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मकर संक्रांति वराह पर सवार होकर आएगी

कल से सूर्य का उत्तर की ओर गमन, तिल-तिल बढ़ेगा दिन….

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उज्जैन। वैसे तो प्रतिवर्ष 22 दिसंबर को साल का सबसे छोटा दिन होने के बाद दिन बड़े और रात छोटी होने लगती है। इसे खगोल विज्ञान की भाषा में विंटर सॉल्सटिस कहते हैं। हर साल ये दिन बदलता रहता है। खगोलविज्ञानियों के अनुसार आमतौर पर 22 दिसंबर को यह दिन आता है। इधर पंचागीय गणना के अनुसार सूर्य मकर राशि में प्रवेश कर उत्तरायण होते हैं,तब दिन बड़े होने का क्रम प्रारंभ होता है। पंचागों के अनुसार यह मकर संक्रांति से होता है।

सोल्सटिस एक खगोलीय घटना है जो दो बार- एक गर्मी में और एक सर्दी में होती है। हर साल सूर्य को जब उत्तर से दक्षिण ध्रुव की ओर गमन करता है तो साल का सबसे बड़ा दिन 21 जून होता है। इस दिन सूर्य की किरण ज्यादा देर तक रहती है। 22 दिसंबर साल का सबसे छोटा दिन होता है, क्योंकि इस दिन सूर्य की किरणें पृथ्वी पर कम समय के लिए रहती हैं।

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यह एक सामान्य घटना है जो हर वर्ष होती है, लेकिन भारतीय पंचाग और परंपरा के अनुसार सूर्य का उत्तरायण मकर संक्रांति से माना जाता है। मकर संक्रांति से सूर्य देव उत्तरायण हो जाते हैं। हिंदू धर्म की अनुसार, सूर्य का उत्तर दिशा की ओर गमन उत्तरायण कहलाता है। इसके बाद से दिन की अवधि तिल-तिल बढ़ती है। ज्योतिषीय मान्यताओं का अनुसार, इस दौरान सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करते हैं।

कल रात्रि से सूर्य मकर राशि में

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ज्योतिष गणना के अनुसार सूर्य भगवान एक-एक करके 12 राशियों में प्रवेश करते हैं। जब सूर्य राशि परिवर्तन करते हुए मकर राशि में जाते हैं तो इसे संक्रांति नाम से जानते हैं। सूर्यदेव नए साल में 14 जनवरी की रात को मकर राशि में प्रवेश करने वाले हैं। साल 2023 में मकर संक्रांति वराह पर सवार होकर आएगी, वहीं उप वाहन वृषभ होगा। वहीं वस्त्र की बात करें तो इस साल मकर संक्रांति का शुभ रंग हरा होगा और पुष्प बकुल होगा। अवस्था वृद्धावस्था, लेपन – चंदन, हथियार – खड्ग, आभूषण – मोती की माला, पात्र – ताम्र पात्र, भिक्षा – अन्न और दिशा पश्चिम से उत्तर की ओर होगा।

कई परंपराएं और मान्यताएं

सूर्य उत्तरायण होता है तो यह तीर्थ और उत्सवों का समय होता है। मकर संक्रांति का पर्व पूरे देश में मनाया जाता है। हर राज्य में इससे जुड़ी अलग परंपराएं और मान्यताएं हैं। धार्मिक महत्व के साथ ही यह त्योहार पतंगबाजी के लिए जाना जाता है। गुजरात के साथ कई राज्यों में पतंगबाजी का खासा उत्साह देखने को मिलता है। गुजरात और महाराष्ट्र में यह त्योहार उत्तरायण के नाम से मनाया जाता है। उत्तरायण को देवताओं का दिन कहा जाता है इसलिए इस काल में नए कार्य, यज्ञ व्रत, अनुष्ठान, विवाह, मुंडन जैसे कार्य करना शुभ माना जाता है। उत्तरायण के मौके पर पवित्र नदियों में स्नान का बड़ा महत्व है। इस दिन तिल और गुड़ से बने व्यंजन बनाए जाते हैं। उनका दान किया जाता है।

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