ललित ज्वेल. उज्जैन पुराने घर को नई साजसज्जा के साथ बंगले में बदलने का सपना देखते वरिष्ठ कांग्रेसजन…..!
उज्जैन। विधानसभा चुनाव हेतु कांग्रेस ने उज्जैन उत्तर एवं दक्षिण सहित जिले की सातों विधानसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं। इसी के साथ कांग्रेस के पुराने नेताओं ने शतरंज की बिसात पर जमी धूल को थपथपाकर हटाना शुरू कर दिया है।
जैसे-जैसे धुल साफ हो रही है, पुरानी यादों का सफर भी शुरू हो गया है। उन्ही यादों को सहेजने के साथ नए सपनों को बुनने का काम भी पुराने इन कारीगरों ने शुरू कर दिया है। इसकी एक वजह भी है। कांग्रेस की पुरानी और नई पीढ़ी के बीच पिछले 20 सालों में दो पीढिय़ां भाजपा की परछाई बन गई। एक पीढ़ी उस समय युवा थी और प्रोढ़ हो गई वहीं दूसरी पीढ़ी युवा होते-होते विचारों की धारा में एकतरफा बह गई। ऐसे में पुराने कांग्र्रेसी चर्चा में बस इतना ही कहते हैं……एक नई धारा बनाना है। दिन बहुत कम है लेकिन पर्याप्त है। भाजपा के लम्बे शासनकाल में वोटों का धु्रवीकरण भी हुआ है। वहीं अंदर ही अंदर नीतियों/विचारधारा की कट्टरता से भी विरोध पनपता रहा है। बस, बदलाव ही इसका पहला और आखिरी पढ़ाव है। यदि यह बात हर घर, हर मतदाता के पास पहुंच जाए तो बहुत कुछ हो सकता है। कांग्रेस पर यदि पिछले 70 सालों के शासनकाल में बूढ़ा होने का आरोप लगता है तो भाजपा भी युवा नहीं रह गई।
पुराने कांग्रेसी प्रत्यक्ष चर्चा में स्वयं के नाम को प्रकाशित न करने का आग्रह करते हुए अपनी बात आगे बढ़ाते हैं….उज्जैन जिले की राजनीति में कांग्रेस पार्टी ही ऐसी रही जो शहर,जिले के हर गली-मौहल्ले में अपनी पैठ बनाए हुए थी। एक समय था जब जनसंघ का झण्डा उठानेवाले लोगों को अंगुलियों पर गिना जाता था। वे आगे इसलिए बढ़े क्योंकि वे संघनिष्ठ रहने में भरोसा करते थे। कांग्रेस इसलिए पिछड़ी क्योंकि आजादी के बाद से ही सत्ता की चासनी में नेता डूबे रहे। इसलिए उन पर प_ावाद हावी होता चला गया। जनता सशक्त विपक्ष नहीं होने के कारण कांग्रेस को जीताती रही और प_ावाद चला रहे नेता इस दंभ में रहे कि सबकुछ ठीक चल रहा है इसलिए चरण वंदना का दौर चलने दो। लेकिन जनता के यह सब गले नहीं उतर रहा था। इसलिए प_ावाद को किनारे करके जो नया मिला,उसे चुन लिया। यही नया भाजपा थी,जो एक बार सत्ता में आई तो आज भी जमी हुई है।
पाटी के एक वरिष्ठ चर्चा में कहते हैं-पिछले चुनाव में जनता ने कांग्रेस के गले में फूलों का हार पहनाया तो प_ावाद एक बार फिर हावी हो गया। फूलवालों को सत्ता दे बैठे ओर खुद आज तक हाथ पर हाथ धेरे बैठे हैं। अब अनुभव कहता है कि आखिरी मौका मिला है जनता के बीच जाने का। अभी नहीं को कभी नहीं….। इसके बाद शायद ही कांग्रेस को अगले चुनाव में राजनीति की इतनी अनुभवी पीढ़ी मिले। इस चुनाव में कांग्रेस की पुरानी पीढ़ी के अनुभवों का यदि लाभ युवा पीढ़ी ने ले लिया तो ही सीख पाएंगे जनता का मन पढऩे की कला। वरना आनेवाले पांच वर्षो में शिप्रा में बहुत पानी बह जाएगा और ढह जाएंगे सत्ता पाने के सारे सपने..।
(क्रमश: …)