Sunday, December 3, 2023
Homeकृषि (Agriculture)मानसून की बिमारियों से पशुओं को खतरा, किसान ऐसे करें बचाव 

मानसून की बिमारियों से पशुओं को खतरा, किसान ऐसे करें बचाव 

बारिश के मौसम में बीमार पशु द्वारा मिट्टी और पानी भी संक्रमित हो जाते हैं जिस के संपर्क में आने से स्वस्थ पशुओं भी संक्रमित हो जाते है। इस लिये रोगी पशु को स्वस्थ पशु से अलग रखें। इस मौसम में पशुओं में होने वाले प्रमुख संक्रामक रोग जैसे गलघोटू, लंगड़ा बुखार, खुरपका मुँहपका, न्यूमोनिया आदि हैं। परजीवी रोगों में बबेसिओसिस, थैलेरिओसिस आदि प्रमुख रोग हैं।

कैसे फैलता है संक्रमण 

ये वायरस इन प्राणियों के उत्सर्जन व स्राव से फैलते हैं जैसे लार, दूध व जख्म से निकलने वाला द्रव। ये वायरस एक स्थान से दूसरे स्थान पर हवा द्वारा फैलता है व जब हवा में नमी ज्यादा होती है तब इसका फैलाव और तेजी से होता है। ये बीमार प्राणियों से स्वस्थ प्राणियों में भी फैलती है। संक्रमित भेड़ व सूअर, इन बीमारियों को फैलाने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। संकर नस्ल के मवेशी स्थानीय नस्ल के मवेशियों से जल्दी संक्रमण पाते हैं। ये बीमारियां, पशुओं के एक स्थान से दूसरे स्थान पर आवागमन से भी फैलती हैं।

पशुओं को होने वाली बीमारियां 

1 गलघोंटू – पशु के शरीर का तापमान तेजी से बढ़ता है। आंखें लाल हो जाती है व दोनों टांगों के बीच सूजन आ जाती है।

2 लंगड़ा बुखार – यह बेहद संक्रामक रोग है जो बारिश में मिट्टी के अंदर पैदा होता है। इस रोग का खतरा उन पशुओं को अधिक रहता है जिनके शेड का फ र्श मिट्टी वाला होता है।

3 खुरपका रोग- इसमें पशु के मुंह और जीभ के आस पास छाले पड़ जाते हैं। इस मौसम में भूसा, हराचारा, दाना, दलिया, चोकर में फफूंद लग जाती है।

4 दुधारू पशुओं में थनेला रोग- इसमें फर्श के गीले होने व सूक्ष्म जीवाणुओं से भरे होने से दुधारू पशुओं में नीचे बैठने से रोग हो जाता है।

ऐसे करें पशुओं की देखभाल 

बारिश में बनाएं मजबूत शेड 

बारिश के मौसम की मार से अपने पालतू पशुओं को बचाने के लिए आपको टीन या अन्य प्रकार की छत के साथ शेड तैयार करें। यह शेड मजबूत हो ताकि आंधी-बारिश में गिर नहीं सके। इसमें पानी का रिसाव बिल्कुल नहीं होना चाहिए। वहीं पशुओं के लिए पर्याप्त जगह हो। 

बेक्टीरिया नहीं फैलने दें

बारिश के मौसम में नमी के कारण बेक्टीरिया तेजी से फैलते हैं। जहां पालतू पशुओं को रखा जाता है वहां समय-समय पर बरसात के मौसम में कृमिनाशक दवा का छिड़काव करते रहना चाहिए। इससे पशुओं में बेक्टीरिया का असर नहीं होगा। डी वार्मिंग बारिश के पूरे सीजन में जरूरी है।

चारे में नहीं हो फफूंदी 

पशुओं के लिए सूखा या हरा चारा एकदम सही है। इसमें पानी गिरने से यदि फफूंदी लग गई है तो इससे पशुओं को कैंसर भी हो सकता है। गीला और खराब चारा अलग हटा दें।

फर्श को रखें साफ-सुथरी

पशुओं की शेड के अंदर की फर्श यदि पक्की है तो उसे पूरी तरह से साफ रखें। कई बार फर्श पर कंकड़- चूना या अन्य वस्तु होने के कारण वह पशुओं के पैरों के खुरों के बीच फंस जाता है। इससे पशुओं को काफी तकलीफ भी होती है।

बरसात में हरी घास कम खिलाएं

पालतू पशुओं को बरसात के मौसम में उगने वाली घास कम खिलाएं। यदि ज्यादा मात्रा में पशु ये घास खाते हैं तो इससे पशुओं का हाजमा खराब हो जाता है। इसके लिए घास के अलावा सूखा चारा भी दें ताकि पशुओं को पेट संबंधी बीमारियां नहीं हो सकें।

ईस्ट कोस्ट बुखार से बचाएं 

पशुओं में ईस्ट कोस्ट नामक बुखार घातक होता है। इससे पशुओं की मौत भी हो जाती है। इससे बचाव के लिए वर्षाकाल में पशुओं के आसपास मक्खियों को नहीं पनपने दें। ईस्ट कोस्ट नामक बुखार भी मक्खी की एक प्रजाति द्वारा ही फैलता है।

पेट की बीमारियों से बचाएं 

बरसात के मौसम में पशुओं में पेट की बीमारियां ज्यादा फैलती है। इसके अलावा दुधारू पशुओं के थन भी रोगग्रस्त हो जाते हैं। इनमें फाइब्रोसिस हो जाता है। पशुओं को खुला छोड़ने से कई बार वे बरसाती घास के साथ कीट आदि भी खा जाते हैं। इससे उन्हे पेट की गंभीर बीमारियां हो सकती है। पेट संबंधी बीमारियों से बचाव के लिए बरसात में पानीदार घास कम खिलाएं। वहीं बीच-बीच में पशु चिकित्सक से अपने पशु की जांच कराते रहें।

इन उपायों को करके आप अपने पशुओं को घातक बिमारियों से बचा सकते हैं। 

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