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उज्जैन:चर्चा में रो पड़े डॉ. सुधाकर वैद्य : बोले डॉक्टर गुड मॉर्निंग की बजाए कॉल पर बोलते हैं यहां आ जाएं आपके परिजन की मौत हो गई

ललित ज्वेल.उज्जैन।आरडी गार्डी मेडिकल कॉलेज में कोरोना मरीजों के उपचार के लिए कॉलेज की ओर से नियुक्त नोडल अधिकारी डॉ.सुधाकर वैद्य चर्चा में रो पड़े। जिस प्रकार कोई बच्चा खिलोना टूटने पर रोता है, डॉ. वैद्य वैसे ही बच्चे के रूप में कुछ समय तक बिलखते रहे। जब हमने उनसे पूछा- सुधाकरजी आखिर हुआ क्या? कोई अनहोनी हो गई क्या परिवार में ?

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डॉ.वैद्य ने जवाब दिया- यह तो बाबा महाकाल से पूछना होगा कि आखिर मेरा क्या कुसूर था कि उसने मुझे डॉक्टर बनाया? ऐसा डॉक्टर जिसके पास यह जिम्मेदारी है कि वह रोजाना सुबह लोगों को गुड मार्निंग कहने के बजाय बोलता है कि आपके परिजन की मौत हो गई है,यहां आ जाएं। अवसाद से भरे डॉ.वैद्य बोले- सर, मैं थक गया हूं लाशे गिनकर। और कितनी लाशें गिनुंगा मैं आगे।

24 घण्टे मैं और मैरा पूरा स्टॉफ सेवा में लगा है मरीजों की। इस बीच मौतें भी हो रही है। डॉक्टर हो या स्टॉफ, सभी चिड़चिड़े होने लगे हैं। वे काम से नहीं थक रहे, बल्कि उनके सामने जा रहे जवान बच्चों को देखकर उनकी आंखों से आंसु बह निकलते हैं। आप ही बताओ, जिसके पास मेरा फोन सुबह जाता है,वह क्या सोचता होगा मेरे लिए ? यह कि रात तक तो डॉक्टर साहब कह रहे थे कि मरीज ठीक है तो फिर अचानक क्या हो गया? यह तो हम भी नहीं समझ पा रहे हैं कि ऐसा क्या हो जाता है कि मरीज ठीक होते-होते अचानक काल का ग्रास बन जाता है।

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डॉ.वैद्य मेरे मित्र वर्ष 2000 से हैं। मित्रवत उनसे आज तक संबंध है। इन संबंधों की परतें खोलें तो कहीं भी नजर नहीं आएगा कि यह गर्मजोश व्यक्ति आज अंदर से इतना टूट गया है। जोश के साथ आवाज देना, लम्बा समय बीत गया मिले को, यह कहकर नाराज होना और हाथ मिलाते वक्त यह एहसास करना कि अभी उम्र हावी नहीं हुई है मेरे उपर। आज वही व्यक्ति अंदर से इतना टूट गया है कि याद ही नहीं रहता, कल रात को खाना खाया था या नहीं ? अभी घर जाना है या नहीं ?

जब मैंने उनके कांधे पर हाथ रखकर उन्हे सांत्वना देने का प्रयास किया तो वे बोले- सर,आप थोड़ा रूको मैरे साथ, देखो अभी क्या-क्या होगा? इतने में एक परिजन आए और बोले- साहब,सुबह 6 बजे से आएं हैं यहां,भाई का शव लेने। घर के लोगों का बुरा हाल है रो-रोकर। यहां बोल रहे हैं कि वेटिंग चल रही है। दोपहर 3 बजे तक आएगा नम्बर शव वाहन का। आप ही बताओ,सभी को कब तक दिलासा दिलाऊ? इस पर डॉ.वैद्य आंसु पोछते हुए बोले- बेटा, यदि किसी दूसरे का नम्बर काटकर तुम्हारे लिए शव वाहन का इंतजाम करवा दूंगा तो वे लोग यहां झगड़ा करेंगे। वैसे भी वहां शव दाह के लिए जगह नहीं होगी तो वहां बैठोगे।

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अच्छा यह है कि सभी को नीचे केंटीन में ले जाओ, कुछ खिला-पिला दो। गर्मी बहुत है। प्रोटोकाल से ही दिया जा सकेगा शव। चेहरा भी उसी समय दिखा सकेंगे, दूर से। तुम समझो हमारी मजबूरियां। जब वे यह बात कह रहे थे,करीब 5 से 6 परिवार इसी अपेक्षा से उनके पास आए थे। सभी निढाल होकर लौट गए। इधर डॉ.वैद्य कुर्सी पर अपने शरीर को झूलाकर बोले- बताओ,कोई जवाब है किसी के पास ? बस, बाबा महाकाल का ही भरोसा है अब। अब मुंह से यही निकलता है- आखिर कब रूकेगा यह मौतों का सिलसिला। जल्द नहीं रूका तो हमारा सिस्टम कोलेप्स हो जाएगा। मेरे लोग अब मानसिक रूप से थकने लगे हैं। कड़ी मेहनत के बाद दिनभर में दो चार परिवार गालियां दे ही जाते हैं उन्हे कहते हैं कि मार डाला हमारे व्यक्ति को। अब हम किसे कहें कि हम तो खुद ही दम तोडऩे लगे हैं, यह सब देखकर।

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