देवउठनी एकादशी? जाने पूजा विधि व महत्व

By AV NEWS

कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी अथवा देवोत्थान एकादशी कहा जाता है। हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. सभी एकादशियों में देवउठनी एकादशी विशेष महत्व रखती है . इस दिन श्रीहरि चार माह बाद योग निद्रा से जागते हैं

Contents
मान्यतापुरानी मान्यता के अनुसार, राक्षस कुल में कन्या का जन्म हुआ जिसका नाम वृंदा रखा गया। वृंदा भगवान विष्णु की सच्ची भक्त थी और उनकी भक्ति में लीन रहती थी। जब वृंदा विवाह योग्य हुई, तो उसके माता-पिता ने उसका विवाह समुद्र मंथन से उत्पन्न हुए जलंधर नाम के राक्षस से कर दिया। वृंदा भगवान विष्णु की भक्त के साथ पतिव्रता स्त्री थी, जिसकेकारण उनके पति जलंधर और शक्तिशाली हो गया। जलंधर जब भी युद्ध पर जाता, वृंदा पूजा अनुष्ठान करती, वृंदा की भक्ति के कारण जलंधर को कोई भी मार नहीं पा रहा था। जलंधर ने देवताओं पर चढ़ाई कर दी, सारे देवता जलंधर को मारने में असफल हो रहे थे। जलंधर उन्हें बुरी तरह से हरा रहा था।

12 नवंबर 2024 को देवउठनी एकादशी का व्रत है. इस एकादशी को प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।  शादी आदि शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं। देवउठनी एकादशी के दिन ही तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी से करवाया जाता है। जिससे घर में पुत्री नहीं होती, वहां तुलसी जी का विवाह करवा कर कन्यादान का पुण्य प्राप्त किया जाता है।

तुलसी विवाह  सामग्री 

  • पूजा चौकी, शालीग्राम जी, तुलसी का पौधा, गन्ना, मूली, कलश, नारियल, कपूर
  • आंवला, बेर, मौसमी फल, शकरकंद, सिंघाड़ा, सीताफल, गंगाजल, अमरूद
  • दीपक, धूप, फूल, चंदन, रोली, मौली, सिंदूर, लाल चुनरी, हल्दी, वस्त्र
  • सुहाग सामान- बिंदी, चूड़ी, मेहंदी, साड़ी, बिछिया आदि

देवउठनी एकादशी पूजा विधि 

  • एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें।
  • स्नान के पश्चात भगवान विष्णु का स्मरण करते हुए व्रत का संकल्प लें।
  • संकल्प के बाद घर के आंगन को अच्छे से धोकर शुद्ध कर लें।
  • फिर घर के आंगन में भगवान विष्णु के पैरों की आकृति बनाएं।
  • ध्यान रहे पैरों की आकृति घर के अंदर की तरफ आती ही बनाएं।
  • यदि आपके घर में आंगन नहीं है तो आप ये कार्य अपने पूजा घर में कर सकते हैं
  • एकादशी के पूरे दिन भगवान विष्णु के मन्त्रों का जाप और पाठ करें।
  • रात के समय पूरे घर के साथ साथ घर की चौखट और आंगन में दिए जलाएं।
  • भगवान विष्णु के पुनः वैकुण्ठ लौटने की खुशी में दीप जलाने की परंपरा मानी जाती है।
  • रात्रि में भगवान विष्णु समेत सभी देवी देवताओं की आरती करें।
  • शंख और घंटी बजाकर भगवान विष्णु को उठाएं।
  • भगवान विष्णु को भोग लगाएं और प्रसाद वितरण करें।
  • एकादशी की अगली सुबह से भगवान विष्णु की नियमित पूजा आरंभ कर दें।

तुलसी विवाह विधि

कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी के दिन तुलसी के पौधे के गमले को गेरु आदि से सजाते हैं। उसके चारों तरफ ईख का मंडप बनाकर उसके ऊपर ओढनी ओढ़ते हैं। फिर गमले को साड़ी में लपेटकर तुलसी को चूड़ियां पहनाई जाती है और श्रृंगार किया जाता है। इसके बाद भगवान गणेश आदि देवताओं तथा शालिग्राम जी का पूजन किया जाता है। फिर तुलसी जी की षोडशोपचार विधि से पूजा की जाती है और मंत्र का जाप किया जाता है। इसके बाद एक नारियल के साथ टिका के दक्षिणा में रखते हैं तथा भगवान शालिग्राम की मूर्ति का सिहासन हाथ में लेकर तुलसी जी की सात परिक्रमा कराई जाती है। फिर आरती उतारकर विवाह उत्सव संपन्न किया जाता है। हिंदू विवाह के समान ही तुलसी विवाह के भी सभी कार्य संपन्न होते हैं। विवाह के समय मंगल गीत भी गाए जाते हैं।

