डोल ग्यारस का पर्व कब मनाया जाएगा, जानें इसका महत्व और पूजा विधि

वर्ष की कुल 24 एकादशी (ग्‍यारस) में से सबसे महत्‍वपूर्ण भाद्रपद महीने की शुक्‍लपक्ष की एकादशी को डोल ग्‍यारस आती है। पुराणों व ग्रथो में कहा गया है। की आषढ़ महीने में अपने शेष शैया पर निद्रा करते हुए भगवान विष्‍णु जी भाद्रपद माह शुक्‍लपक्ष की एकादशी को करवट बदलते है। जिस कारण इसे पद्मा एकादशी और परिवरर्तनी एकादशी कहते है। यह एकादशी श्री कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी के 18 दिन बाद आती है।

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इस बार पद्मा एकादशी 06 सितम्‍बर 2022 के दिन है। इसी दिन की माता यशोदा नें भगवान कृष्‍ण जी का कुऑं पूजन किया था तथा पहली बार पालने में झूला झुलाया था। जिस कारण इस एकादशी को जल झूलनी ग्‍यारस भी कहा जाता है। इस दिन स्‍त्री व पुरूषो अपने बच्‍चो की लम्‍बी उम्र की कामना व अपनी सभी मनोकामनाए पूर्ण करने के लिए डोल एकादशी का व्रत रखते है।

डोल ग्यारस का शुभ मुहूर्त

भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की एकादशी 06 सितंबर को प्रात:काल 05:54 बजे से प्रारंभ होकर 07 सितंबर 2022 को पूर्वाह्न 03:04 बजे तक रहेगी. जबकि व्रत के पारण का (व्रत तोड़ने का) समय प्रात:काल 08:19 से 08:33 बजे तक रहेगाl

डाेल ग्यारस अथवा जल झूलनी एकादशी की पूजा विधि

श्री हरि की पूजा के लिए समर्पित इस पावन तिथि पर प्रात:काल स्नान ध्यान करने के बाद साधक को भगवान विष्णु या फिर उनके वामन अवतार अथवा भगवान श्री कृष्ण की धूप, दीप, पीले पुष्प, पीले फल, पीली मिठाई आदि से पूजा करनी चाहिए. डोल ग्यारस की पूजा के दिन सात तरह के अनाज भर कर सात कुंभ स्थापित किए जाते हैं और इसमें से एक कुंभ के ऊपर श्री विष्णु जी की मूर्ति रखकर विधि विधान से पूजा की जाती है. इन कुंभों को अगले दिन व्रत पूर्ण होने के बाद किसी ब्राह्मण को दान कर दिया जाता है. इस व्रत में चावल का भूलकर भी सेवन नहीं करना चाहिए.

एकादशी का महत्व

स्कन्द पुराण के अनुसार चातुर्मास के दौरान जब श्री विष्णु योग निद्रा में जाते हैं, उसके बाद जलझूलनी एकादशी के दिन वह सोते हुए करवट बदलते हैं। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस एकादशी व्रत को करने से वाजपेय यज्ञ के समान पुण्यफल की प्राप्ति होती है। कहते हैं भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं इस व्रत का माहात्म्य युधिष्ठिर को बताया है।

इस दिन भगवान करवट लेते हैं, इसलिए इसको परिवर्तिनी एकादशी भी कहते हैं। मान्यता यह भी है को जो भक्त भाद्रपद शुक्ल एकादशी का व्रत और पूजन करते हैं, उन्हें ब्रह्मा, विष्णु सहित तीनों लोकों में पूजन का फल प्राप्त होता है।

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