4.25 करोड़ रुपए का सोना चुराने वाले 12 घंटे में गिरफ्तार, 3 बैंककर्मी सस्पेंड

उज्जैन पुलिस की तत्परता : एसबीआई की चोरी का मास्टरमाइंड बैंक का आउटसोर्सकर्मी, 4 साथियों के साथ की वारदात
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पुलिस टीम को मिला 30 हजार रुपए का इनाम
अक्षरविश्व न्यूज उज्जैन। महानंदानगर स्थित स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की ब्रांच में महज 35 मिनट में 4.700 किलो सोना (करीब 4.25 करोड़) और 8 लाख रुपए कैश की चोरी करने वाले आरोपियों को उज्जैन पुलिस ने केवल 12 घंटे में गिरफ्तार कर लिया। वारदात को बैंक के ही आउटसोर्स कर्मचारी जय भावसार उर्फ जिशान ने अपने साथी अब्दुल्ला, साहिल, अरबाज और कोहिनूर के साथ मिलकर अंजाम दिया था। भावसार के पास बैंक की चाबियां रहती थीं और 15 दिन पहले बैंक शाखा में लगी आग के बाद उसने चोरी की योजना बनाई थी।
ढाबा रोड के रहने वाले जय ने सोमवार-मंगलवार की दरमियानी रात 2.30 बजे अब्दुल्ला के साथ पिछले दरवाजे से बैंक भवन में प्रवेश किया और रात 3.05 बजे महज 35 मिनट में चाबियों की मदद से लॉकर से 4.700 किलो सोना और 8 लाख रुपए कैश निकाल लिए। इस दौरान उसके साथी साहिल, अरबाज और कोहिनूर बाहर चौकसी करते रहे। 2 बाइक से आए पांचों आरोपी वारदात को अंजाम देने के बाद ढाबा रोड की एक होटल पहुंचे और माल का बंटवारा किया। इनमें से चार हाटपिपल्या रवाना हो गए, जबकि जय उज्जैन में ही रुक गया और सुबह काम के लिए बैंक भी पहुंचा। सुबह 10.30 बजे शाखा प्रबंधक पायल माहेश्वरी ने जब लॉकर खुले देखे तो माधवनगर पुलिस को चोरी की जानकारी दी। एसपी प्रदीप शर्मा ने बताया बैंक में 16 अगस्त को आग लगने से सीसीटीवी कैमरे बंद थे।
पुलिस ने बैंक भवन के बाहर के सीसीटीवी फुटेज खंगाले तो जय बाइक पर साथियों के साथ जाता दिखा। उससे सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया और वारदात कबूल ली। जय और उसके साथी नेपाल भागने वाले थे, जहां वे कारोबार करना चाहते थे। पुलिस ने रात 10.30 बजे तक सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया। 12 घंटे में वारदात का खुलासा करने पर एडीजी उमेश जोगा ने टीम को 30 हजार रुपए का इनाम देने की घोषणा की है। एसबीआई ने लापरवाही पर शाखा प्रबंधक पायल माहेश्वरी, सेवा प्रबंधक सुरेंद्र कुमार माधव, कैश अधिकारी अभिनव को निलंबित कर दिया है। एसबीआई प्रबंधन पूरे मामले की आंतरिक जांच करवा रहा है।
बैंक शाखा में लगी आग संदिग्ध
जय बैंक का आउटसोर्स कर्मचारी था। उसने यू-ट्यूब देखकर अपना नाम बदलकर जिशान रख लिया था। छह महीने पहले ही उसकी बीएचएसके कंपनी के जरिए नियुक्ति हुई थी। उसके पिता राजू भावसार इसी बैंक में काम करते हैं। उनकी पहचान के कारण ही अफसरों ने उसे काम पर रखा था। यूं तो वह सफाईकर्मी था लेकिन वह अन्य काम भी करता था। उसे बैंक के कोने-कोने की जानकारी थी। बैंक की चाबियां भी उसके ही पास रहती थीं। 16 अगस्त को बैंक में आग लगी थी, तब डीवीआर आदि जल गए थे। घटना के बाद आग को भी संदिग्ध माना जा रहा है। माधवनगर पुलिस का कहना है कि आरोपियों को आज दोपहर कोर्ट में पेश कर रिमांड पर लिया जाएगा। सूत्रों के मुताबिक जय ज्यादा समय चोरी में शामिल अपने साथियों के साथ ही रहता था। संभवत: उन्हीं ने उसका ब्रेन वॉश कर धर्म परिवर्तन करवाया, इसकी जांच भी की जा रही है।
