नेशनल सिक्योरिटी एजेंसी में काम करने वाला एक्शन मैन श्रीकांत तिवारी (मनोज बाजपेयी) अब बदल गया है. उसने नौकरी छोड़ आईटी कंपनी ज्वॉइन कर ली है. बच्चों और परिवार के साथ फैमिली टाइम बिताता है. पत्नी सुची (प्रियामणि) से सुलह रखने की पूरी कोशिश करता है. मतलब अब श्रीकांत तिवारी देशसेवा की वर्दी उतारकर पारिवारिक माहौल में खुद को ढालने का पूरा प्रयास कर रहा है. लेकिन उसके अंदर अभी भी देश सेवा की व्याकुलता भरी पड़ी है. एक घटना के बाद श्रीकांत आखिरकार आईटी कंपनी को छोड़ वापस नेशनल सिक्योरिटी के सीक्रेट एजेंसी को ज्वॉइन कर लेता है. पर इस बार उसके मिशन में श्रीकांत का परिवार भी दुश्मनों की नजर में है. ऐसे में क्या श्रीकांत अपने मिशन के साथ-साथ परिवार की सुरक्षा कर पाएगा? मिशन पूरा करने और परिवार को बचाने के लिए श्रीकांत को क्या कुर्बानी देनी होगी?
द फैमिली मैन द फैमिली मैन का दूसरा सीजन 3 जून को अमेजन प्राइम वीडियो पर रिलीज कर दिया गया है. सीरीज के पहले सीजन ने जिस तरह का ड्रामा लोगों को पेश किया, वह हर किसी को पसंद आया. अपनी ऑडियंस के इस उम्मीद को द फैमिली मैन 2 में भी बरकरार रखा गया है. एक्शन और ह्यूमर तो है ही लेकिन इस बार सीरीज में एक नई कहानी है जिसके तार पिछले सीजन के आतंकवादी मिशन से जुड़े हैं. पहले सीजन के सभी मुख्य पात्र के अलावा इस सीजन में एक्ट्रेस सामंथा अक्किनेनी भी नजर आई. आइए जानें कैसा रहा द फैमिली मैन 2 का कारवां, क्या नया रहा इस सीजन में और क्या अब सीजन का द एंड हो गया.
कहानी
द फैमिली मैन सीरीज के निर्देशक राज निदिमोरु और कृष्णा डीके ने दर्शकों को बेहतरीन कहानी परोसने में कोई कमी नहीं छोड़ी. जहां पिछली बार श्रीकांत तिवारी और उनकी सीक्रेट एजेंसी की लड़ाई आतंकवादियों से थी, इस बार उनका सामना एक श्रीलंकन निष्कासित सरकार के बागी गुट से भी है जो खुद को क्रांतिकारी मानते हैं. इस गुट में कई ऐसे सदस्य हैं जो अपनी सरकार को वापस लाने के लिए जान तक देने को तैयार हैं. इन्हीं में एक महिला बागी भी है राजी (सामंथा अक्किनेनी), जो अकेले ही दस लोगों को निपटाने में काफी है. उसे हाथ-पैर और बंदूक चलाने के अलावा प्लेन तक चलाने का प्रशिक्षण मिला है. मिशन को पूरा करने की जिम्मेदारी उसके कंधों पर है.
प्रधानमंत्री बसु (सीमा बिस्वास) और श्रीलंका के मंत्री दोनों देश के बीच एक समझौते का करार होना है. इसके लिए श्रीलंका की सरकार उस बागी गुट के एक खास आदमी की मांग करती है. प्रधानमंत्री इसके लिए हामी भरती हैं और फिर उस बागी गुट के सदस्य को ढूंढ़ने का काम एजेंसी को सौंप दिया जाता है. उस बागी गुट को एजेंसी ढूंढ लेती है पर उसे श्रीलंका को सौंपने से पहले एक बम धमाके में उसकी मौत हो जाती है. इस मौत के बाद उसका भाई जो कि बागी गुट का लीडर तिलमिला जाता है और अपने मिशन को सक्रिय करने में आतंकवादी समीर (दर्शन कुमार) से हाथ मिला लेता है. मजे की बात तो ये है कि समीर ने ही उसके बागी भाई की जान ली है जिसका पता उनके अलावा किसी को भी नहीं है. बागी गुट का लीडर भाई की मौत का बदला लेने और अपनी सरकार को सक्रिय करने के लिए अपने आदमियों को मिशन पर लगा देता है.
इस मिशन का मकसद प्रधानमंत्री बसु और श्रीलंका के मंत्री की मुलाकात को मौत के मंजर में बदलने का है. इसके लिए वे जिस तकनीक का इस्तेमाल करते हैं वह बेहद खतरनाक और गुप्त होता है. यह तकनीक सिर्फ राजी को पता है जिसे प्लेन उड़ाने की ट्रेनिंग मिली है. सांवला रंग-रूप, चेहरे पर शांत पर आक्रोशित हाव-भाव, पुरुषों की ज्यादती सहती राजी, चेन्नई में एक छोटी सी फैक्ट्री में काम करती है. वह अपनी असल पहचान छुपाकर रह रही है जो कि बस उस दिन का इंतजार कर रही है जब उसके बागी भाई-बहनों की मौत का बदला लिया जा सके. मिशन के ऐलान के बाद राजी वापस अपने बचे हुए बागी साथियों से मिलती है और काम को पूरा करने में लग जाती है.
