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Crop Diversification: भारत में क्रॉप डायवर्सिफिकेशन के लाभ और चुनौतियां 
Sunday, October 1, 2023
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Crop Diversification: भारत में क्रॉप डायवर्सिफिकेशन के लाभ और चुनौतियां 

क्रॉप डायवर्सिफिकेशन (Crop Diversification) एक एग्रीकल्चर प्रैक्टिस है जिसमें किसान अपनी खेती में विभिन्न प्रकार के फसलों का प्रोडक्शन करता है। यह विभिन्न फसलों की प्रजातियों, उपयोगिताओं और मौसम की जरूरतों को ध्यान में रखकर की जाती है। किसानों के लिए क्रॉप डायवर्सिफिकेशन के कई फायदे है।

क्रॉप डायवर्सिफिकेशन के मुख्य लाभ 

विविधताएँ: राज्य और क्षेत्र मिट्टी के प्रकार, बारिश के पैटर्न, तापमान और बाजार की मांग के आधार पर फसलों को उगाते हैं। उदाहरण के लिए, चावल मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल और पंजाब जैसे राज्यों में उगाया जाता है, जबकि कपास की खेती गुजरात और महाराष्ट्र में प्रमुख है। 

क्रॉप रोटेशन: इसमें एक समय पर एक ही जमीन पर विभिन्न फसलों की खेती को बारी-बारी से करना शामिल है। यह मिट्टी के पोषक तत्वों की कमी को रोकने, कीट और रोग को कम करने और मिट्टी के स्वास्थ्य और उर्वरता में सुधार करने में मदद करता है। 

आय स्थिरता: क्रॉप डायवर्सिफिकेशन किसानों के लिए आय स्थिरता में योगदान देता है। कई फसलों की खेती करके, किसान एक ही फसल की कीमतों में उतार-चढ़ाव पर अपनी निर्भरता कम कर सकते हैं। यह पूरे साल संतुलित आय सुनिश्चित करता है और फसल की विफलता या बाजार में गिरावट से जुड़े जोखिमों को कम करता है। 

पोषण सुरक्षा: पोषण संबंधी कमियों को दूर करने और संतुलित आहार को बढ़ावा देने के लिए क्रॉप डायवर्सिफिकेशन जरुरी है। यह फलों, सब्जियों और दालों को शामिल करके फसलों को ग्रामीण और शहरी दोनों आबादी के लिए पौष्टिक बनाने में मदद करता है । 

क्लाइमेट: जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों के साथ, कृषि में लचीलापन लाने के लिए क्रॉप डायवर्सिफिकेशन जरुरी है। विभिन्न प्रकार की फसलों की खेती करके, किसान बदलती जलवायु परिस्थितियों, जैसे सूखा, बाढ़, या गर्मी की लहरों के अनुकूल हो सकते हैं। 

भारत सरकार ने इसको बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम) जैसे विभिन्न कार्यक्रमों और योजनाओं की शुरुआत की है। 

इन कार्यक्रमों का उद्देश्य 

किसानों को विविध फसल प्रणालियों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना, 

उन्नत बीजों के उपयोग को बढ़ावा देना, 

आवश्यक बुनियादी ढाँचा प्रदान करना और 

कृषि उत्पादकता और आय को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना। 

कैसे कर सकते है फसल को डाइवर्सिफाइड?

इंटरक्रॉपिंग: इंटरक्रॉपिंग का अभ्यास करें, जिसमें एक ही खेत में एक साथ दो या दो से अधिक फसलें उगाना शामिल है।

कई मौसम और किस्में: विभिन्न फसलों की जल्दी पकने वाली, मध्य पकने वाली और देर से पकने वाली किस्मों को चुनें। यह रणनीति एक कंपित फसल सुनिश्चित करती है और बाजार के जोखिम को कम करती है। 

विशेष फसलें और महंगी फसलें: विशेष फसलों या हाई वैल्यू वाली फसलों की खेती करने पर विचार करें जिनकी बाजार में मांग है। उदाहरणों में जड़ी-बूटियाँ, मसाले, औषधीय पौधे, जैविक उत्पाद, या अनूठी विशेषताओं वाले फल और सब्जियाँ शामिल हैं। 

पशुधन एकीकरण: फसल की खेती के साथ पशुधन पालन को एकीकृत करें। पशुधन डेयरी, पोल्ट्री या पशुपालन गतिविधियों के माध्यम से ज्यादा आय होती है। 

छोटी शुरुआत करें और आगे बढ़ें: अपनी जमीन के एक हिस्से में विविधता लाकर या अलग-अलग फसलों के लिए एक भूखंड समर्पित करके शुरुआत करें। 

निगरानी और मूल्यांकन: उपज, बाजार की मांग, कीट, रोग और भविष्य की योजनाओं का रिकॉर्ड रखें।

क्रॉप डायवर्सिफिकेशन की चुनौतियां 

मानसून पर निर्भरता: भारत की खेती योग्य भूमि का लगभग 55% मानसून पर निर्भर है। 

खंडित भूमि जोत: बड़े पैमाने पर एडवांस टेक्नोलॉजी का उपयोग करना मुश्किल हो जाता है। 

अपर्याप्त बुनियादी ढांचा: ग्रामीण सड़कों, बिजली, परिवहन, संचार की कमी डायवर्सिफिकेशन  के लिए प्रमुख बाधाएं हैं।

ज्ञान और प्रशिक्षण का अभाव: भारतीय किसान अपर्याप्त रूप से प्रशिक्षित हैं। इसके अलावा, किसानों में लगातार और बड़े पैमाने पर निरक्षरता है। 

भूमि और जल संसाधनों का ज्यादा उपयोग: क्रॉप डायवर्सिफिकेशन संसाधनों की खपत को बढ़ा सकता है, जिससे पर्यावरण और कृषि की स्थिरता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। 

कुल मिलाकर भारत में क्रॉप डायवर्सिफिकेशन स्थायी कृषि, किसानों की आजीविका बढ़ाने, खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने और पर्यावरणीय चुनौतियों के खिलाफ लचीलापन बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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