सख्त अनुशासन से ही डायबिटीज हो सकती है कंट्रोल

उज्जैन। इंदौर के सीनियर मधुमेह एवं हार्मोन रोग विशेषज्ञ डॉ. संदीप जुल्का का कहना है कि डायबिटीज, प्री-डायबिटीज को कंट्रोल करने के लिए सख्त अनुशासन आवश्यक है। इसके लिए मोटापे पर नियंत्रण जरूरी है। डायबिटीज तीन तरह की होती है।
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प्री-डायबिटीज और मोटापा
प्री-डायबिटीज: जब ब्लड शुगर सामान्य से ज़्यादा हो लेकिन डायबिटीज की सीमा तक न पहुंचे तो उसे प्री-डायबिटीज कहते हैं।
फास्टिंग शुगर – 100-125
खाने के बाद शुगर- 140-200
एचबीए१ सी – 5.7 से 6.4 फीसदी
यह स्थिति भविष्य में डायबिटीज होने का संकेत है। इसलिए जीवनशैली में बदलाव बहुत जरूरी है।
मोटापा: जब शरीर का वजऩ जरुरत से ज़्यादा हो तो यह डायबिटीज, ब्लड प्रेशर और हार्ट डिजीज का खतरा बढ़ा देता है। यदि बीएमआई (बॉडी मॉस इंडेक्स) 25 से अधिक है, तो आप मोटे की श्रेणी में आते हंै।
संतुलित आहार, नियमित व्यायाम और वजन नियंत्रण से प्री-डायबिटीज को डायबिटीज में बदलने से रोका जा सकता है।
टाइप 1, टाइप 2 और गर्भावस्था डायबिटीज
टाइप 1 में शरीर इंसुलिन बनाना बंद कर देता है। इसका एकमात्र उपाय इंसुलिन है
टाइप 2 में इंसुलिन का असर कम होता है। इसे खानपान और जीवन शैली में परिवर्तन कर नियंत्रित किया जा सकता है।
गर्भावस्था डायबिटीज की शुरुआत गर्भधारण के 20 हफ्ते के बाद होती है। इसे दवाइयों और जरूरत होने पर इंसुलिन से नियंत्रित किया जा सकता है ।
डायबिटिक कीटोएसिडोसिस
अगर शरीर में इंसुलिन बहुत कम हो जाए, तो शरीर ऊर्जा के लिए वसा जलाना शुरू करता है, जिससे कीटोन बॉडीज़ बनती हैं और खून अम्लीय (एसिडिक) हो जाता है। इसे डायबिटिक कीटोएसिडोसिस कहते हैं।
मुख्य लक्षण
तेज़ प्यास लगना
बार-बार पेशाब आना
उल्टी, पेट दर्द
सांस में फल जैसी गंध
थकान या बेहोशी
यह एक आपात स्थिति है, इसमें तुरंत अस्पताल में भर्ती कर इलाज देने की जरूरत होती है।
डॉन और सोमोजी फिनॉमेनन
सुबह हार्मोनल बदलाव से शुगर बढ़े तो इसे डॉन फिनॉमेनन और रात में शुगर गिरने के बाद सुबह बढ़े तो इसे सोमोजी फिनॉमेनन कहा जाता है। दोनों की पहचान और उपचार अलग होते हैं।
एचबीए1 सी — तीन महीनों की औसत शुगर का आइना यह जांच यह बताती है कि पिछले तीन महीनों में आपकी शुगर का औसत स्तर क्या रहा। हर तीन महीने में यह जांच करवाना जरूरी है।
डायबिटीज कंट्रोल के 5 तरीके
1. रोज़ाना 30 मिनट व्यायाम करें।
2. हेल्दी डाइट लें — मीठा कम करें, सब्जिय़ां ज़्यादा खाएं।
3. डॉक्टर की सलाह से दवा या इंसुलिन लें।
4. ब्लड शुगर और एचबीए१सी की नियमित जांच कराएं।
5. तनाव कम रखें और नींद पूरी लें।
– डॉ. संदीप जुल्का सीनियर एंडोक्राइनोलॉजिस्ट इंदौर