वहीं दूसरी ओर श्रीकांत तिवारी अब एक आईटी फर्म में काम करने लगा है. पत्नी और बच्चों के सामने अपनी पारिवारिक छवि बनाने की कोशिश कर रहा है. लेकिन उसके मन में अब भी एजेंसी में चल रही घटनाओं को जानने की सुगबुगाहट रहती है. वह जेके से हर घटना की डिटेल लेता है, साथ ही उनकी मदद भी कर देता है. पत्नी के बर्थडे पर सुचि के साथ उसकी बहस हो जाती है और गुस्से में सुचि कह देती है कि बेहतर था कि श्रीकांत अपने पुराने काम में वापस लौट जाता. श्रीकांत को तो जैसे मन मांगी मुराद बिना कहे मिल गई. दूसरे दिन वह कंपनी छोड़ देता है और वापस एजेंसी ज्वॉइन कर लेता है.
लेकिन इस बार श्रीकांत तिवारी के लिए प्रधानमंत्री बसु और श्रीलंका के मंत्री की सफल मुलाकात करवाना इतना आसान नहीं है. उसके इस मिशन में खलल डालने के लिए श्रीकांत के पुराने दुश्मन उसके परिवार पर नजर गड़ाए बैठे हैं. वे श्रीकांत की बेटी को अगवा कर लेते हैं. अब एक ओर श्रीकांत के सामने देश सेवा के लिए चेन्नई में अपने मिशन को पूरा करने का काम है, तो दूसरी ओर दूसरे शहर में अगवा अपनी बेटी को आतंकवादियों के गिरफ्त से बचाना. दोनों के तार एक दूसरे से जुड़े हैं पर श्रीकांत के लिए कौन कितनी महत्ता रखता है यह जानने के लिए सीरीज देखना पड़ेगा. एक तरफ बाप का और दूसरी ओर देश का फर्ज. श्रीकांत इन दोनों में से किसे बचाएगा और किसकी कुर्बानी देगा?
एक्टिंग
पहले सीजन में हमने जिस श्रीकांत तिवारी को देखा था, वो अभी भी नहीं बदला है. हां काम जरूर बदला पर दिल तो अभी भी देश के लिए धड़कता है. श्रीकांत के किरदार में मनोज बाजपेयी दर्शकों की उम्मीद पर सौ प्रतिशत खरे उतरे हैं. अपने गुस्से को हल्के नोट पर ह्यूमरस अंदाज में जाहिर करने का तरीका अब भी नहीं बदला. सामंथा अक्किनेनी ने राजी के किरदार को पूरी तरह जस्टिफाई किया है. कैसे एक अबला नारी सी दिखने वाली महिला खूंखार और निर्दयी बन जाती है, इसे राजी ने बखूबी दिखाया है. सीरीज की डिमांड के मुताबिक राजी को शो में पूरे समय चेहरे पर एक सपाट भाव लेकर चलना था जो कि सामंथा ने इतनी बारीकी से पेश किया कि एक बार को शक हो जाए कि ये फिल्मों में नजर आने वाली वही चुलबुली-खूबसूरत सामंथा ही है. श्रीकांत तिवारी के कैरेक्टर में मनोज बाजपेयी तो राजी के रोल में सामंथा बिल्कुल सटीक नजर आए हैं. सीरीज के मुख्य किरदारों में इस बार श्रीकांत तिवारी की बेटी धृति (अश्लेषा ठाकुर) को भी अहम रोल मिला. चिढ़े हुए स्वभाव को अश्लेषा ने भी बहुत ही शानदार तरीके से दर्शाया. इनके अलावा प्रियामणि, सनी हिंदुजा, शरद केलकर, शारिब हाशमी, सीमा बिस्वास, दिलीप ताहिल, वेदांत सिन्हा समेत अन्य कलाकारों की भी तारीफ बनती है.
निर्देशन
डायरेक्टर राज निदिमोरु और कृष्णा डीके के निर्देशन की दाद देनी पड़ेगी. द फैमिली मैन 1 ने तो लोगों का दिल जीता ही, द फैमिली मैन 2 भी नई कहानी से दर्शकों को इंप्रेस करती है. मजेदार बात ये है कि निर्देशकों ने सीरीज के इस मिशन के खत्म होते होते एक नए मिशन का हिंट दे दिया है. यानी कि द फैमिली मैन 2 के बाद इसके तीसरे सीजन भी आएगी. इस बार कहानी कुछ और होगी, जिसकी झलक दूसरी सीरीज के अंत में दिखाई गई है.
ओवरऑल
कुल मिलाकर कहा जाए तो द फैमिली मैन 2 एक बेहतरीन एक्सपीरियंस है. लगभग 50 मिनट के एक एपिसोड को आधे दिन निकालकर आराम से देखा जा सकता है. द फैमिली मैन का दूसरा सीजन आपको बोर नहीं करेगी. अगर हम मनोज बाजपेयी के फैंस के लिए इसे ट्रीट का नाम दें तो भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी.