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संतों के ग्रंथ सार तत्व को ग्रहण करें-प्रज्ञासागरजी

श्रीसिध्दचक्रमहामंडल विधान के तीसरे दिवस 32 अघ्र्य अर्पित किए

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उज्जैन। आचार्यश्री प्रज्ञा सागर महाराज ने कहा कि हमारे धार्मिक दृष्टिकोण से देखे तो शास्त्र अपार है लेकिन आयु अल्प है। हंस दूध पीता है लेकिन पानी को छोड़ देता है। शास्त्र बहुत है, हमारे पास उसके पढऩा के लिये वक्त नहीं है। यदि स्वाध्याय नहीं कर सकते तो संतों के ग्रंथ सार तत्व को ग्रहण करें। महर्षि व्यास ने 18 ग्रंथ लिखे है।

जैन समाज के आचार्य कुंदकुंद स्वामी ने 84 ग्रंथों की रचना की है जिसमें दूसरों को पीड़ा देना पाप है, सब जीवों से प्रेम करो परोपकार करो वही पुण्य है राग द्वेष मत करो की आदि का सार है जन्म के समय गुण अनेक रहते है बढ़ती उम्र के साथ गुण घटते जाते है। जन्म के समय के गुणों के साथ ही मरण होना चाहिए। वहीं मरण समाधि मरण होता है गुणों में हमेशा वृध्दि का संकल्प होना चाहिये ताकि विशिष्ट पहचान बने। गुणों की पूजा होती है व्यक्ति की नहीं। आचार्यश्री ने कहा कि पाद प्रक्षालन में कोई तो बात होगी। उसी जल को माथे पर लगाते है। काया स्वभाव से अपवित्र है लेकिन रत्नत्रय धारण करने से पवित्र होता है।

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शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर लक्ष्मी नगर में श्रीसिध्दचक्रमहामंडल अनुष्ठान 1 से 9 नवंबरत तक अष्टान्हिका पर्व पर के अवसर पर आयोजित किया गया है। प्रथम दिवस 8, दूसरे दिन 16 एवं गुरुवार को 32 अघ्र्य श्री सिध्दभगवान की आराधना करते हुये मंडलजी पर जगत के सुख समृद्धि एवं शांति के उद्देश्य से चढ़ाये गये। कार्यक्रम में गुरुवार को उषाराज जेल अधीक्षक, आदेश जैन जिला न्यायाधीश, राजेश जैन प्रथम श्रेणी न्यायाधीश जिला कोर्ट, न्यायाधीश अरविंद जैन, दिनेश सिम्मी जैन विशेष रुप से सम्मिलित हुए सभी का मंदिर ट्रस्ट कमेटी एवं विधान समिति द्वारा सम्मान किया गया

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