दादा के ‘सम्मान’ में ‘अवसरवादी’ कतार में

उज्जैन। भाजपा के वरिष्ठ नेता सत्यनारायण जटिया को पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने संसदीय बोर्ड,चुनाव समिति में शामिल कर पॉवर गेम में क्या लौटाया, वर्षों से उनसे दूरी बना चुके तमाम नेता और कार्यकर्ता उनके करीब नजर आने लगे।

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कौन दादा का ख़ास..कौन सबसे करीब यह दिखाने की होड़ दादा के नगर आगमन पर देखने मिली। नारा तो यह था कि दादा के सम्मान में भाजपा मैदान में….पर जटियाजी को पद मिलने पर जो दिखा वह था दादा के ‘सम्मान’ में ‘अवसरवादी’ कतार में।

बीजेपी के संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति में सत्यनारायण जटिया का नाम आते ही दादा के साथ वाली तस्वीरें अनेक नेताओं ने खोजकर, झाड़ पोंछकर सोशल मीडिया पर चिपका दी।

साढ़े सात साल तक साइड ऑन रहने से पहले सात बार के सांसद, एक बार राजयसभा सदस्य रहे सत्यनारायण जटिया का भाजपा की सर्वोच्च नीति निर्धारक इकाई संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति में शामिल होना उज्जैन की राजनीति के लिए चौंकाने वाला निर्णय है। वे नेता और कार्यकर्ता भी आश्चर्य में थे, जो जटिया जी को हाशिये पर मानने लगे थे।

ऐसे नेता जो साढ़े सात साल में सात बार भी जटिया जी की चौखट पर नहीं गए अचानक सक्रिय हो गए। केंद्रीय चुनाव समिति में आने के बाद जटिया जी का विधानसभा और लोकसभा चुनावों में कितना दखल होगा यह कहना मुश्किल है, पर जटिया जी को पद मिलने के बाद उनकी जय-जयकार करने वाले मानते हंै कि जटिया जी जरूर अनुसूचित जाति से हैं लेकिन उनकी सभी वर्गों में पैठ है। वरिष्ठता के नाते दादा की बात ऊपर तक सुनी जाएगी, तो हमारा भी महत्व बढ़ेगा।

यही वजह है कि सक्रिय राजनीति से किनारे हो चुके जटिया जी के साथ उन स्थानीय नेताओं के चेहरे भी बैनर और पोस्टर में दिखने लगे हैं जो जटिया जी के साइड लाइन होने के कारण एक तरह से हाशिये पर चले गए थे। स्थानीय राजनीति में भी इनकी दखलअंदाजी बेहद कम हो गई थी।

स्थानीय स्तर पर होने वाले कार्यक्रमों में भी वे नजर आना तक बंद हो गए थे। केंद्रीय संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति में शामिल होने के बाद सत्यनारायण जटिया उज्जैन पहुंचे तो होर्डिंग और बैनर लग गए हैं।

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