गजलांजलि साहित्यिक संस्था की संगोष्ठी

By AV News

डाकिया अब नहीं जानता अपने इलाके के लोगों को…

उज्जैन। लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की हार नहीं होती। गज़़लांजलि की काव्य-संगोष्ठी हिन्दी भाषा के सशक्त हस्ताक्षर रहे सोहनलाल द्विवेदी की रचना के पाठ से प्रारम्भ हुई। 1 मार्च को उनकी जयन्ती थी। गोष्ठी में स्थानीय शायर विजयसिंह साकित ने अपनी गज़़ल वक्तों हालत न जीने देते, हमको जज़्बात न जीने देते पढ़ी। वहीं आशीष ‘अश्क’ द्वारा मुझ पर गज़़लें लिखकर तुम गाते फिरते हो लेकिन मैं, जीवन की सांसें लिखकर भी देखों चुप रह जाती हूं, गज़़ल पढ़ी।

अवधेश वर्मा द्वारा जन सामान्य के लोभ पर रचना औरों से करना अपेक्षा, कारण बनता निराशा का पढ़ी। विनोद काबरा द्वारा साधनजन्य आनन्द अन्तत: दु:ख में बदल जाता है रचना का पाठ किया। डॉ. अखिलेश चौरे ने तरन्नुम में गज़़ल जि़न्दगी रोज़ मेरा इम्तिहान लेती है, एक भरता नहीं और ज़ख्म नया देती है सुनाई। दिलीप जैन द्वारा डाक से चिठ्ठियों के बन्द प्रवाह पर रचना डाकिया अब नहीं जानता अपने इलाके के लोगों को पढ़ी। डॉ. श्रीकृष्ण जोशी की अध्यक्षता में सम्पन्न गोष्ठी में डॉ. विजय सुखवानी, सत्यनारायण ‘सत्येन्द्र’, अशोक रक्ताले एवं आरिफ़ अफज़़ल ने भी काव्य-पाठ किया।

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