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धन की पोटली वाली कुबेर प्रतिमा की नाभि पर धनतेरस पर भक्त लगाते हैं इत्र

अक्षरविश्व खास…सांदीपनि आश्रम में विराजित भगवान कुबेर की 1100 साल प्राचीन प्रतिमा

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एक हाथ में सोम पात्र, दूसरा वर मुद्रा में, कंधे पर है धन की पोटली

अक्षरविश्व न्यूज उज्जैन। मंदिरों की नगरी उज्जैन में एक मंदिर ऐसा भी हैं जहां भगवान शिव के साथ कुबेर भी विराजते हैं। खास बात यह है कि पाषाण से बनी 1100 साल पुरानी परमारकालीन इस अतिप्राचीन प्रतिमा के एक हाथ में सोम पात्र है तो दूसरा हाथ वर मुद्रा में है। कंधे पर धन की पोटली है। तीखी नाक, उभरा पेट, शरीर पर अलंकार आदि से कुबेर का स्वरूप काफी आकर्षक लगता है। धन त्रयोदशी अर्थात् धनतेरस पर यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचकर भगवान कुबेर की नाभि में इत्र लगाते हैं और धन, विद्या के साथ सुख-समृद्धि की कामना की। मान्यता है कि यहां कुबेर की नाभि में इत्र लगाने से समृद्धि प्राप्त होती है।

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दरअसल, मंगलनाथ रोड स्थित भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षा स्थल महर्षि सांदीपनि आश्रम में श्री कंडेश्वर महादेव मंदिर है। इसी के गर्भगृह में भगवान शिव के साथ कुबेर भी विराजित हैं। इस बार 18 अक्टूबर को धनतेरस है, इस दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पूजन करने के लिए पहुंचेंगे। भगवान शिव का यह मंदिर 84 महादेव में से 40वें नंबर पर आता है। बता दें कि देशभर में कुबेर की गिनी-चुनी प्रतिमाओं में से 2 मप्र में हैं। एक विदिशा तो दूसरी प्रतिमा उज्जैन में है।

कृष्ण को सौंपी श्री, तब से जुड़ा श्रीकृष्ण
मंदिर से जुड़ी मान्यता की बात करें तो जब कृष्ण महर्षि सांदीपनि के आश्रम से शिक्षा पूरी कर जाने लगे तो गुरु दक्षिणा देने के लिए कुबेर धन लेकर आए थे। इस पर गुरु माता ने कृष्ण से कहा कि मेरे पुत्र का शंखासुर नामक राक्षस ने अपहरण कर लिया है। उसे मुक्त कराकर ले आओ, यही गुरुदक्षिणा होगी।

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कृष्ण ने गुरु पुत्र को राक्षस से मुक्त करा कर गुरु माता को सौंप दिया। इसी से प्रसन्न होकर गुरु माता ने कृष्ण को ‘श्री’ सौंपी तभी से भगवान कृष्ण के नाम के साथ ‘श्री’ जुड़ गया और वे श्रीकृष्ण कहलाए। इसके बाद श्रीकृष्ण तो द्वारका चले गए लेकिन कुबेर आश्रम में ही बैठे रह गए। मंदिर में भी कुबेर की प्रतिमा बैठी मुद्रा में ही है। कुंडेश्वर महादेव के जिस मंदिर में कुबेर विराजे हैं उसके गुंबद में श्रीयंत्र बना हुआ है जो कृष्ण को श्री मिलने की पुष्टि करता है।

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