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कांग्रेस आज-कल..तब कांग्रेस के कार्यकर्ता बनाने के कारखाने होते थे कॉलेज के छात्रसंघ चुनाव..!

ललित ज्वेल. उज्जैन:कांग्रेस के उज्जैन दक्षिण प्रत्याशी चेतन यादव के चुनाव संचालक एवं उविप्रा के पूर्व अध्यक्ष राजहुजूरसिंह गौर के अनुसार जब से कॉलेजों में छात्र राजनीति समाप्त हुई, प्रत्यक्ष तरीके से चुनाव बंद हुए, राजनीति में मंजे हुए नेताओं की कमी आ गई।

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उस जमाने में मालवा में कांग्रेस के कार्यकर्ता बनाने के कारखाने विक्रम विवि से संबंद्ध 9 जिलों से जुड़े 100 से अधिक कॉलेज हुआ करते थे। यहां से हमे तैयार कार्यकर्ता मिलते और बाद में वे सक्रिय कांग्रेस कार्यकर्ता बन जाते थे। चूंकि कॉलेजों में अलग-अलग गुट छात्र राजनीति करते थे,ऐसे में तब के युवा कांग्रेस कार्यकर्ता किसी एक नेता के होकर रह जाते थे। अक्षरविश्व ने उनसे सीधी चर्चा की। पुरानी यादों में खोकर जो उन्होने बताया,वह इस प्रकार है-

 

फ्लश बैक….1993 की बात है। प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष दिग्विजयसिंह थे। उनके नेतृत्व में विधानसभा-1993 का चुनाव लड़ा जा रहा था। कांग्रेस ने उज्जैन दक्षिण से उस समय के कांग्रेस के युवा तुर्क राजहुजूरसिंह गौर को टिकट दिया। टिकट मिलने की घोषणा होने पर शाम को उनके समर्थकों ने महाकाल से एक विशाल जुलूस निकाला। जुलूस जब रास्ते में ही था, तभी तत्कालिन कलेक्टर की सूचना राजहुजूरसिंह गौर के पास आई कि वह तुरंत उनसे चर्चा करें। गौर ने जब कलेक्टर से चर्चा की तो उन्हे बताया गया कि कांग्रेस ने उज्जैन दक्षिण से महावीरप्रसाद वशिष्ठ को बी-फार्म दिया है। इस पर गौर ने जुलूस रोक दिया। उनके समर्थकों में काफी रोष था। इधर वे भी आहत थे कि ऐसा कैसे कर दिया?

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अक्षरविश्व को यह जानकारी देते हुए गौर अपनी धर्मपत्नि की ओर ईशारा करते हुए कहते हैं- राजनीति में कुछ होता है तो जंगल में आग की तरह बात फैलती है। मैं जब रात को घर आया, तब तक इन्हे मालूम हो गया था। ये फूट-फूटकर रोई। मैरी आंखों से भी अश्रु बह निकले। अगली सुबह राजा (दिग्विजयसिंह) का टेलीफोन मैरे पास आया, बोले: राजहुजूर, ये राजनीति है। तुम इसे अन्यथा मत लेना। कोई कारण था कि मुझे तुम्हारा टिकट बदलना पड़ा। चिंता मत करो, तुम मैरे लिए सरकार बनने के बाद भी वही रहेगो जो अभी हो। बस, दक्षिण से वशिष्ठ हार न जाए, इसका ध्यान रखना। तुम उनसे जाकर मिल लो। गौर के अनुसार वे वशिष्ठ के घर मिलने गए और उनसे चर्चा की। वहीं से राजा को टेलीफोन लगाकर कहा- मैं ओर मैरे समर्थक महावीर प्रसाद वशिष्ठ के साथ हैं। फिर भी यदि ये हार जाते हैं तो मैरे सिर ठिकरा मत फोडऩा।

आप कांग्रेस के कैसे आए और आज कांग्रेस कहां खड़ी है …..?
राजहुजूरसिंह गौर से जब जानना चाहा कि वे कांग्रेस में कब ओर कैसे आए? कांग्रेस आज से 20 वर्ष पूर्व कहां थी और आज कहां है? आगे इसका भविष्य क्या है? उन्होने सिलसिलेवार जवाब दिया- जब मैं किशोर आयु का था,विनोबा भावे उज्जैन आए थे।

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भू-दान आंदोलन के तहत उनका आना हुआ था। तब स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अमृतलाल अमृत से मिलना हुआ। संत विनोबा भावे और श्री अमृत को नजदीक से देखा। कांग्रेस को भी जाना। श्री अमृत का सतत मार्गदर्शन मुझे छात्र राजनीति में लगातार मिला। मैंने गांधी दर्शन को भी नजदीक से देखा और फिर कांग्रेस से जुड़कर छात्र राजनीति करने लगा। इसके बाद पिछे मुड़कर नहीं देखा। उस जमाने में कांग्रेस के कार्यकर्ता बनाने के कारखाने विक्रम विवि से संबद्ध 9 जिलों से जुड़े 100 से अधिक कॉलेज हुआ करते थे।

यहां से हमे तैयार कार्यकर्ता मिलते और बाद में वे सक्रिय कांग्रेस कार्यकर्ता बन जाते थे। चूंकि कॉलेजों में अलग-अलग गुट छात्र राजनीति करते थे,ऐसे में तब के युवा कांग्रेस कार्यकर्ता किसी एक नेता के होकर रह जाते थे। विपक्ष सामने था नहीं, ऐसे में कांगेस के गुट ही एक दूसरे को निपटा दिया करते थे।

भाजपा जब आई तो कांग्रेस के दूसरी पंक्ति के नेताओ की औसत आयु थी 40 वर्ष। आज वे 60 पार कर चुके। इनके बाद की पीढ़ी आज 40 वर्ष की आयु तक आ गई, जो लगभग 20 वर्ष की आयु में भाजपा से जुड़ गई थी। इन 20 वर्षो में से 10 वर्ष केंद्र में कांग्रेस की सरकार रही लेकिन मध्यप्रदेश में कौन क्षत्रप रहे, इस जुगत में सभी नेताओं में आपसी खींचतान चलती रही। अब प्रदेश में दो ही नेता दिग्विजयसिंह एवं कमलनाथ हैं, जो कांग्रेस को पूरी तरह से एकजुट करके आगे ला रहे हैं।

दूसरी पंक्ति इन्हे संभाल रही है और तीसरी पंक्ति को तैयार करने के लिए गत बार की तरह इस बार भी युवाओं को चुनाव लड़वाया जा रहा है। ऐसे में हमारे सामने एक ही लक्ष्य है। इस बार कांग्रेस सरकार बने। यही कारण है कि पुरानी पीढ़ी अपने अनुभवों के साथ प्रत्याशियों को आगे बढ़ा रही है। चर्चा में उन्होने दावा किया कि कांग्रेस उठ खड़ी हुई है। आगे का सफर करने के लिए तैयार है।

आनेवाले समय में कांग्रेस बहुत अच्छा प्रदर्शन करेगी। जनता भी अब भाजपा से उब गई है। ऐसे में विकल्प केवल कांग्रेस ही है। आवश्यकता इस बात की है कि हम जनता के बीच कांग्रेस के प्रति विश्वास को दृढ़ करें। इसके लिए सामुहिक आहूति की आवश्यकता है। कांग्रेस के नेता/कार्यकर्ता यह सब करने में जुटे हुए हैं।

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