उज्जैन:हकीकत..? और दावे..! दोनों दल मान रहे महापौर तो उनका ही..

By AV NEWS

दोनों दल मान रहे महापौर तो उनका ही;

भाजपा 30-35, कांग्रेस 25-30 पार्षद के लिए आश्वस्त…

उज्जैन।तो नगर निगम में नगर की सरकार के लिए मतदान निपट गया। खबर है कि पिछले नगर निगम चुनाव के मुकाबले इस बार 06.05 फीसद कम मतदान हुआ। 59.53 प्रतिशत वोटिंग के बाद अब दोनों दल दावा कर रहे हैं कि महापौर प्रत्याशी उनका ही जीतेगा भाजपा जीत को लेकर आश्वस्त है।

निगम चुनाव के बाद प्रमुख नेताओं और प्रत्याशियों के आंकलन के आधार पर पार्टी ने दावा किया है कि पार्षद पद के 30-35 प्रत्याशियों की जीत तय है। महापौर प्रत्याशी की जीत का आंकड़ा 25 हजार के पार माना है। प्रत्याशी मुकेश टटवाल का कहना है वोटों का आंकलन नहीं किया है, लेकिन इतना तो तय है कि जीत बड़े अंतर से ही होगी।

10 साल से नगर की सत्ता दूर कांग्रेस के पास खोने को कुछ भी नहीं हैं, इसे जो भी मिलना हैं वह पार्टी के लिए प्लस ही होगा। कांग्रेस ने दावा किया है कि महापौर प्रत्याशी महेश परमार 20 हजार से ज्यादा वोटों से चुनाव जीत रहे हैं।

54 में से 25 से 30 पार्षद भी इस बार जीत दर्ज करेंगे। महापौर प्रत्याशी परमार का कहना है महाकाल का आशीर्वाद हैं और उज्जैन के शानदार नागरिकों ने भरपूर स्नेह और वोट दिया है।

प्रतिशत कम पर वोट अधिक

भाजपा और कांग्रेस वाले इस कमी को लेकर नतीजे के बारे में अपना-अपना अनुमान लगा रहे हैं। यद्यपि उसके पहले एक बात ठीक समझ लेने की है। पिछला नगर निगम चुनाव 2015 में हुआ था। यानी करीब सात साल पहले। जाहिर सी बात है कि इन सात बरसों में खूब सारे नये मतदाता बढ़े हैं।

आंकड़ों के जानकारों के मुताबिक इस बार गिरे वोटों का प्रतिशत भले कम है लेकिन पिछली बार के मुकाबले इस चुनाव में करीब 20 हजार से भी ज्यादा वोटरों ने मतदान किया है। जाहिर है मतदान के प्रतिशत में कमी को आधार बनाकर नतीजों के बारे में कोई भी राय बनाने से पहले आपको इस हकीकत को भी ध्यान में रखना ही होगा। कांग्रेस के महापौर प्रत्याशी और तराना के विधायक ने संगठन की मदद के बगैर, कमलनाथ की एकसभा के बूते मैदान पकड़ रखा।

उज्जैन नगर निगम में जहां लम्बे समय से भाजपा का कब्जा है और कांग्रेस के लिए एक तरह की नाउम्मीदी का आलम था, वहां परमार कांग्रेस की उम्मीदें जगाने में कामयाब रहे। भाजपा के उम्मीदवार मुकेश टटवाल के लिए मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को दो बार उज्जैन आना पड़ा।

टटवाल के खाते में कई उपलब्धि हो, लेकिन प्रत्याशी बनने के बाद टटवाल को लेकर भाजपा और शहर की जनता में वैसा उत्साह-जोश नहीं दिखा जो पूर्व के निकाय चुनाव में महापौर प्रत्याशी को लेकर दिखाई देता था।

सट्टा बाजार से जीत का दावा…सोशल मीडिया पर जरूर चुनावी रंगत देखने में आयी। भाजपा की आईटी सेल बहुत सशक्त मानी जाती है। अचरज यह कि कांग्रेस और कांग्रेसजनों ने अनपेक्षित रूप से यहां जमकर किला लड़ाया। उधर कुछ लोग महेश परमार के फेवर में सट्टा बाजार के भाव का हवाला भी दे रहे हैं।

बताया जा रहा हैं कि सट्टाबाजार में महेश की जीत के भाव 60 पैसे, तो मुकेश के महापौर बनने के भाव 1 रुपए 20 पैसा हैं। अलबत्ता सट्टेबाजी और भाव क्रिकेट में भी होते हैं, लेकिन ध्यान रहे वहां सट्टा और सटोरिये कई बार फेल होते भी देखे गए हैं!

जाहिर है कांग्रेस और खासकर महेश परमार को अभी ही, यानी नतीजे की घोषणा से पहले, मुकाबले से बाहर मान लेना अक्लमंदी नहीं कहलाएगी। बता दें कि तस्वीर 17 जुलाई को मतगणना के बाद साफ होगी, लेकिन कयासों का दौर तब तक नहीं थमने वाला है।

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