शरद पूर्णिमा कब है, पूजा विधि व महत्त्व

By AV News

शरद पूर्णिमा हिन्दू धर्म में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। जो आश्विन माह के शुक्ल पक्ष के पंद्रहवें दिन मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु और धन की देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। साथ ही शरद पूर्णिमा की रात्रि बेहद खास होती है। इस दिन चाँद अपनी 16 कलाओं में पूर्ण रहता है इसलिए आसमान में भरपूर रोशनी रहती है। इस दिन साफ आसमान मानसून के जाने का प्रतीक है। यह दिन इतना शुभ होता है कि भगवान से आवाहन मात्र से बड़ी से बड़ी विपत्तियाँ टल जाती हैं।

शरद पूर्णिमा मुहूर्त 2024
इस दिना पूर्णिमा का मुहूर्त 08 बजकर 40 मिनट से शुरू होगा, जो अगले दिन यानी 17 अक्टूबर को शाम 4 बजकर 55 मिनट तक रहेगा.

शरद पूर्णिमा पर चंद्र दर्शन का समय
शरद पूर्णिमा को व्रत चंद्र दर्शन के बाद खोला जाता है. इस चंद्रोदय शाम 5 बजकर 04 मिनट पर होगा.

शरद पूर्णिमा पूजन मुहूर्त
शरद पूर्णिमा पर लक्ष्मी पूजा का मुहूर्त 16 अक्टूबर को रात 11 बजकर 42 मिनट से लेकर रात 12 बजकर 32 मिनट तक रहेगा.

शरद पूर्णिमा व्रत का क्या है महत्व?
शास्त्रों में शरद पूर्णिमा के महत्व को विस्तार से बताया गया है. शास्त्रों में यह कहा गया है कि केवल शरद पूर्णिमा के दिन ही चंद्रमा सभी 16 कलाओं से पूर्ण रहता है. यह भी कहा गया है कि भगवान श्री कृष्ण ही केवल एक ऐसे योगीराज हैं, जो 16 कलाओं से परिपूर्ण हैं. शरद पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु भगवान श्री कृष्ण और माता लक्ष्मी की उपासना के साथ-साथ चंद्र देव की उपासना का भी विधान है. इस दिन चंद्र देव को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत का पारण किया जाता है. मान्यता है कि ऐसा करने से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि और धन-ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है और सभी प्रकार की समस्याएं दूर हो जाती है.

शरद पूर्णिमा पूजा विधि

सुबह स्नान के बाद घर के मंदिर की सफाई करें। ध्यान पूर्वक माता लक्ष्मी और श्रीहरि की पूजा करें। फिर गाय के दूध में चावल की खीर बनाकर रख लें।

लक्ष्मी माता और भगवान विष्णु की पूजा करने के लिए लाल कपड़ा या पीला कपड़ा चौकी पर बिछाकर माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की प्रतिमा इस पर स्थापित करें। तांबे अथवा मिट्टी के कलश पर वस्त्र से ढंकी हुई लक्ष्मी जी की स्वर्णमयी मूर्ति की स्थापना कर सकते हैं।

भगवान की प्रतिमा के सामने घी का दीपक जलाएं, धूप करें। इसके बाद गंगाजल से स्नान कराकर अक्षत और रोली से तिलक लगाएं।

तिलक करने के बाद मीठे ( सफेद या पीली मिठाई ) से भोग लगाएं। लाल या पीले पुष्प अर्पित करें। माता लक्ष्मी को गुलाब का फूल अर्पित करना विशेष फलदाई होता है।

शाम के समय चंद्रमा निकलने पर मिट्टी के 100 दीये या अपनी सामर्थ्य के अनुसार दीये गाय के शुद्ध घी से जलाएं।

इसके बाद खीर को कई छोटे बर्तनों में भरकर छलनी से ढककर चंद्रमा की रोशनी में रख दें। फिर पूरी रात (तड़के 3 बजे तक, इसके बाद ब्रह्म मुहूर्त शुरू हो जाता है) जागते हुए विष्णु सहस्त्रनाम का जप, श्रीसूक्त का पाठ, भगवान श्रीकृष्ण की महिमा, श्रीकृष्ण मधुराष्टकम् का पाठ और कनकधारा स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। पूजा की शुरुआत में भगवान गणपति की आरती अवश्य करें।

अगली सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके उस खीर को मां लक्ष्मी को अर्पित करें और प्रसाद रूप में वह खीर घर-परिवार के सदस्यों में बांट दें।

इस प्रकार जगतपालक और ऐश्वर्य प्रदायिनी की पूजा करने से सभी मनवांछित कार्य पूरे होते हैं। साथ ही हर तरह के कर्ज से मुक्ति मिलती है।

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