68/84 महादेव : श्री पिशाचेश्वर महादेव मंदिर

By AV NEWS

गयायां पिण्डदानेनयत्पुण्यं समुदाहृतम्।
तत्पुण्यमधिकंज्ञेयं पिशाचेश्वर दर्शनात्।।५२।।

कीत्र्तनान्मुच्यते पापाद् दृष्ट्वा स्वर्गं च गच्छति।
स्पर्शनादस्य लिङ्गस्य पुनात्यासप्तम् कुलम्।।५६।।

(अर्थात्- गया में पिंडदान का जेा पुण्य लाभ है, पिशाचेश्वर के दर्शन मात्र से उससे भी अधिक यहां प्राप्त होगा। इस लिंग के माहात्म्य का पाठ करने से पापमुक्ति होती है तथा दर्शन से स्वर्गगमन तथा स्पर्श द्वारा सात पीढ़ी पवित्र हो जाती है।)

यह मंदिर रामघाट के दक्षिणी भाग में स्थित है। इसका प्रवेश द्वार पूर्वाभिमुखी है जिसकी ऊंचाई मात्र 4 फीट है। द्वार के समानांतर दाईं ओर माता सरस्वती तथा बाईं ओर गणपति की मूर्तियों हैं.

और द्वार के ऊपर हनुमानजी की मूर्ति लगी है। पुराने प्रस्तर स्तंभों से बने प्रवेश द्वार से 4 सीढिय़ां उतरकर करीब 65 वर्गफीअ आकार के गर्भगृह में ढाई फीट चौड़ी तथा पांच फीट लंबी पीतल की जलाधारी पर 2 शंख व सूर्य-चंद्र उत्कीर्ण हैं तथा मध्य में 3 इंच ऊंचे श्यामवर्ण के लिंग को नाग आकृति आवेष्ठित किए है।

लिंग पर पीतल के नाग की छाया है। पास ही त्रिशूल व डमरू गड़े हैं। कलश आकार की जलहरी से जलाभिषेक होता रहता है। गर्भगृह में ताक पर दाएं गणेशजी की तथा बाएं कार्तिकेय की सफेद पाषाण की मूर्तियां हैं। सामने देवी पार्वती की काले प्रस्तर की मूर्ति स्थापित है।

उत्तराभिमुखी निर्गम द्वार केवल 3 फीट है। रामघाट पर मृतक को प्रेत योनि से मुक्ति हेतु दशा ओर एकादशा कर्म किया जाता है, पिंड विसर्जन से पूर्व उन्हें पिशाचेश्वर के दर्शन करवाए जाते हैं। बताया जाता है सिंधिया सरकार की ओर से इस मंदिर के पुजारी को सन् 1632 ई. में एक आना दिया जाता था। रजिस्टर में ऐसा लेख है।

लिंग माहात्म्य की कथा-

कलिकाल के आरंभ में सोम नाम का एक धनी शूद्र अति कष्ट से मृत होकर पिशाच हो गया था। एक बार मार्ग में वह पिशाच एक शकटारूढ़ ब्राह्मण का भक्षण करने दौड़ा किंतु शटक की आवाज होकर भाग, तब ब्राह्मण के पूछने पर उसने कहा कि मैं सुखप्रद जीवन चाहता हूं। ब्राह्मण ने कहा तुम मुझे अपना मित्र मानो, तब पिशाच ने ब्राह्मण से पिशाच योनि से छुटकारा पाने का मार्ग पूछा।

तदनन्तर ब्राह्मण ने उसे पिशाच योनि मिलने का कारण तथा सातवें जन्म का वृत्तांत सुनाया। तब घोर अंधकार में भ्रान्त पिशाच ने ब्राह्मण की शरण ली तथा मुक्ति हेतु ब्राह्मण की आज्ञा से महाकाल वन में आकर पिशाचत्व नाशक लिंग के दर्शन कर तत्क्षण दिव्य देह प्राप्त की। उसने अपने पितृकुल व मातृकुल का उद्धार किया तथा मनोहर विमान पर आरूढ़ होकर सनातन लोक प्राप्त किया। यह लिंग पृथ्वी पर सर्वपापहारी पिशाचेश्वरनाम से प्रसिद्ध हुआ।

फलश्रुति- यह कथा सुनाते हुए महादेव ने देवी पार्वती से कहा कि जो इस लिंग का दर्शन करेंगे, उनके नरकगामी पितृगण् भी पिशाचत्व से मुक्त होंगे। उन्हें सम्यकत: अनुष्ठित अश्वमेध रूा का फल प्राप्त होगा।

मनुष्य पिशाचेश्वर के दर्शन द्वारा सर्वेश्वर्ययुक्त तथा सर्वबंधु समायुक्त होकर पितृलोक में आनंद प्राप्त करता है। वैशाख अथवा कार्तिक मास की चतुर्दशी के दिन पिशाचेश्वर के दर्शन से सीमारहित पुण्यलाभ प्राप्त होता है।

लेखक – रमेश दीक्षित

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