Advertisement

पतंगबाजी करें, पर मौत की डोर से दूर रहे

पेंच लड़े, गले नहीं कटे, देशी मांझे से मनाए मकर संक्रांति का त्यौहार

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

Advertisement

खूब ऊंची पतंग उड़े। खूब आसमान में पेंच लड़े। बस किसी के गले न कटे। शहर मौत की उस डोर दूर रहे जो गला, गाल, नाक, होठ ही नहीं काटती, जान भी ले लेती हैं। खुशियों के त्योहार में खतरनाक मांझे का क्या काम..।

 

चाइना के जानलेवा मांझे से पतंगबाजी ने देशभर में कई निर्दोष लोगों की जान ली हैं। उज्जैन भी उससे अछूता नहीं है। गत वर्ष तत्कालीन गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने इस पर सख्ती बरती और डोर पर प्रतिबंध के साथ-साथ पुलिस को भी मुस्तैद किया था। पुलिस ने छतों पर जाकर भी कार्रवाई की थी। उज्जैन में तो ऐसी डोर बेचने वाले की दुकान और घर तक जमीदोंज किया था। पुलिस ने चायना डोर को लेकर इस बार भी काफी हद तक सख्ती रखने का प्रयास किया, लेकिन इस बार पुलिस की मुस्तैदी में विलंब हुआ है।

Advertisement

वैसे देखा जाए तो चायना डोर का यह मसला अब पुलिस प्रशासन के दायरे से ज्यादा सामाजिक सरोकार का भी है। उत्सव तो हम आप मनाते हैं। पतंग-मांझा हमारे बच्चे, बेटे, भाई, पति लाते हैं। हमें ही इसे रोकने की शुरुआत करनी होगी। हम कब तक पुलिस के भरोसे रहेंगे। गले तो आप-हमारे लोगों के कटते रहे है। हम उम्मीद कर रहे हंै पुलिस से। वर्दी का खौफ होता तो मौत का कारोबार करने वाले दुकानदारों के हौसले इतने बुलंद होते कि वे प्रदेश में प्रतिबंधित चाइना मांजे को बेच लेते? मौत की जिम्मेदार चायना डोर के कारोबारियों से अधिक दोष तो हमारा ही है न? हम दुकानदार से जो मांगेंगे, तो वह देगा ही।

जब हर घर में ही चायना डोर का विरोध होगा तो फिर मजाल है कि यह बाजार में बिक जाए। बाजार तो बिकवाली पर ही टीका है। आप खरीदोगे नहीं, तो माल बिकेगा ही नहीं। इस मकर संक्रांति पर समाज ही संकल्प लें कि मौत के मांझे से त्योहार नहीं मनाएंगे। छतें तो आपकी ही है न, आप तय कर लें कि आपकी छत से मौत के मांझे से कोई भी पतंग नहीं, उड़ेगी तो मतलब नही उड़ेगी। खूब पतंगबाजी हो। खूब पेंच लड़े, लेकिन गले किसी के नहीं कटे। इसके लिए आपको ही संकल्प लेना होगा।

Advertisement

@शैलेष व्यास

Related Articles