आग का दरिया है डूब के जाना है

राजनीति दूर से भले चमकदार नजर आती है, लेकिन नजदीक खड़े लोगों को किन-किन लपटों से जूझना पड़ता है, यह जानना है तोभाजपा के पदाधिकारियों से पूछ भर लीजिए। दिल का गुबार ऐसे फूटता है, मानो यह बाढ़ पूरी सियासत को ही बहा ले जाएगी।

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मध्य प्रदेश में चुनाव संचालन की कमान अपने हाथ में लेने के बाद केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने पार्टी के कई आयोजनों के लिए समयबद्ध कार्यक्रम दिए है। इसके बाद से सांसत में आए पदाधिकारी समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर काम करें तो कैसे। मोर्चा-मंडल के हाल किसी से छुपे नहीं हैं। उनकी सामान्य बैठक ही नहीं हो पाती है। उधर, विधानसभा क्षेत्रों में कार्यालय शुरू करने के लिए अभी जगह की तलाश भी नहीं हो पाई है। पदाधिकारी चिंता में हैं कि आग के दरिया को डूब के पार करने की हिम्मत जुटाएगा कौन।

मालवा-निमाड़ पर फोकस

केंद्रीय गृह मंत्री के दौरे को भले ही दो सप्ताह बीत चुके हैं, पर उनके दौरे को लेकर चर्चाओं का दौर अभी भी जारी है। उनके दौरे की जानकारियां धीरे-धीरे बाहर आ रही है। अब यह तो तय हो गया है कि प्रदेश में विधानसभा चुनाव की पूरी कमान शाह के हाथों में ही रहेगी। उन्हें यह भी पता है कि पिछले चुनाव में मालवा-निमाड़ की हार ने ही भाजपा को सत्ता से दूर कर दिया था। इस बार वे इसी इलाके पर पूरा फोकस कर रहे हैं।

अपने दौरे के समय वे मालवा-निमाड़ के दावेदारों की कुंडली और यहां के समीकरणों की पूरी जानकारी साथ ले गए हैं। इसके अलावा वे यह भी पता कर गए हैं कि कब कौन हारा और कब जीता। वे यहां पार्टी नेताओं को स्पष्ट संदेश देकर गए हैं कि चुनाव में किसी भी हाल में 2018 जैसी स्थिति नहीं बनना चाहिए।

अफसरों के करीबियों को चिंता

कर्नाटक चुनाव के रिजल्ट का इम्पैक्ट मध्यप्रदेश में दिखना शुरू हो गया है, खासकर भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर। शिवराज सरकार ने भ्रष्ट अधिकारियों व कर्मचारियों के खिलाफ वर्षों से लंबित मामलों में मुकदमा चलाने की अनुमति देने की प्रक्रिया तेज कर दी है।

वहीं कई जांच के दायरे में है। इसमें जितने भी अफसरों के नाम सामने आए है,उनमें कई ऐसे है,जो पूर्व में उज्जैन में पदस्थ रहे है। ऐसे में उन अफसरों के करीब रहने वालों को चिंता होने लगी है। कुछ अफसर सेवानिवृत्त हो चुके है और कई पदों पर बने हुए है।

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