भारत में बच्चे को गोद लेने की इच्छा रखने वाले माता-पिता की संख्या बड़ी है। अधिकांश बच्चा गोद लेते हैं क्योंकि माता-पिता के अपने बच्चे नहीं हो सकते हैं या इसलिए कि वे एक ऐसे बच्चे को सहारा देना चाहते हैं जो दुनिया में अकेला है। पहले भारत में यह एक टैबू माना जाता था, पर अब गोद लेने पर भारतीय समाज में लोग सकारात्मक विचार रखतें हैं। भारत में ऐसे नियम और कानून हैं जो बच्चे को गोद लेने को नियंत्रित करते हैं।
भारत में कौनसा बच्चा गोद लेने के योग्य हैं?
भारत में गोद लेने की प्रक्रिया की निगरानी केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (CARA) द्वारा की जाती है, जो देश के भीतर गोद लेने की निगरानी और विनियमन करने वाली नोडल एजेंसी है। यह महिला और बाल विकास मंत्रालय का एक हिस्सा है। निम्नलिखित बुनियादी शर्तें माता-पिता के योग्य होने के लिए आवश्यक है:
भारत में एक बच्चे को भारतीय नागरिक, एनआरआई या विदेशी नागरिक द्वारा गोद लिया जा सकता है। हालांकि, गोद लेने की प्रक्रिया तीनों के लिए अलग-अलग है।
- लिंग या वैवाहिक स्थिति की परवाह किए बिना कोई भी व्यक्ति गोद लेने का पात्र है।
- यदि कोई जोड़ा बच्चा गोद ले रहा है, तो उन्हें कम से कम शादी के दो साल पूरे करने चाहिए और बच्चे को गोद लेने के लिए एक संयुक्त सहमति होनी चाहिए।
- बच्चे और दत्तक माता-पिता के बीच उम्र का अंतर 25 वर्ष से कम नहीं होना चाहिए।
- माता-पिता को शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से स्थिर होना चाहिए।
- माता-पिता को बच्चे की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए आर्थिक रूप से सक्षम होना चाहिए।
- माता-पिता की आयु कम से कम 25 वर्ष और 55 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए।
- अकेला व्यक्ति चाहे वह पुरुष हो या महिला, बच्चा गोद ले सकता है।
बच्चा कब योग्य हो सकता है?
भारत सरकार की केंद्र सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुसार, बाल कल्याण समिति के अनुसार कोई भी अनाथ, परित्यक्त (छोड़ा हुआ) या समर्पित बच्चा गोद लेने का पात्र है।
- बाल कल्याण समिति द्वारा उसे गोद लेने के लिए कानूनी रूप से स्वतंत्र घोषित किया जाना चाहिए।
- कानूनी माता-पिता या अभिभावक के बिना बच्चे को अनाथ माना जाता है। बच्चे को अनाथ भी माना जा सकता है जब बच्चे के माता-पिता अब अपने बच्चे की देखभाल नहीं कर सकते। एक बच्चे को तब छोड़ा हुआ माना जाता है जब वह अपने माता-पिता या अभिभावक द्वारा ठुकराया जाता है।
- माता-पिता या अभिभावक बच्चे के शारीरिक, सामाजिक या भावनात्मक कारकों को सँभालने में असमर्थ हो ।
- एक बच्चे को तभी गोद लिया जा सकता है जब वह कानूनी रूप से स्वतंत्र हो।
- त्यागे हुए बच्चे के मिलने पर, जिला बाल संरक्षण इकाई बच्चे की तस्वीर को उसके विवरण के साथ समाचार पत्र और किसी भी अन्य स्रोत से प्रकाशित करती है । बच्चे के माता-पिता के लापता होने के बाद, एक बच्चे को छोड़ा हुआ माना जाता है।
माता-पिता द्वारा पूरी की जाने वाली शर्तें
CARA की पात्रता मानदंड बच्चे को गोद लेने वाले माता-पिता के लिए मानदंड परिभाषित करती हैं। आवश्यकताएँ इस प्रकार हैं:
- गोद लेने वाले माता-पिता को शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक रूप से स्थिर होना चाहिए।
- दत्तक माता-पिता को आर्थिक रूप से स्थिर होना चाहिए।
- माता-पिता को किसी भी जानलेवा बीमारी से पीड़ित नहीं होना चाहिए।
- एक दंपति जिसके पहले से ही तीन या अधिक बच्चे हैं, वह किसी अन्य बच्चे को गोद नहीं ले सकता है।
- विशेष रूप से सक्षम बच्चे के मामले में यह स्थिति भिन्न हो सकती है।
- अकेली महिला किसी भी लिंग के बच्चे को गोद ले सकती है। लेकिन एक पुरुष व्यक्ति केवल एक पुरुष बच्चे को ही गोद ले सकता है।
- बच्चे को गोद लेने के समय, एकल माता-पिता की आयु 55 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए। दत्तक दंपत्ति की संचयी आयु 110 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए। पंजीकरण के लिए दत्तक माता-पिता की आयु कारा के दिशानिर्देशों के अनुसार होनी चाहिए।
भारत में बच्चे को कैसे गोद लें?
