मामला महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ द्वारा कुमार विश्वास के कार्यक्रम से जुड़े सोशल मीडिया पर वायरल हुए पत्रों का
निदेशक बोले मुझे जहां शिकायत करना थी कर दी
अक्षरविश्व प्रतिनिधि .उज्जैन। कुमारविश्वास द्वारा राम कथा में की गई विवादास्पद टिपण्णी के बाद अगले दिन सोशल मीडिया पर कार्यक्रम निरस्त होने का एक पत्र वायरल हुआ। महाराजा विक्रमादित्य शोध पीठ के निदेशक श्रीराम तिवारी द्वारा कुमार विश्वास के कार्यक्रम को लेकर जारी विवादास्पद पत्र को फर्जी बताकर एक अन्य पत्र जारी कर मामले का पटाक्षेप करने की कोशिश की।
पहले वाला पत्र फर्जी था या सही यह जांच का विषय है। असली और नकली पत्र सवालों के घेरे में है,क्योंकि अभी तक शोध पीठ की ओर से नकली पत्र जारी करने वाले के खिलाफ पुलिस या साइबर क्राइम में कोई शिकायत नहीं की गई है। इस पर शोध पीठ के निदेशक की कार्यप्रणाली शंका के घेरे में है।
यदि पहले जारी हुआ कार्यक्रम निरस्ती का पत्र फर्जी तो उसी पत्र क्रमांक से थोड़ी देर बाद दूसरा पत्र कैसे जारी हुआ ?
निदेशक ने जिस पत्र को फर्जी बताया है वह महाराजा विक्रमादित्य शोध पीठ के लेटर पेड पर जारी हुआ है। दोनों का पत्र क्रमांक समान है। इन पर निदेशक श्रीराम तिवारी के हस्ताक्षर है। कार्यक्रम निरस्ती का पत्र फर्जी है,तो लेटर पेड का दुरूपयोग और उस पर निदेशक के हस्ताक्षर होना फ्राड और अपराध है। ऐसी स्थिति में तो पत्र का गलत उपयोग करने वाले के खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज कराना चाहिए था। शोध पीठ का ही लेटर हेड, एक जैसे पत्र क्रमांक और निदेशक के हूबहू जाली हस्ताक्षर होने के बाद भी साइबर क्राइम में शिकायत नहीं करना समझ से परे है।
यह भी कहना है निदेशक का
एक छोटे से भवन में ऑफिस चलता है। इसमें मेरे अलावा दो-तीन बाबू, एक प्यून है। विक्रमोत्सव चल रहा है। ऑफिस में लोगों का आना-जाना बना हुआ है। इस बीच शायद किसी ने गुपचुप तरीके से लेटर हेड ले जाकर उसका गलत उपयोग किया है। निदेशक से जब पूछा गया की पत्र फर्जी था, लेटर पेड, आपके हस्ताक्षर का गलत उपयोग अपराध है फिर भी पुलिस प्रकरण दर्ज क्यों नहीं कराया जा रहा ?
उन्होंने कहा कि मामला तो गंभीर है, लेकिन मेरे अधिकार क्षेत्र में जो है वही कर सकता हूं। मैं महाराजा विक्रमादित्य शोध पीठ का सामान्य और छोटा अधिकारी हूं। इस तरह के मामले में कार्रवाई के लिए सीधे कोई कदम नहीं लें सकता। मुझे जहां शिकायत करनी थी, कर दी है। वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देश पर इसमें पुलिस कार्रवाई की जाएगी।
इसलिए कई सवाल…. ?
- पहले और दूसरे पत्र का क्रमांक म.वि.शो./389 एक ही और इस पर हाथ से लिखे गए पत्र क्रमांक के अक्षर भी एक ही समान हैं।
- दोनों पत्रों में निदेशक के साइन एक जैसे कैसे हैं ?
- एक पत्र फर्जी है,तो उसी पत्र क्रमांक से दूसरा पत्र कैसे जारी हुआ ?
- फर्जी पत्र जारी करने वाले को शोध पीठ के पत्रों का वर्तमान सीरियल नंबर कैसे पता?
- यदि सच में कोई फर्जी पत्र जारी हुआ था तो इसकी शिकायत पुलिस में क्यों नहीं की गई?
- आयोजक शोधपीठ है तो फिर प्रकरण दर्ज कराने के लिए अन्य को शिकायत क्यों की जा रही है।