तुलसी विवाह में करें इस मंत्र का जाप 

  • भोर, भाजी, आंवला। उठो देव म्हारा सांवरा. तुलसी विवाह वाले दिन श्रीहरि विष्णु को जाग्रत करने और उनसे संसार का कार्यभार संभालने के लिए ये मंत्र बोलकर उनसे प्रार्थना की जाती है.
  • ‘महाप्रसाद जननी सर्व सौभाग्यवर्धिनी, आधि व्याधि हरा नित्यं तुलसी त्वं नमोस्तुते’
मान्यता
पुरानी मान्यता के अनुसार, राक्षस कुल में कन्या का जन्म हुआ जिसका नाम वृंदा रखा गया। वृंदा भगवान विष्णु की सच्ची भक्त थी और उनकी भक्ति में लीन रहती थी। जब वृंदा विवाह योग्य हुई, तो उसके माता-पिता ने उसका विवाह समुद्र मंथन से उत्पन्न हुए जलंधर नाम के राक्षस से कर दिया। वृंदा भगवान विष्णु की भक्त के साथ पतिव्रता स्त्री थी, जिसकेकारण उनके पति जलंधर और शक्तिशाली हो गया। जलंधर जब भी युद्ध पर जाता, वृंदा पूजा अनुष्ठान करती, वृंदा की भक्ति के कारण जलंधर को कोई भी मार नहीं पा रहा था। जलंधर ने देवताओं पर चढ़ाई कर दी, सारे देवता जलंधर को मारने में असफल हो रहे थे। जलंधर उन्हें बुरी तरह से हरा रहा था।

दुखी होकर सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में गए और भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धारण कर लिया और छल से वृंदा के पतिव्रत धर्म को नष्ट कर दिया। इससे जलंधर की शक्ति खत्म हो गई और वह युद्ध में मारा गया। जब वृंदा को भगवान विष्णु के छल का पता चला, तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर का बन जाने का शाप दे दिया। भगवान को पत्थर का होते देख सभी देवी- देवता में हाहाकार मच गया, फिर माता लक्ष्मी ने वृंदा से प्रार्थना की। तब वृंदा ने जगत कल्याण के लिए अपना शाप वापस ले लिया और खुद जलंधर के साथ सती हो गई। फिर उनकी राख से एक पौधा निकला जिसे भगवान विष्णु ने तुलसी नाम लिया और खुद के एक रूप को पत्थर में समाहित करते हुए कहा कि आज से तुलसी के बिना वह प्रसाद स्वीकार नहीं करेंगे। इस पत्थर को शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जाएगा। कार्तिक महीने में तुलसी जी का शालिग्राम के साथ विवाह भी किया जाता है।

देवउठनी एकादशी कथा

एक बार भगवान विष्णु से लक्ष्मी जी ने आग्रह के भाव में कहा कि वह दिन रात जागते हैं लेकिन एक बार सोते हैं तो फिर लाखों-करोड़ों वर्षों के लिए सो जाते हैं; उस समय समस्त चराचर का नाश भी कर डालते हैं, इसलिए वह नियम से विश्राम किया करें ताकि उन्हें कुछ समय का आराम मिले।

लक्ष्मी जी की बात सुनकर नारायण मुस्कुराए और कहा कि वह ठीक कह रहे हैं। उनके जागने से सब देवों और खासकर लक्ष्मी जी को कष्ट होता है। उनको उनकी वजह से जरा भी आराम नहीं मिलता। उनको उनकी सेवा से वक्त नहीं मिलता, इसलिए आज से वह हर वर्ष चार माह वर्षा ऋतु में चयन किया करेंगे। उनकी यह निद्रा अल्पनिद्रा और प्रलयकालीन, महानिद्रा कहलाएगी। उनकी यह अल्पनिद्रा उनके भक्तों के लिए परम मंगलकारी होगी।

इस काल में उनके जो भी भक्त उनकी शयन की भावना कर उनकी सेवा करेंगे और शयन व उत्थान के उत्सव को आनंद पूर्वक आयोजित करेंगे। इसलिए इस कथा को देवउठनी कथा कहा जाता है क्योंकि भगवान विष्णु जी चार माह के बाद अपनी निद्रा से बाहर आते हैं और सारे शुभ कार्य पूरे संसार में पूर्ण होते हैं ।

देवउठनी एकादशी का महत्व

हिंदू धर्म में देवउठनी एकादशी व्रत का महत्व सबसे अधिक माना जाता है। देवउठनी एकादशी का व्रत करने से एक जन्म, रात्रि बोध से दो जन्म और व्रत पालन करने से कई जन्मों के पापों का नाश होता है। इस दिन से कई जन्मों का उद्धार होता है एवं बड़ी से बड़ी मनोकामना पूर्ण होती है। इस दिन जगराता करने से कई पीढ़ियों को मृत्यु के बाद स्वर्ग मिलता है। इस दिन उपवास रखने का पुण्य कई तीर्थों में दर्शन के पुण्य से अधिक तथा 100 अश्वमेध यज्ञ और कई राजसूर्य यज्ञ करने के बराबर माना गया है।

इस दिन जागरण का अधिक महत्व होता है। इससे मनुष्य इंद्रियों पर विजय पाने योग्य बनता है। इस व्रत की कथा सुनने और पढ़ने से 100 गायों के दान के बराबर पुण्य मिलता है, जब वह नियम पूर्वक विधि विधान के साथ किया जाए।

Share This Article