भारत में गोद लेने की प्रक्रिया को कई कानून संचालित करते हैं।
सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी इस कानून के पालन को देखती है। बच्चे को गोद लेने की प्रक्रिया इस प्रकार है:
चरण 1: पंजीकरण: जो माता-पिता बच्चे को गोद लेने के इच्छुक हैं, उन्हें एक अधिकृत एजेंसी के साथ अपना पंजीकरण कराना होगा। दो पंजीकृत एजेंसियों को पंजीकरण करने की अनुमति है। पंजीकरण एजेंसियां मान्यता प्राप्त भारतीय प्लेसमेंट एजेंसियां (RIPA) और विशेष दत्तक ग्रहण एजेंसी (SAA) हैं।
चरण 2: गृह अध्ययन और परामर्श: पंजीकरण एजेंसी का एक सामाजिक कार्यकर्ता माता-पिता के घर जाता है। बच्चा कहां रहेगा, इस बारे में अधिक जानने के लिए एजेंसी घर का दौरा करती है। कई बार एजेंसी माता-पिता बनने के लिए परामर्श सत्र लेती है। दत्तक माता-पिता की ताकत, कमजोरियों और तैयारी को समझने के लिए काउंसलिंग की जाती है। CARA के नियमन के अनुसार, पंजीकरण की तिथि से 3 महीने के भीतर गृह अध्ययन पूरा करना आवश्यक है। सत्रों की रिपोर्ट न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की जाती है।
चरण 3: अदालत के समक्ष रिपोर्ट पेश करने के बाद, जब भी कोई बच्चा गोद लेने के लिए तैयार हो, तो एजेंसी मेडिकल रिपोर्ट, शारीरिक जांच रिपोर्ट और बच्चे से जुड़ी अन्य जानकारियां दंपति के साथ साझा करती है।
चरण 4: बच्चे की स्वीकृति: जब माता-पिता बच्चे के साथ सहज होते हैं, तो वे बच्चे की स्वीकृति वाले दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करते हैं।
चरण 5: याचिका दायर करना: बच्चे की स्वीकृति के बाद अधिवक्ता को हर आवश्यक दस्तावेज दिया जाता है। एक अधिवक्ता अदालत में प्रस्तुत याचिका तैयार करता है। याचिका तैयार होने और अदालत में जमा होने के बाद, दत्तक माता-पिता को अदालत जाना होगा और अदालत के अधिकारी के सामने दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करना होगा।
चरण 6: पूर्व-दत्तक पालक देखभाल: पूर्व-दत्तक पालक देखभाल को बच्चे की देखभाल करने वाले नर्सिंग स्टाफ से बच्चे की आदतों को समझने के रूप में देखा जा सकता है। यह अदालत में दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने के बाद किया जाता है।
चरण 7: न्यायालय का आदेश: न्यायालय की निवेश रसीद दिखाने के बाद, न्यायाधीश गोद लेने का आदेश पारित करता है।
चरण 8: फॉलोअप: बच्चे के गोद लेने की प्रक्रिया पूरी करने के बाद, बच्चे की भलाई के बारे में एक रिपोर्ट अदालत में जमा की जाती है। इस तरह का फॉलो अप 1-2 साल तक जारी रह सकता है।