दिया तले अंधेरा-3 : विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन, साख दांव पर क्यों..?
20 करोड़ में एक भी ऐसा काम नहीं, जो ‘ए’ ग्रेड को बचाता
सात वर्षों में एक भी उपलब्धि नहीं, नतीजा सामने हैं
उज्जैन। कल्पना नहीं थी कि नैक मूल्यांकन में विक्रम विश्वविद्यालय का प्रदर्शन इतना खराब होगा। ए++ ग्रेड के सपने देखने वालों के लिए ए ग्रेड को बरकरार रखने के भी लाले पड जाएंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि सात वर्षों से विश्वविद्यालय की उपलब्धियों का खाता खाली हैं। इसके विपरीत इसका ढांचा चरमरा गया हैं।
नतीजा सभी के सामने हैं। विक्रम को ए ग्रेड होने से करीब 20 करोड़ रूपए का अनुदान राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान से मिला है। इस राशि से ऐसा कोई काम नहीं हुआ, जो विश्वविद्यालय कि ए ग्रेड बचाने में सहायक होते। विक्रम विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (नैक) ने बी++ ग्रेड दी है। सात साल बाद नैक टीम यहां निरीक्षण के लिए पहुंची थी।
इसके पहले 16 नवंबर 2015 को नैक मूल्यांकन के बाद विक्रम विश्वविद्यालय ए-ग्रेड मिली थी। यह ग्रेड वर्ष 2001 में नैक रिव्यू कमेटी की सिफारिश, अनुशंसा पर 2005 के बाद नए मानक/ स्टैण्डर्ड के अनुरूप पाठ्यक्रम, अनुसंधान, परामर्श और विस्तार करने की क्षमता की जांच, अनुसंधान करने की अच्छी सुविधा, संस्थान के संगठन-प्रबंधन के विस्तार, छात्र और संस्थान के मध्य अनुशासन, इंस्टीटूशन्स के इंफ्रास्ट्रक्चर, शिक्षा प्रदान करने के समय आवश्यक उपकरण, शैक्षणिक स्टाफ की उपलब्धता, शैक्षणिक, अकादमिक और अधोसंरचना के ऐतिहासिक विकास कार्य देखने के बाद दी गई थी।
विक्रम विश्वविद्यालय दो साल में कुछ भी हासिल नहीं कर पाया
2015 के बाद फिर से वर्ष 2020 में नैक मूल्यांकन होना था, लेकिन कोरोना के कारण करीब दो साल का एक्सटेंशन मिल गया। 2015 से 2020 तक विक्रम के कर्ताधर्ताओं ने नैक के मूल्यांकन के स्तर का कुछ भी अर्जित नहीं किया। ‘ए’ ग्रेड में दो साल का एक्सटेंशन मिलने के बाद प्रस्तुत एसएसआर रिपोर्ट में विक्रम के पास कोई उपलब्धि नहीं थी। कई मापदंडों की कमी रही। जो उपलब्धियां या उपलब्धता थी उनका का सही प्रेजेंटेशन नहीं किया गया।
इसलिए नैक मूल्यांकन में पिछड़ा विक्रम
15 सालों में शिक्षकों की भर्ती नहीं की।
अध्ययन शालाओं,पाठ्यक्रम की संख्या तो बढ़ाई लेकिन उसके अनुरूप फैकल्टी यानी स्टाफ नहीं रखा गया।
छात्र सहयोग व विकास, शोध, विस्तार के साथ ही विदेशी छात्रों की उपस्थिति अभाव।
अकादमिक कैलैंडर का पालन नहीं।
शैक्षणिक सत्र में निरंतरता नहीं,परीक्षा और परिणाम में देरी।
सात साल के दौरान पठन-पाठन-शोध और प्रकाशन पर ध्यान नहीं। एक प्रकार से शोध और प्रकाशन नहीं हुए।
एनएसयूआई ने उच्च शिक्षा मंत्री से इस्तीफे की मांग की
विक्रम विवि की ग्रेड घटने पर एनएसयूआई ने उच्च शिक्षा मंत्री से इस्तीफे की मांग की है। एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष आशुतोष चौकसे ने सोशल मीडिया पर जारी बयान में कहा कि उच्च शिक्षा मंत्री के गृह क्षेत्र के विश्वविद्यालय की नैक ग्रेडिंग घटना न केवल चिंताजनक हैं, बल्कि आश्चर्य का विषय हैं क्योंकि मंत्री जी इस विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र हैं और अब इसी क्षेत्र और विभाग के हैं।
ऐसे में विश्वविद्यालय की नैक ग्रेड में गिरावट की जिम्मेदारी लेते हुए नैतिकता के आधार पर उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव को इस्तीफा देना चाहिए। मंत्री के इस्तीफे की मांग की मांग को लेकर दीपावली के बाद एनएसयूआई प्रदर्शन-आंदोलन करेगी।