वैदिक मंत्रोच्चार के बीच संभाली विक्रम विवि कुलगुरु की कुर्सी

प्रो. अर्पण भारद्वाज ने कार्यभार ग्रहण किया
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अक्षरविश्व न्यूज उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय में सोमवार को प्रो. अर्पण भारद्वाज ने ३२वें कुलगुरु के तौर पर पदभार ग्रहण कर लिया। वैदिक मंत्रोच्चार के साथ पूजन-अर्चन के बाद कुर्सी संभाली। इसके पहले प्रो. भारद्वाज ने महाकाल मंदिर अन्य देवस्थानों पर पूजन-अर्चन किया। विवि पहुंचने पर विक्रमादित्य शिल्प पर माल्यार्पण किया। विवि परिसर में बड़ी संख्या में शिक्षक और विद्याार्थियों ने ढोल के साथ पुष्पवर्षा कर स्वागत किया। पदभार ग्रहण के दौरान निवृत्तमान कुलगुरु प्रो. अखिलेश कुमार पांडेय, कुलसचिव अनिल कुमार शर्मा व विवि अधिकारी मौजूद थे।

आईपीएस भी रह चुके हैं
विश्वविद्यालयों में कुलपति के तौर उच्च शिक्षा के विद्वानों को नियुक्त करने की परंपरा है,लेकिन विक्रम विवि सहित प्रदेश के अन्य विश्वविद्यालयों में कई मर्तबा नौकरशाहों को कुलपति नियुक्त किया जा चुका है। विक्रम विवि की बात करें तो यहां पर आइपीएस (इंडिया पुसिल सर्विस) के रिटायर्ड अधिकारी भी कुलपति रहें है। विक्रम विश्वविद्यालय में 32 वें कुलगुरु (पूर्व में कुलपति संबोधन) की पदस्थाना के साथ विवि के अब तक के अध्याय में एक नया पन्ना दर्ज होने जा रहा है। विवि के अध्याय को देखा जाए तो इसकी स्थापना के साथ यहां पूर्णकालिन कुलपति की पदस्थापना नहीं हुई थी।
विवि में सबसे पहले कुलाधिपति/शासन की ओर से डॉ.बूलचंद को ऑफिसर ऑफ स्पेशल ड्यूटी (ओएसडी) को पदस्थ किया गया था। इनका कार्यकाल 31.8.1956 से 30.04.1957 तक रहा। इसके बाद डॉ.माताप्रसाद कुलपति बने। विक्रम विवि में के कुलपति पद को कई विद्वानों से सुशोभित किया है। शासन एक बार रिटायर्ड आयपीएस कृष्णकुमार दवे को विवि की बागडोर सौंप चुका है। वे 29.01.1981 से 02.091982 तक इस पद पर रहे। जानकारों का कहना है कि किन्ही कारणों के चलते डॉ.पीएन कवठेकर ने कुलपति पद छोड़ दिया था। कार्यवाहक के तौर पर डॉ.एमपी चौरसिया को कुलपति पद की जिम्मेदारी दी गई। डॉ.चौरसिया एक की दिन 28.01.1981 को इस पद पर रहे। शासन ने रिटायर्ड आयपीएस दवे को यह दायित्व दिया।
एक माह पहले ही बदला पद नाम
सीएम डॉ. मोहन यादव का मानना है कि कुलगुरु संबोधन में आत्मीयता, स्नेह और सम्मान का भाव भी निहित है। इसी क्रम में प्रदेश सरकार ने ’कुलपति’ को ‘कुलगुरु’ कहे जाने के लिए प्रस्ताव जुलाई 2024 में पास किया था। विवि अधिनियम में संशोधन कर सितंबर २०२४ में अधिसूचना जारी की। इसमें कहा गया कुलपति की जगह ‘कुलगुरु’ शब्द का प्रयोग किया जाएगा।