जेवरात में होता है 90 प्रतिशत सोना
एसबीआई में रखा सोना गोल्ड लोन का था। यानी यह जेवराती सोना था। इसमें सोने की मात्रा 90 प्रतिशत होती है। चूंकि शाखा से 4 किलो 700 ग्राम सोना चोरी गया था। जेवराती सोने की कीमत अभी करीब 96 हजार रुपए प्रति 10 ग्राम चल रही है। शुद्ध सोने की कीमत 1 लाख 6 हजार है। इस हिसाब से 4 करोड़ 25 लाख का सोना था।
बड़ी चूक : एवजी के भरोसे चल रही ब्रांच
करोड़ों के जेवरात चोरी मामले में पकड़ाए आउटसोर्स कर्मचारी (एवजी) जय भावसार ने किया, वैसा अन्य ब्रांच में भी हो सकता है। सिर्फ एसबीआई ही नहीं बल्कि अन्य बैंकों की ब्रांच भी एवजी के भरोसे चल रही हैं। सफाई के लिए ब्रांच में 2-3 एवजी रखने का मैनेजर को अधिकार है। जबकि सच्चाई यह है कि ये सफाई के अलावा पूरी ब्रांच संभालते हैं। सफाई के लिए ये किसी दूसरे कोअपने खर्च पर लगा देते हैं।
एवजी के कमाई का जरिया
ब्रांच में क्लेरिकल, मैंटेनेंस, तकनीकी के अलावा बाहरी सभी काम संभालना। बाहर से आए अफसरों के घर व व्यक्तिगत जरूरतों में भी ये मददगार होते हैं।
अफसरों को मिले लोन, एफडी व अकाउंट संबंधी टॉरगेट के लिए व्यापारिक पार्टियां भी ढूंढकर लाते हैं।
बैंक में अटैच होने वाली कार या अन्य गाडिय़ां भी इनकी ही होती है या अपनी पसंद की पार्टी को लाते हैं।
एवजी के कमाई का जरिया
ब्रांच में क्लेरिकल, मैंटेनेंस, तकनीकी के अलावा बाहरी सभी काम संभालना। बाहर से आए अफसरों के घर व व्यक्तिगत जरूरतों में भी ये मददगार होते हैं।
अफसरों को मिले लोन, एफडी व अकाउंट संबंधी टॉरगेट के लिए व्यापारिक पार्टियां भी ढूंढकर लाते हैं।
बैंक में अटैच होने वाली कार या अन्य गाडिय़ां भी इनकी ही होती है या अपनी पसंद की पार्टी को लाते हैं।
यह हुई चूक : आउटसोर्स कंपनी बीएचएसके द्वारा लगाए गए कर्मचारियों का बैंक ने पुलिस वेरिफिकेशन नहीं करवाया। कर्मचारी एक ही ब्रांच में लंबे समय से जमे हैं। नियमानुसार तीन माह में ट्रांसफर किया जाना चाहिए।
बाहरी अफसर के भरोसेमंद बन जाते हैं एवजी: सूत्रों के मुताबिक ब्रांच ऑफिसर अकसर बाहरी होते हैं, ऐसे में एवजी इनके लिए काम के साबित होते हैं। हर छोटे-बड़े काम में माहिर एवजी अफसर के इतने भरोसेमंद हो जाते हैं कि लॉकर व केश रूम की चाबियां (जो मैनेजर के पास होना चाहिए) भी ये ही संभालते हैं। लॉकर की चाबी मैनेजर के पास होती है, जिसे वे अपनी दराज में रखते हैं और दराज व ब्रांच के मैन गेट की चाबी एवजी रखते हैं ताकि किसी भी वक्त ब्रांच पहुंचने में आसानी हो और अफसरों को परेशानी न उठाना पड़े। यूं तो एवजी को आउटसोर्स कंपनी के जरिए कटौती के बाद तकरीबन १२ हजार रुपए वेतन मिलता है। लेकिन बैंक के अन्य कामों के जरिए वे कई ज्यादा कमा लेते हैं। इस संबंध में आरएम रचना सिंह गौड़ से बात नहीं हो पाई।