Monday, September 25, 2023
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सनातन परंपरा में संन्यासी बनना सबसे कठिन कार्य है

सनातन परंपरा में संन्यासी बनना सबसे कठिन कार्य है

अवैध तरीके से गठित अखाडों पर होगी कानूनी कार्रवाई…

अक्षरविश्व प्रतिनिधि .उज्जैन।सनातन परंपरा में संन्यासी बनना सबसे कठिन कार्य है। शिक्षा, ज्ञान और संस्कार के साथ सामाजिक स्तर को ध्यान में रखते हुए संन्यासी को महामंडलेश्वर जैसे पद पर बिठाया जाता है। अखाड़ा प्रमुख के पद हासिल करने में संतों को वर्षों लग जाते हैं।

शैव एवं वैष्णव संप्रदाय के अखाड़ों में अलग-अलग परंपरा है। शैव मत के अखाड़ों में संन्यास और नागा परंपरा का प्रचलन है। मान्यता प्राप्त सनातनी परंपरा के 13 अखाड़ों के अलावा कतिपय संगठनों द्वारा हाल ही के दिनों में अखाड़े का गठन कर महामंडलेश्वर जैसे पद भी बांटे जा रहे है। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्रपुरी का कहना है कि अवैध तरीके से गठित अखाडों पर कानूनी कार्रवाई होगी।

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की ओर से देश के 13 अखाड़ों को ही मान्यता प्राप्त है। आदि शंकराचार्य ने आठवीं सदी में 13 अखाड़े बनाए थे। आज तक वही अखाड़े बने हुए हैं। बीते कुछ वर्षो से कतिपय संगठन सनातनी होने का हवाला देकर अखाड़ों का गठन कर रहे है।

इतना ही नहीं अखाड़ों में महामंडलेश्वर जैसे पद भी दे रहें है। उज्जैन में महाकाल भैरव अखाड़़े ने महाकाल मंदिर के पुजारी को महामंडलेश्वर का पद दिया है। अ.भा. अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रविन्द्रपुरी का कहना है कि सनातन परंपरा में संन्यासी बनना सबसे कठिन कार्य है। महामंडलेश्वर बनना तो और भी कठिन है। अखाड़ों में मंडलेश्वर और महामंडलेश्वर जैसे पद पाने के लिए संतों को यह बताना होगा कि वे इसके काबिल हैं या नहीं।

महामंडलेश्वर पूजन कर रहे हैं!

महाकाल भैरव अखाड़ा द्वारा महामंडलेश्वर की उपाधि मिलने के संबंध में जारी प्रेस विज्ञप्ति को लेकर रमण त्रिवेदी से प्रतिक्रिया के लिए संपर्क किया गया। फोन उनके सहायक ने अटेंड किया और कहा कि अभी महामंडलेश्वर पूजन में व्यस्त है बात नहीं करेगे बाद में फोन लगाना। बता दें कि एक प्रेस नोट के माध्यम से बताया गया कि त्रिवेदी को यह उपाधि महाकाल भैरव अखाड़ा द्वारा प्रदान की गई है।

कुंभ मेला में मिलती है उपाधि

मान्यता प्राप्त 13 अखाड़ों में उपाधि के लिए संतों को अर्जियां देना होती है। अखाड़ों के आचार्य पीठाधीश्वर, पदाधिकारी व पंच परमेश्वर निर्णय लेते है कि किसे उपाधि देनी है और किसे नहीं। अगर संतों में योग्यता नहीं होती है, तो वे पद पाने से उसी तरह वंचित हो जाएंगे, जिस तरह नौकरी के लिए परीक्षा में फेल होने वाले अभ्यर्थी रह जाते हैं। अखाड़े कुंभ मेला में महामंडलेश्वर व मंडलेश्वरों की उपाधि प्रदान करते हैं। यही कारण है कि देश के अलग-अलग क्षेत्रों में सक्रिय संतों में अखाड़ों से जुड़कर उपाधि पाने की होड़ रहती हैं।

मान्यता प्राप्त 13 अखाड़े

श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी

श्री पंच अटल अखाड़ा

श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी

श्री तपोनिधि आनंद अखाड़ा पंचायती

श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा

श्री पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा

श्री पंचदशनाम पंच अग्नि अखाड़ा

श्री दिगंबर अनी अखाड़ा

श्री निर्वानी अनी अखाड़ा

श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा

श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा

श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन

श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा

महामंडलेश्वर बनने के लिए जरूरी योग्यता

व्यक्ति में वैराग्य होना चाहिए

संन्यासी होना चाहिए

न घर-परिवार और न ही पारिवारिक संबंध होने चाहिए

आयु का कोई बंधन नहीं

संस्कृत, वेद-पुराणों का ज्ञान ज़रूरी, कथा कहें, प्रवचन दें

कोई व्यक्ति या तो बचपन में अथवा जीवन के चौथे चरण यानी वानप्रस्थाश्रम में महामंडलेश्वर बन सकता है.

अखाड़ों में परीक्षा ली जाती है

महामंडलेश्वर के कार्य

सनातन धर्म का प्रचार देश के कोने-कोने में करना

अपने ज्ञान का प्रकाश फैलाना

भटके लोगों को मानवता की सही राह दिखाना

सरकार भी नजर रखे फर्जी अखाड़ों पर

अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्रपुरी का कहना है कि अवैध तरीके से गठित अखाड़ों पर कानूनी कार्रवाई होगी। अखाड़ा परिषद की ओर से देश के 13 अखाड़ों को ही मान्यता प्राप्त है। परिषद द्वारा मान्यता प्राप्त अखाड़ों के अलावा अन्य अखाड़े को महत्व नहीं दिया जाएगा। सरकार भी फर्जी अखाड़ों पर नजर रखें। रजिस्ट्रेशन करने वाले अधिकारी भी इस बात को सुनिश्चित करें, कि अखाड़ा नाम से कोई नई संस्था रजिस्टर्ड नहीं की जाए। परिषद की बैठक में प्रस्ताव पारित किया गया कि 13 अखाड़ों के अलावा किसी और अखाड़े को मान्यता नहीं दी जाएगी, और न ही ऐसे किसी फर्जी अखाड़े को महत्व दिया जाएगा। सरकार मान्यता प्राप्त अखाड़ों के अलावा और किसी को अन्य सुविधाएं नहीं दें।

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