राष्ट्रीय ध्वज का अपना खास महत्व है, जानिए इसके नियम-कायदे
उज्जैन। कोई कहें कि राष्ट्रीय ध्वज का अपना क्या खास महत्व है, तो चार वाक्य में इसका उत्तर समाहित है। एक राष्ट्रीय ध्वज देश की स्वतंत्रता को दर्शाता है। दूसरा राष्ट्रीय ध्वज देश के गौरव का प्रतीक होता है। तीसरा राष्ट्र का ध्वज उस देश की अखंडता को प्रदर्शित करता है। चौथा राष्ट्रीय ध्वज लोगों में देशभक्ति की भावना को प्रेरित करता है। भारतीय तिरंगा…सिर्फ एक ध्वज नहीं देश की गरिमा, निष्ठा और सम्मान है। इसके उपयोग, फहराने के संबंध में नियम-कायदे और संहिता है। यह क्या है ‘जानिए’।
भारतीय ध्वज संहिता भारतीय ध्वज को फहराने व प्रयोग करने के बारे में दिये गए निर्देश है। भारत का राष्ट्रीय ध्वज, भारत के लोगों की आशाओं और आकांक्षाओं का प्रतिरूप है। यह राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है। सभी के मार्गदर्शन और हित के लिए भारतीय ध्वज संहिता-2002 में सभी नियमों, औपचारिकताओं और निर्देशों को एक साथ लाने का प्रयास किया गया है। ध्वज संहिता-भारत के स्थान पर भारतीय ध्वज संहिता-2002 को 26 जनवरी 2002 से लागू किया गया है।
राष्ट्रीय ध्वज के समापन का कायदा
फटे हुए झंडे को कभी नहीं फहराया जाना चाहिए। जब ध्वज फट जाए या मैला हो जाए तो उसका एकान्त में समापन किया जाए। जब झंडा क्षतिग्रस्त है या मैला हो गया है तो उसे अलग या निरादरपूर्ण ढंग से नहीं रखना चाहिए, झंडे की गरिमा के अनुरूप विसर्जित/नष्ट कर देना चाहिए या जला देना चाहिए। तिरंगे को नष्ट करने का सबसे अच्छा तरीका है, उसका नदी में विसर्जन करना या उचित सम्मान के साथ जमीन के नीचे मिट्टी में दबा देना चाहिए।
भारतीय ध्वज संहिता में अहम बदलाव
भारतीय झंडा संहिता में पहले सूर्योदय से सूर्यास्त तक झंडा फहराने की अनुमति दी गई थी, लेकिन जुलाई महीने से इसमें संशोधन किया गया है। केंद्र सरकार ने भारतीय ध्वज संहिता में अहम बदलाव किए हैं। अब तिरंगे को दिन और रात दोनों ही समय में फहराया जा सकता है। सन 2002 से पहले, भारत की आम जनता के लोग केवल गिने-चुने राष्ट्रीय त्योहारों को छोड़ सार्वजनिक रूप से राष्ट्रीय ध्वज फहरा नहीं सकते थे।
एक उद्योगपति, नवीन जिंदल ने, दिल्ली उच्च न्यायालय में, इस प्रतिबंध को हटाने के लिए जनहित में एक याचिका दायर की। जिंदल ने जान बूझकर, झंडा संहिता का उल्लंघन करते हुए अपने कार्यालय की इमारत पर झंडा फहराया। ध्वज को जब्त कर लिया गया। उन पर मुकदमा चला। जिंदल ने बहस की कि एक नागरिक के रूप में मर्यादा और सम्मान के साथ झंडा फहराना उनका अधिकार है और यह एक तरह से भारत के लिए अपने प्रेम को व्यक्त करने का एक माध्यम है। इसके बाद केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने, भारतीय झंडा संहिता में 26 जनवरी 2002, को संशोधन किए जिसमें आम जनता को वर्ष के सभी दिनों झंडा फहराने की अनुमति दी गई और ध्वज की गरिमा, सम्मान की रक्षा करने को कहा गया।
केवल शोक स्वरूप ही आधा झुकता है ध्वज हमारा..
- जब भी ध्वज फहराया जाए तो उसे सम्मानपूर्ण स्थान दिया जाए। उसे ऐसी जगह लगाया जाए, जहां से वह स्पष्ट रूप से दिखाई दे।
- ध्वज का प्रदर्शन सभा मंच पर किया जाता है तो उसे इस प्रकार फहराया जाएगा कि जब वक्ता का मुंह श्रोताओं की ओर हो तो ध्वज उनके दाहिने ओर हो।
- ध्वज किसी अधिकारी की गाड़ी पर लगाया जाए तो उसे सामने की ओर बीचों-बीच या कार के दाईं ओर लगाएं।
- ध्वज केवल राष्ट्रीय शोक पर ही आधा झुका रहता है।
- ध्वज पर कुछ भी लिखा या छपा नहीं होना चाहिए।
- झंडे को जानबूझकर उल्टा रखा नहीं किया जा सकता, किसी में डुबाया नहीं जा सकता, या फूलों की पंखुडियों के अलावा अन्य वस्तु नहीं रखी जा सकती।
- इसका उपयोग कोई वस्तु या किसी को भी लपेटने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
- किसी दूसरे झंडे या पताका को राष्ट्रीय झंडे से ऊंचा या ऊपर नहीं लगाया जाएगा, न ही बराबर में रखा जाएगा।
- जब झंडा किसी भवन की खिड़की, बालकनी या अगले हिस्से से आड़ा या तिरछा फहराया जाए तो झंडे को बिगुल की आवाज के साथ ही फहराया और उतारा जाए।
- ध्वज का स्पर्श कभी भी जमीन या पानी के साथ नहीं होना चाहिए। उस का प्रयोग मेजपोश के रूप में, या मंच पर नहीं ढका जा सकता, इससे किसी मूर्ति को ढका नहीं जा सकता न ही किसी आधारशिला पर डाला जा सकता था।
- सन 2005 तक ध्वज को पौशाक के रूप में या वर्दी के रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता था। 5 जुलाई 2005, को भारत सरकार ने संहिता में संशोधन किया और ध्वज को एक पौशाक के रूप में या वर्दी के रूप में प्रयोग किये जाने की अनुमति दी। हालांकि इसका प्रयोग कमर के नीचे वाले कपड़े के रूप में नहीं किया जा सकता है।