भाजपा में अब वरिष्ठों की पूछपरख
जब से भाजपाइयों को इस सत्य का भान हुआ कि प्रदेश में कार्यकर्ता उपेक्षा से नाराज हैं तब से वरिष्ठ नेताओं ने ट्रैक बदल लिया है। चाहे मालवा-निमाड़ हो या विंध्य-महाकौशल या फिर ग्वालियर -चंबल सभी जगह चुन-चुनकर नाराज नेताओं की पूछपरख होने लगी है।
पार्टी की प्रदेश इकाई से स्थानीय विधायक-सांसदों के साथ ही संगठन के पदाधिकारियों को निर्देश मिल चुके हैं कि वरिष्ठ नेताओं को खुद फोन कर आयोजनोंं के लिए न सिर्फ आमंत्रित करें बल्कि उन्हें सम्मान मंच पर बैठाएं। इसके बाद भाजपाई आयोजनों में युवा भाजपा के बजाय अनुभवी भाजपा के चेहरे फिर नजर आने लगे हैं। मालवा-निमाड़ के नाराज नेताओं को मनाने के लिए एक के बाद एक वरिष्ठ नेता पहुंच रहे हैं। बातें टिकट से शुरू होकर निगम-मंडल तक पहुंच रही हैं। देखना यह है कि सहमति किस पर बनती है।
कांग्रेस में अब ग्रामीण क्षेत्र से नाराजगी
कांग्रेस ने शहर कांग्रेस अध्यक्ष की नियुक्ति का मसला तो सुलझा लिया है लेकिन अब चुनावी मसले पूरी ताकत से सामने आने लगे हैं। शहरी विधानसभा क्षेत्र तो ठीक जिले के ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र में दावेदारों के उग्र शक्ति प्रदर्शन से बड़े नेताओं के हाथ-पैर फूल रहे हैं। कांग्रेस भले ही प्रदेश में माहौल अपने पक्ष में मानकर चल रही है लेकिन अपनी पार्टी के नेताओं को चुनाव के पहले एक मत और एक मंच पर लाना किसी चुनौती से कम नहीं होगा।
उज्जैन रहे अफसरों पर संकट के बाद
महाकाल की नगरी में गड़बडिय़ों के मामलों ने अफसरों की नींद उड़ा रखी है। पहले महाकाल लोक में सप्तऋषियों की मूर्तियां क्षतिग्रस्त होने का मामला, अब हवाई पट्टी कांड में लोकायुक्त की सख्ती। इस कांड में लोकायुक्त के निशाने पर चल रहे अफसर प्रदेश ही छोड़ रहे हैं। ऐसे में उज्जैन में पदस्थ रहे अफसरों पर संकट के बादल है। पहले से ही दो अफसर केंद्र की सेवा में जा चुके हैं।
तीन अफसर रिटायर हो चुके हैं। जबकि एक महिला आईएएस का निधन हो चुका है। वैसे अब तक छोटे अफसर ही प्रदेश छोड़ रहे थे, लेकिन लोकायुक्त ने बड़े जिम्मेदारों पर शिकंजा कसने के संकेत दिए तो बड़े अफसर भी एमपी छोडऩे के मूड में आ गए। इसके अलावा करीब 20- 25 अफसर ऐसे हैं जो प्रदेश छोडऩे की अर्जी महीनों से लगाए बैठे हैं, लेकिन उन्हें अब हरी झंडी का इंतजार है।