नगर निगम और कितनी बलि लेगा

कुत्तों का बढ़ता जा रहा है आतंक, मर रहे हैं लोग
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घटनाएं बढ़ती जा रही हैं, हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं अधिकारी

नसंबदी का हवाला देकर कब तक बचते रहेंगे जिम्मेदार
अक्षरविश्व न्यूज उज्जैन। शहर में कुत्तों का आतंक बढ़ता जा रहा है। कोई गली, मोहल्ला और कॉलोनी सुरक्षित नहीं है। हर दिन कुत्तों के काटने की खबर आ रही है। हाल ही में इन कुत्तों ने जीते जागते लोगों की जिंदगी पर मौत की मोहर लगा दी। नगर निगम के अधिकारी हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। विपक्ष भी मौन है। सवाल यह है कि आखिर होगा क्या? शहर डरा हुआ है। गरबा उत्सव की रौनक बढ़ गई है। महिलाएं और युवतियां रात में घर लौट रही हैं। इनमें डर समाया हुआ है। नगर निगम से जुड़े कतिपय अधिकारियों का कहना है गाइडलाइन हमें रोक रही है।
‘‘सोनू मेरा सहारा बनने वाला था। मेरी खुशियां लुट गईं। जीवन का सहारा तो गया, साथ अपने पीछे दर्द छोड़ गया। साहब, आज मेरे सोनू को काटा है, कल किसी और बच्चे को काटेंगे। इन कुत्तों का इलाज कीजिए। मौत का यह सिलसिला कब चलता रहेगा।’’
अब तक मां के कान में गूंज रही बेटी की आखिरी आवाज
इंसिया पिता मुस्तफा लोहावाला 8 वर्ष निवासी कमरी मार्ग केडीगेट सेंटपाल स्कूल में कक्षा दूसरी की छात्रा थी। कल उसका हिंदी का अंतिम पेपर था। बेटी परीक्षा देकर घर लौटी। खाना खाया और घर के बाहर खेलने चली गई। घर में इंसिया की मां जहांबिया लोहावाला किचन में काम कर रही थीं। पुरुष अपने अपने काम से गए थे। दोपहर 2 बजे के आसपास इंसिया भागते हुए घर की तरफ आई। वह घर के सामने आकर चिल्लाई मां मुझे बचाओ कुत्ता पीछे पड़ गया है। जहांबिया किचन से मेन गेट तक आई तब तक इंसिया बेहोश हो चुकी थी। परिजन उसे तत्काल अस्पताल लेकर गए जहां डॉक्टर ने बच्ची को मृत घोषित कर दिया।
साहब, जिसके घर मौत होती है वही जानता है
गणेश नगर में रहने वाला मनोज शर्मा ऑटो चला कर अपने परिवार का पेट पालता है। नागझिरी क्षेत्र में उसके १७ वर्षीय बेटे सोनू को कुत्ते ने काट लिया। सोनू की हालत ने उसे तोड़ कर रख दिया। वह बेटे को लेकर भटकता रहा। उसके सामने ही घर का चिराग बुझ गया। उसे कोई मदद नहीं मिली। वह बोला साहब, जिसके आंगन में मौत दस्तक देती है वही जानता है कि मातम क्या होता है। मेरा सत्रह साल का बेटा चला गया।
भाई के सदमे में मां भी चल बसी
अली अजगर कागजी 5 जुलाई की सुबह कलालसेरी से दरगाह जा रहे थे। उनकी एक्टिवा के पीछे कुत्ते पड़े। उन्होंने घबरा कर वाहन की स्पीड बढ़ाई और नाली में जा गिरे। सिर में गंभीर चोंटे लगी। परिजनों ने निजी अस्पताल में भर्ती कराया। 3 अगस्त को वह जिंदगी की जंग हार गए। उनकी दो बेटियां, माता-पिता और भाई जैसे तैसे स्वयं को संभाल रहे हैं। इधर मां रानीबाई सदमा बर्दाश्त नहीं कर सकीं। बेटे की मौत के 45 दिन बाद उनका भी इंतकाल हो गया। भाई जुल्फिकार और 85 वर्षीय पिता अब्दुल हुसैन कुत्तों की वजह से हुई अली अजगर की मृत्यु की घटना को याद कर आज भी रोते रहते हैं। उनका कहना है कि प्रशासन को और कितनी मौतों का इंतजार है, कब यह समस्या खत्म होगी।
आंखों में आंसू और सांत्वना देने वालों का आना जाना
कुत्ते की वजह से जान गंवा चुकी बच्ची इंसिया के घर शनिवार सुबह गमगीन माहौल था। परिवार के सभी सदस्य सदमे में थे। आंखों में आंसू लिए उसकी यादों में खोई मां बेटी के स्कूल बैग को देखकर रो रही थी, पिता अपनी बेटी के कपड़ों को देखकर बिलख रहे थे। सांत्वना देने वाले भी सुबह से आने लगे। जैसे तैसे अपने आपको संभालकर परिजन कुछ बात करते, लेकिन आंखों से आंसू छलक जाते। अक्षर विश्व के माध्यम से मुस्तफा ने प्रशासन से यही मांग की है कि जो मेरी बेटी के साथ हुआ वह किसी दूसरे की बेटी के साथ न हो। आवारा कुत्तों के कारण और कितने लोग अपनी गंवाएंगे। सिलसिला कम थमेगा।









