्रीहरि शेष शय्या पर शयनरत रहते हैं। यह नागतीर्थ सर्वपावहारी है। @ रमेश दीक्षित (लेखक अक्षरविश्व के स्तंभकार व विशेष संवाददाता है)
नागपंचमी पर पार्किंग व्यवस्था
कर्कराज पार्किंग : समस्त वाहनों के लिए
कलोता समाज धर्मशाला : दोपहिया व प्रशासनिक वाहनों के लिए
इंदौर रोड की ओर से आने वाले वाहन यहां पार्क होंगे
शासकीय इंजीनियरिंग कॉलेज तिराहे पर हाउसिंग बोर्ड मैदान
हरिफाटक ओवरब्रिज के नीचे हाट बाजार मैदान
हरिफाटक ओवरब्रिज के समीप मन्नत गार्डन
देवास, मक्सी और आगर से आने वाले वाहन
शासकीय इंजीनियरिंग महाविद्यालय मैदान।
प्रशांति धाम पार्किंग।
बड़नगर व नागदा की ओर से आने वाले वाहन
मुल्लापुरा पार्किंग
कार्तिक मेला मैदान पार्किंग
आदिनाथ जैन पार्किंग
उदासीन अखाड़ा व निर्मोही अखाड़ा बड़नगर रोड
पार्किंग स्थल से निशुल्क बस सेवा
पार्किंग स्थलों से महाकाल मंदिर पहुंचने के लिए निशुल्क बस सेवा उपलब्ध कराई जाएगी। प्रशासन ने 50 बसों को इंतजाम किया है। दर्शनार्थी वाहन पार्क करने के बाद बस में बैठकर मंदिर पहुंचेंगे। लौटने पर भी बस सुविधा उपलब्ध रहेगी।
भगवान महाकालेश्वर के दर्शन हेतु निर्धारित मार्ग: श्रद्धालु त्रिवेणी संग्रहालय के समीप, सरफेस पार्किंग से प्रवेश कर नंदीद्वार, महाकाल महालोक, मानसरोवर भवन में प्रवेश कर, फेसेलिटी सेंटर-01, मंदिर परिसर, कार्तिक मण्डपम् में प्रवेश, गणेश मण्डपम् से भगवान महाकाल के दर्शन कर सकेंगे।
पी.ए. सिस्टम, सहायता केंद्र खोया-पाया केन्द्र: श्रद्धालुओं को समय-समय पर अन्य आवश्यक दिशा निर्देश प्रदान करने के उद्देश्य से सेक्टर अनुसार पी.ए. सिस्टम सहायता केंद्र एवं खोया-पाया केन्द्र स्थापित किए जाकर उक्त पी.ए. सिस्टम व खोया-पाया केंद्र पर पुलिस बल, कर्मचारी एवं स्काउड गाइड के कर्मचारियों को पाबंद किया गया है।
भजन मंडली की व्यवस्था: दर्शन मार्ग के अंतर्गत चयनित स्थान पर आवश्यकतानुसार मंच बनाए गए हैं। मंचों से मंडलियां भजन गायन की प्रस्तुति देंगी।
एलईडी एवं सीसीटीवी कैमरे की व्यवस्था: श्रद्धालुओं की सुरक्षा को दृष्टिगत रखते हुए मंदिर परिक्षेत्र एवं संपूर्ण दर्शन मार्ग पर 700 सीसीटीवी कैमरे लगाकर कंट्रोल रूम स्थापित किया गया है। भगवान नागचन्द्रेश्वर एवं भगवान महाकालेश्वर के सजीव दर्शन कराने के उद्देश्य से संपूर्ण दर्शन मार्ग, स्थापित पार्किंग एवं मंदिर परिक्षेत्र के चयनित स्थानों पर आउटडोर एलईडी स्थापित की गई है।
व्हील चेयर व ई-कार्ट की व्यवस्था: वृद्धजन एवं नि:शक्तजन श्रद्धालुओं को भगवान नागचन्दे्रश्वर एवं भगवान महाकालेश्वर सुलभ दर्शन कराए जाने के उद्देश्य से मंदिर परिक्षेत्र के समीप निर्धारित पार्किंग स्थल पर ई-कार्ट इत्यादि खड़ी की गई है जिसमें बैठकर श्रद्धालु मंदिर के प्रवेश द्वार पहुंच कर व्हील चेयर के माध्यम से भगवान श्री नागचन्द्रेश्वर एवं भगवान महाकालेश्वर के दर्शन कर सकेंगे।
जूता स्टैण्ड:भगवान नागचन्द्रेश्वर के दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं के लिए भील समाज धर्मशाला, हरसिद्धि की पाल पर वृहद स्तर का जूता स्टैंड स्थापित किया गया है। जूता स्टैंड के कुशल संचालन हेतु श्रद्धालुओं की चरण पादुकाएं रखने के लिए कपड़ों की थैलियां बनवाई जाकर पृथक-पृथक कलर के टोकन बनवाये गये हंै।
भील समाज पार्किंग स्थल में स्थापित जूता स्टैंड के लिए ब्लैक कलर और हरसिद्धि की पाल पर स्थापित जूता स्टैण्ड के लिए नीला कलर, सरफेस पार्किंग में स्थापित जूता स्टैण्ड के लिये लाल कलर तय किया है। टोकन के पीछे जूता स्टैण्ड का पता लिखवाया गया है जिससे श्रद्धालु सरलता से दर्शन उपरांत जूता स्टैण्ड पर पहुंचकर अपनी चरण पादुकाएं प्राप्त कर सकेंगे।
पेयजल व्यवस्था:मंदिर में प्रवेश हेतु निर्धारित द्वार से प्रति 200 मीटर पर पेयजल की व्यवस्था की गई है। पार्किंग स्थल पर पेयजल व्यवस्था हेतु पीने के पानी के टैंकर खड़े किए जाएंगे।
लड्डू प्रसाद काउण्टर:श्रद्धालुओं को लड्डू प्रसाद उपलब्ध कराने के उद्देश्य से भील समाज धर्मशाला एवं नृसिंह घाट तिराहे लड्डू प्रसाद काउंटर स्थापित किए गए हैं।
प्राथमिक उपचार की सुविधा:मंदिर परिक्षेत्र के समीप स्थापित पार्किंग एवं चयनित स्थानों पर प्राथमिक उपचार केंद्र स्थापित किए गए हैं। उक्त प्राथमिक उपचार केन्द्रो पर चिकित्सक, पैरामेडिकल स्टॉफ को पाबंद किया गया है, साथ ही एम्बुलेंस भी खड़ी की गई है।