अक्षरविश्व न्यूज. उज्जैन संसारी प्राणी कभी पंचों में तो कभी पंचायत में विश्वास करता है लेकिन पंच परमेष्ठी में श्रद्धान, विश्वास नहीं करता। इसी कारण से अनंत संसार में भटकता है क्योंकि कभी भी पंच पंचायत नहीं अपितु जब भी जीव का कल्याण होगा तो वह पंच परमेष्ठी के प्रति दृढ़ श्रद्धान से ही होगा। संसार सागर से पार होने का संसारी जीव के लिए यदि कोई साधन है तो वह पंच परमेष्ठी की भक्ति ही है।
पंचमकाल जीव का इतना पुण्य नहीं है कि वह साक्षात अरिहंत परमेष्ठी की शरण को प्राप्त कर सके। सिद्धों को कभी देख नहीं सकते लेकिन इतना पुण्य अवश्य है कि हमें तीन परमेष्ठी तो अवश्य ही प्राप्त हो रहे हैं और हम यदि उनमें ही भेदभाव करेंगे तो तीन काल में हमारा कल्याण होने वाला नहीं है। ये तीन परमेष्ठी ही वर्तमान में हमारे लिए ऐसे उपकारी है जो हमें अरिहंत, सिद्ध बनने का मार्ग दिखाकर हमारे जीवन का कल्याण करने वाले है।
ये उद्गार मुनिश्री सुप्रभसागरजी ने श्री आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर ऋषिनगर में चल रही प्रतिदिन की प्रवचनमाला में आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि सच्चे गुरू की खोज नहीं करो अपितु तुम ही सच्चे भक्त, सच्चे शिष्य बन जाओ तो तुम्हें पंचमकाल में भी सच्चे गुरू मिल जाएंगे।
जब चंदना ने सच्ची भक्ति की तो महावीर को लौटकर आना पड़ा। सबरी ने श्रद्धा रखी तो श्रीराम को भी आना पड़ा। ऐसे ही सच्ची श्रद्धा, यदि देव, शास्त्र, गुरू के प्रति रखेंगे तो हम भी कभी न कभी अवश्य ही भगवान बन जाएंगे। इस अवसर पर शांति कासलीवाल, प्रमोद जैन, कैलाश जैन, प्रकाश कासलीवाल, दिनेश जैन आदि मौजूद रहे। यह जानकारी मीडिया प्रभारी प्रदीप झांझरी ने दी।