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आर्य ही थे सरस्वती सिंधु सभ्यता के जनक…!

सरस्वती सिंधु नदी के किनारों पर पल्लवित हुई भारत की प्राचीनतम सभ्यता का आर्यों से क्या संबंध था? यह एक ऐसा प्रश्न है जो 100 वर्षों से भारतीय इतिहास में सर्वाधिक चर्चित रहा है। मूल रूप से तो इस प्रश्न का उत्तर पुरातात्विक उत्खननों व उसके अध्ययन में निहित है। विगत तीन दशकों में हुई नवीन खोजों ने इस प्रश्न के उत्तर का मार्ग प्रशस्त करा है।

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मानव सभ्यता का प्राचीनतम ग्रंथ जो ऋग्वेद के नाम से प्रसिद्ध है, आर्यों का ही ग्रंथ है। ऋग्वेद के अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है की आर्यों की बसाहट वर्तमान समय में लुप्त हो चुकी सरस्वती नदी व सिंधु नदी के किनारों पर ही अवस्थित थी। कई इतिहासकारों का ऐसा मत है की आर्यों का समाजपूर्ण रूपेण ग्रामीण समाज था, परंतु यह तथ्य उल्लेखनीय है कि ऋग्वेद में ग्राम शब्द से कई अधिक बार नगर शब्द का उल्लेख है। ऋग्वेद के ही छठे मंडल के 46वें सूक्त में एक ऐसे घर की कामना की गई है जो ईंटों का बना हो। इस प्रकार के घर तो उस काल में केवल सरस्वती व सिंधु नदी के किनारों पर ही अवस्थित थे। आर्य कोई ग्रामीण संस्कृति के वाहक नहीं थे, उनकी सभ्यता में तो नगर व ग्राम दोनों का ही अस्तित्व था।

 

हम सब जानते हैं की यज्ञ पूजा आर्यों के धर्म का एक प्रमुख अंग था। यहां यह बात उल्लेखनीय है कि इसी सभ्यता के सबसे बड़े पुरास्थल राखीगढ़ी (हरियाणा) से 20वीं शताब्दी के अंतिम दशक में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को कई यज्ञवेदियां उत्खनन में प्राप्त हुई थीं। इन यज्ञवेदियों की तिथि वर्तमान समय से 4500 वर्ष पूर्व की है। यह अवशेष इस बात को कहते हैं की राखीगढ़ी व इस विशाल सभ्यता में निवासरत लोग वैदिक परम्परा के अनुयायी थे जिसका संबंध आर्यों से है।

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यह तो सर्वविदित है की आर्यों ने द्रुतगामी वाहन के तौर पर अश्व का उपयोग किया था। सरस्वती सिंधु सभ्यता के कई पुरास्थलों से हमें अश्व की हड्डियां व मृण्मूर्तियां प्राप्त हुई हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की उत्खनन विवर्णिकाओं के अनुसार सुरकोटदा, लोथल, रंगपुर, राणाघुंडई, शिकारपुर, राखीगढ़ी, कुणाल आदि पुरास्थलों से अश्व के साक्ष्य विभिन्न स्वरूपों में प्राप्त हुए हैं। अत: यह कहना की सरस्वती सिंधु सभ्यता में अश्व विद्यमान नहीं था तथा इस आधार पर उस सभ्यता को आर्यों से अलग कर देना तथ्यपरक नहीं है।

इस सभ्यता में अश्व उपलब्ध था तथा इसके पर्याप्त पुरातात्विक प्रमाण हमारे पास उपलब्ध हैं। राखीगढ़ी से प्राप्त योनि आकार की यज्ञ वेदी (साभार-भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग) कुछ इतिहासकारों का यह मत था की सरस्वती सिंधु सभ्यता के पतन के पश्चात आर्य मध्य एशिया से भारत में आए थे पूर्ण रूपेण पूर्वाग्रह से ग्रसित है। अमेरिका के दो प्रसिद्द मानव वैज्ञानिकों ने अपने शोध के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है की भारत में उत्तर पश्चिम क्षेत्र में वर्तमान समय से 6500 वर्ष पूर्व से 2800 वर्ष पूर्व के मध्य इस क्षेत्र में कोई डेमोग्राफिक डिसरप्शन हुआ ही नहीं है।

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अत: कुछ विद्वानों का ऐसा कहना की आज से 3500 वर्ष पूर्व आर्य नामक लोग मध्य एशिया से भारत में आए थे वैज्ञानिक रूप से तथ्यहीन ही है। इतना ही नहीं सिनौली (बागपत) से उत्खनन में मिले 4000 वर्ष पूर्व के काष्ठ व ताम्र निर्मित रथ ने आर्य आगमन या आक्रमण के मिथक के ताबूत में अंतिम कील ठोकने का कार्य किया है। पूर्व में ऐसा कहा जाता था की 3500 वर्ष पूर्व आर्य ही भारत में रथ लेकर आए थे।

उपरोक्त पुरातात्विक विवरण इस मत को बल प्रदान करते हैं कि भारत की प्राचीनतम सरस्वती सिंधु सभ्यता के जनक व उसमे निवासरत लोग वैदिक परम्पराओं का अनुसरण करने वालेआर्य ही थे। भारतीय समाज के पूर्वज आर्यों को उस सभ्यता से अलग रखना व ऐसा कहना की वे तो मध्य एशिया से आए थे वैज्ञानिक और पुरातात्विक तथ्यों को दरकिनार करने जैसा है।

@शुभम केवलिया सहायकआचार्य (इतिहास) शहीदभगतसिंहमहाविद्यालय (दिल्ली विश्वविद्यालय)

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