नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी ने गुरुवार को उत्तर प्रदेश के मंत्री भूपेंद्र चौधरी को UP का नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया। इस मामले पर चर्चा करने के लिए बीजेपी के शीर्ष नेताओं ने सीएम योगी आदित्यनाथ और चौधरी को दिल्ली बुलाने के बाद यह फैसला किया है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट नेता चौधरी ने बुधवार देर शाम भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा से मुलाकात की। चौधरी स्वतंत्र देव सिंह की जगह लेंगे, जिन्हें योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार में मंत्री बनाया गया है।पूर्वी उत्तर प्रदेश से आने वाले मुख्यमंत्री के साथ, भाजपा पार्टी के राज्य प्रमुख के रूप में चौधरी की नियुक्ति के साथ एक क्षेत्रीय संतुलन बनाने की कोशिश कर रही है।
अगर नए प्रदेश अध्यक्ष के राजनीतिक करियर की बात करें तो इसकी शुरूआत विश्व हिंदू परिषद से हुई थी. वीएचपी से ही वो बीजेपी में आए हैं. उन्होंने 1991 में बीजेपी ज्वॉइन की थी. पिछली बार पार्टी ने उन्हें 2016 में पहली बार यूपी विधान परिषद का सदस्य चुना गया है. इसके पहले वे बीजेपी के क्षेत्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं.
बताया जाता है कि बीजेपी पश्चिमी यूपी में जाट समाज को साधने की तैयारी में लगी हुई है. वहीं भूपेंद्र चौधरी की जाट समाज और पश्चिमी यूपी में मजबूत पकड़ है. ऐसे में उन्हें राज्य में बीजेपी की कमान सौंपी गई है. इससे पहले वे संगठन में लंबे समय तक काम चुके हैं. भूपेंद्र चौधरी 1999 में सपा संस्थापक मुलायम सिंह के खिलाफ लोकसभा का चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन वे उस चुनाव में हार गए थे.
क्या है पार्टी की रणनीति?
भूपेंद्र चौधरी को यूपी में पार्टी की कमान सौंपकर पश्चिमी यूपी में आरएलडी-सपा के गठबंधन का असर कम करने की भी रणनीति मानी जा रही है.
बीजेपी को 2022 के चुनाव में राज्य के जिस इलाके में सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा है, वो पश्चिमी यूपी के सहारनपुर से लेकर मुजफ्फरनगर, बिजनौर, मुरादाबाद, अमरोहा, बरेली और रामपुर है. चौधरी इसी क्षेत्र से आते हैं.
बताया जा रहा है कि इससे पश्चिमी यूपी की जाटों के प्रभाव वाली डेढ़ दर्जन लोकसभा सीटों पर बीजेपी को फायदा हो सकता है. जाट समुदाय से आने वाले भूपेंद्र चौधरी को बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के साथ-साथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का भी करीबी माना जाता है.
इसके अलावा आरएसएस के पुराने स्वयंसेवक हैं, ऐसे में प्रदेश अध्यक्ष के रूप में जाट चेहरा लाकर बीजेपी जहां किसान आंदोलन के कारण पार्टी से दूर माने जा रहे जाटों और किसानों को साध सकती है तो पश्चिमी यूपी में पार्टी का आधार और मजबूत कर सकती है.