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राहुल गांधी की पद यात्रा में लोगों का स्वयं घरों से निकलकर आना BJP में बड़ी चर्चा का विषय बना

राहुल के प्रति जनता का नजरिया अब बदला हुआ दिखाई दे रहा है

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उज्जैन।मालवांचल में जिसप्रकार से राहुल की पदयात्रा में लोग स्वयं ही सड़क पर निकल पड़े, ऐसा पिछले 20 वर्षों में केवल उमा भारती की परिवर्तन रैली के समय देखा गया। इस भीड़ को यदि आंकलन का पैमाना माने तो भाजपा की स्थिति ग्रामीण अंचलों में ठीक नहीं मालूम होती है। ग्रामीण क्षेत्रों तक किसी न किसी कारण से भाजपा के नेताओं के प्रति किसानों से लेकर खेतीहर मजदूरों तक नाराजगी दिखाई दे रही है।

सूत्रों का कहना है कि मध्यप्रदेश में प्रवेश के साथ ही इस बात पर नजर रखी जा रही थी कि आम आदमी/अंचलों तक बसा किसान, खेतीहर मजदूर की कैसी प्रतिक्रिया रहती है? पहले यह मानकर चला जा रहा था कि लोग तो ठीक कांग्रेसी ही घरों से निकलकर नहीं आएंगेे।

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लेकिन मध्यप्रदेश में प्रवेश के बाद जैसे-जैसे राहुल की पदयात्रा के साथ लोगों का काफिला बढ़ता गया, उसने भाजपा के भोपाल से दिल्ली तक कान खड़े कर दिए। राहुल की पदयात्रा इंदौर जिले तक आई तो वह उफान पर थी, वहीं इंदौर से उज्जैन पहुंचते-पहुंचते यह रैली, रैले में बदल गई। शामिल हुए आम लोगों से चर्चा करने पर वे चुप्पी साधे हुए थे लेकिन उनके कदम यात्रा के साथ तालमेल बैठा रहे थे।

यह जुनून तात्कालिक था या दीर्घकालीन रहेगा, यह समीक्षा करना भाजपा और कांग्रेस का काम है। लेकिन हिंदी बेल्ट में कांग्रेस के किसी नेता की एक झलक पाने या उसके साथ कदम मिलाकर चलने की लालसा लिए लोगों की तादात बताती है कि राहुल की छवि जनता की नजऱों में अब पहले वाली नहीं रही। जनता का नजरिया अब उनके प्रति बदला हुआ दिखाई दे रहा है।

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अब यह देखना दिलचस्प होगा की पिछले दो दशक से सीएम शिवराज सिंह के नेतृत्व में लगभग हर तरह की राजनैतिक चुनौती का सामना बखूभी ढंग से करने वाली भाजपा इस चुनौती का सामना किस तरह से करती है।

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