MRP के नाम पर झूठ नहीं बोल सकेंगे, नया फॉर्मूला लाने की तैयारी

नईदिल्ली, एजेंसी। सरकार अधिकतम खुदरा मूल्य प्रणाली में बदलाव लाने की योजना बना रही है। इसका उद्देश्य खुदरा वस्तुओं की कीमतों को ग्राहकों के लिए अधिक पारदर्शी बनाना है।
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यह प्रस्ताव अभी प्रारंभिक चरण में है और केंद्रीय उपभोक्ता मामलों का विभाग विभिन्न हितधारकोंं के साथ बातचीत कर रहा है। मामले से जुड़े आधिकारिक सूत्रों ने यह जानकारी दी। सरकार इस बात पर विचार कर रही है कि एमआरपी को लागत और विपणन खर्च से जोडऩे के लिए तय मानक बनाए जाएं या नहीं।
विशेष रूप से आवश्यक वस्तुओं, पैकेट बंद खाद्य पदार्थ और रोजमर्रा के उपभोग वाले उत्पादों के लिए ये दिशा-निर्देश लागू हो सकते हैं। सूत्रों के मुताबिक, विभाग ने हाल ही में इस संबंध में उद्योग संगठनों, उपभोक्ता संगठनों और कर अधिकारियों के साथ बैठक कर संभावित सुझावों पर चर्चा की थी।
जीएसटी के कारण अब बदलाव की है जरूरत
एमआरपी से जुड़े मामलों पर कानूनन मेट्रोलॉजी एक्ट, 2009 के तहत कार्रवाई होती है, लेकिन यह कानून एमआरपी निर्धारण का फॉर्मूला तय करने का अधिकार नहीं देता। जीएसटी लागू होने के बाद कराधान प्रणाली बदल गई है। पहले कर एमआरपी पर लगता था, लेकिन अब लेनदेन मूल्य पर लगाया जाता है, जिससे एमआरपी निर्धारण में कंपनियों को ज्यादा छूट मिल गई है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि मूल्य निर्धारण को पारदर्शी बनाने के लिए एमआरपी नियंत्रण के बजाय पहले से मौजूद संस्थाओं जैसे प्रतिस्पर्धा आयोग या जीएसटी निगरानी प्रणाली को मजबूत किया जाए। वहीं, उद्योग जगत का मानना है कि एमआरपी पर नियंत्रण से बाजार की स्वायत्तता प्रभावित होगी। उन्होंने कहा कि आवश्यक वस्तुओं जैसे दवाओं को छोडक़र अन्य उत्पादों पर मूल्य नियंत्रण व्यावहारिक नहीं है।
क्या है प्रस्ताव
इस कवायद का मकसद कीमत नियंत्रित करना नहीं, बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि एमआरपी उचित लागत-आधारित मार्जिन पर आधारित हो। एक फॉर्मूला तैयार किया जा सकता है ताकि एमआरपी ऐसी हो, जो उपभोक्ताओं के लिए सस्ती और निर्माताओं के लिए लाभकारी हो। सरकार चाहती है कि एमआरपी को निर्माण लागत और व्यापारिक व्यय से जोडक़र तय किया जाए ताकि छूट
के नाम पर गुमराह करने वाली रणनीति पर रोक लगे।
बाजार में कीमतों का भ्रम जाल
फिलहाल, खुदरा विक्रेताओं को उत्पाद की अधिकतम कीमत के रूप में एमआरपी तय करने की छूट है, लेकिन निर्माता कंपनियों को यह स्पष्ट करने की आवश्यकता नहीं होती कि यह एमआरपी किस आधार पर तय की गई है। इस कारण कई बार उपभोक्ताओं को 50त्न या अधिक की छूट देकर भ्रमित किया जाता है। बैठक में यह मुद्दा उठा कि जब कोई उत्पाद 5,000 की एमआरपी पर बिकने के बजाय 2,500 में बेचा जाता है, तो यह सवाल उठता है कि इतना अधिक एमआरपी क्यों लिखी गई थी। विक्रेता 2,500 में भी लाभ कमा रहा है, तो असली कीमत क्या थी? सरकार यही भ्रम समाप्त करना चाहती है।