Wednesday, October 4, 2023
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मलखंभ की बाल साधिकाएं दिखा रहीं अपना हुनर

हिमांशी और शिक्षा चाहती है विश्व में भारत का परचम लहराए…

अक्षरविश्व न्यूज.उज्जैन।खेलो इंडिया यूथ गेम्स मलखंभ प्रतियोगिताओं में 29 राज्यों के 244 खिलाड़ी हिस्सा ले रहे हंै। इनमें सबसे कम उम्र की हिमांशी उसेंडी और शिक्षा दिनकर छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व कर रही है। मलखंभ की बाल साधिकाएं हिमांशी और शिक्षा के हुनर को देख हर कोई अचंभित है। इनकी मंशा है कि मलखंभ का भारतीय परचम विश्व में लहराए…।

खेलो इंडिया यूथ गेम्स मलखंभ प्रतियोगिताओं में शामिल हिमांशी उसेंडी (9) और शिक्षा दिनकर (10) का लक्ष्य खेलो इंडिया यूथ गेम्स के जरिए मलखंभ में नई ऊंचाइयों को छूना है। इसके साथ ही यह लड़कियां पूरे विश्व में मलखंभ को पहचान दिलाना चाहती हैं।

हिमांशी उसेंडी और शिक्षा दिनकर उज्जैन में आयोजित खेलो इंडिया यूथ गेम्स 2023में बालिका वर्ग में भाग लेने वाले सबसे कम उम्र के मलखंभ खिलाड़ी हैं। उन्होंने अपने असाधारण प्रदर्शन के दम पर माधव सेवा न्यास के प्रागंण में मौजूद सभी लोगों को अपना मुरीद बना लिया है।

छत्तीसगढ़ के सबसे पिछड़े क्षेत्र नारायणपुर और जांजगीर चांपा जिले के शासकीय स्कूल कक्षा 5वीं में पढऩे वाली यह दोनों बच्चियां खेलो इंडिया यूथ गेम्स में छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। इन प्रतिभाशाली बच्चों ने पिछले 2 सालों में देश के अलग-अलग शहरों में हुई राष्ट्रीय प्रतियोगिता परफॉर्म किया, जहां इन्होंने अब तक 10 से ज्यादा गोल्ड मैडल सहित 50 अन्य मैडल हासिल किए हैं।

संक्षिप्त चर्चा में दोनों बालिकाओं का कहना है कि गांव में खेल-खेल के दौरान पेड़-रस्सी पर मस्ती करते थे। इस दौरान उनके गुरु की नजर उन पर पड़ी। मलखंभ के प्रति प्रेरित किया और उतर गई मैदान में। दोनों बालिकाओं का कहना है कि मलखंभ हमारा प्राचीन खेल है और इसके बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

कुछ खास बातें

मलखंभ या मल्लखम्भ दो शब्दों मल्ल (पहलवान या बलवान) तथा खंभ (खम्भा या पोल) से मिलकर बना है।

यह भारत का एक पारम्परिक खेल है, जिसमें खिलाड़ी लकड़ी के एक ऊध्र्वाधर खम्भे या रस्सी के ऊपर तरह-तरह के करतब दिखाते हैं। इसकी उत्पत्ति महाराष्ट्र में हुई थी।

वर्ष 2013 में मध्य प्रदेश द्वारा मलखंभ को राजकीय खेल घोषित किया गया। मध्य प्रदेश सरकार द्वारा मलखंभ खेल से सम्बंधित प्रभाष जोशी पुरस्कार दिया जाता है।

अन्य महत्वपूर्ण बिंदु

वर्ष 1981 में मलखंभ फेडरेशन ऑफ इंडिया (एम.एफ.आई.) द्वारा मलखंभ को पहली बार एक प्रतियोगी खेल के रूप में विकसित किया गया था। वर्ष 1981 में पहली बार नियम निर्धारित किये गए थे।

बता दें कि मलखंभ के पुनर्विकास के लिए उज्जैन में एक अखिल भारतीय संगठन- ‘मलखंभ फेडरेशन ऑफ इंडियाÓ की स्थापना की गई। वर्तमान में मप्र मलखंभ एसोसिएशन के अध्यक्ष सोनू गेहलोत है।

वर्ष 2016 में उज्जैन के मलखंभ कोच योगेश मालवीय को द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

दोनों बालिकाओं की इन आसान में महारत…..

नेशनल ए ग्रेड स्तर के जज व कोच पुष्कर दिनकर ने बताया कि 9 साल की हिमांशी उसेंडी और 10 साल की शिक्षा दिनकर ने मलखंभ खेल के विभिन्न आसनों में महारत हासिल कर रखी है। वे दोनों जब मलखंभ विधा के कपाल उड़ी आसन, टेढ़ी नटराज आसन, पूर्ण नटराज आसन, बेक फिश आसन, हनुमान आसन के साथ संतुलन बनाती है तो मलखंभ खेल की खूबसूरती और बढ़ जाती है।

राष्ट्रीय स्तर पर मलखंभ तीन स्तर पर प्रचलित है

फिक्स्ड/स्थायी मलखंभ: इसमें जमीन में गढ़ी हुई 10 से 12 फीट ऊंची शीशम या सागौन की लकड़ी (व्यास-1.5 से 2 इंच तक) पर करतब दिखाया जाता है। इसका अभ्यास मुख्यत: पुरुषों द्वारा किया जाता है। इसे पोल मलखंभ भी कहा जाता है।

हेंगिंग मलखंभ: यह फिक्स्ड मलखंभ का छोटा संस्करण है। इसमें सामान्यत: संतुलन अभ्यास किया जाता है। इसमें लकड़ी के एक खंभे पर हुक तथा चेन की सहायता से ज़मीन से लगभग 4 फीट की ऊंचाई पर एक दूसरी लकड़ी को लटकाकर मलखंभ का अभ्यास किया जाता है।

रोप मलखंभ: यह मलखंभ का आधुनिक प्रकार है। इसका अभ्यास मुख्यत: महिलाओं द्वारा किया जाता है। इसमें रस्सी की सहायता से विभिन्न यौगिक मुद्राओं का प्रदर्शन किया जाता है। इसे रोप मलखंभ भी कहा जाता है।

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