हिंदुओं में अनेक पर्व और त्योहार मनाए जाते हैं। इनमें कार्तिक मास की अमावस्या को दिवाली का पर्व मनाया जाता है। यह पर्व असत्य पर सत्य की ओर अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है। इस दिन भगवान राम चौरह वर्ष का वनवास पूरा करके अयोध्या लौटे थे। वहीं कृष्ण भक्तों के अनुसार राजा नरकासुर का वध भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन किया था। दीपावली खुशियों का त्योहार है।
इस दिन मां लक्ष्मी के पूजन का विशेष महत्व है। दिवाली के दिन माता की पूजा करने से धन, वैभव, सुख और संपत्ति की प्राप्ति होती है। इस पर्व को कालरात्रि भी कहते हैं, क्योंकि तंत्र-मंत्र और यंत्रों की सिद्धि के लिए यह रात काफी उपयोगी मानी जाती है। दीपावली संस्कृत का शब्द है। जिसका अर्थ है ‘दीपकों की पंक्ति’।
लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त
लक्ष्मी पूजा तिथि: गुरुवार, 4 नवंबर 2021
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त: रात 06.09 से रात्रि 08.04 तक
प्रदोष काल: रात 05.34 से रात्रि 08.10 तक
वृषभ काल: 06.09 अपराह्न से 08.04 अपराह्न तक
अमावस्था तिथि शुरू – सुबह 06.03 बजे से
अमावस्था तिथि समाप्त – दोपहर 02.44 बजे तक (5 नवंबर)
पूजन सामग्री
कुंकुम, कलावा, धूप, अगरबत्ती, कर्पूर, केसर, चंदन, चावल, 5 जनेऊ, रुई, अबीर, गुलाल, बुक्का, सिंदूर, 10 पान डंठल सहित, 20 साबुत सुपारी, पुष्पमाला, दूर्वा, इत्र की शीशी, छोटी इलायची, लवंग, मिठाई, फल, पुष्प, दूध, दही, घी, शहद, शक्कर, पांच पत्ते (अशोक, पीपत, बड़ आदि के) हल्दी की गांठ, गुड़, सरसों, कमल गट्टा, चांदी का सिक्का, हवन सामग्री का पैकेट, गिरी गोला-2, नारियल-2, लक्ष्मीजी की मूर्ति या फोटो, गणेश की मूर्ति या तस्वीर, सिंहासन, वस्त्र, कलम, बही खाते, ताम्र कलश या मिट्टी का कलश, पीला कपड़ा आधा मीटर, सफेद कपड़ा आधा मीटर, लाल कपड़ा आधा मीटर, सिक्के आदि।
इन बातों का रखें ध्यान
दिवाली के दिन घर से सभी सदस्य प्रातः उठकर प्रसन्न मन से घर, बरामदा आदि शुद्ध जल से धोएं। हर कमरे में साफ-सफाई करें। व्यापारी को दुकान की सफाई और नए बही-खाते आदि स्थापित करना चाहिए। इस दिन खाता बही, अकाउंट बुक में कुंकुम से स्वस्तिक बना कर पूजा करना चाहिए। पूजन सायकांल में ही संपन्न किया जाता है। लक्ष्मी पूजा स्थिर लग्न में करें। दिवाली के दिन सुबह उठकर आदि से निवृत्त होकर एक मिट्टी के दीपक में सिंदूर और घी मिलाकर लेप बनाए और अपने पूजा स्थान या दुकान में स्वस्तिक चिन्ह, या शुभ-लाभ, श्रीं महालक्ष्मयै नमः शब्द लिखें।
पूजन विधि
भूमि को शुद्ध करके नवग्रह यंत्र बनाएं। साथ ही तांबे के कलश में गंगाजल, दूध, दही, शहद, सुपारी, सिक्के और लौंग डालकर उसे लाल वस्त्र से ढककर एक कच्चा नारियल कलावे से बांधकर रखें। जहां नवग्रह यंत्र बनाया है। आसान पर बैठकर स्वस्ति वाचन करें। भगवान गणेश का स्मरण कर अपने दाहिने हाथ में गंध, अक्षत, पुष्प, दुर्वा, द्रव्य और जल लेकर गणेश, मां लक्ष्मी, कुबेर आदि देवी-देवताओं के पूजा का संकल्प करें। सबसे पहले लंबोदर और माता लक्ष्मी की पूजन करें। फिर षोडशमातृका पूजा और नवग्रह पूजन करके महालक्ष्मी आदि देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना करें।
दीपक पूजन
दिवाली के दिन ग्यारह, इक्कीस या अधिक तेल के दीपक प्रज्ज्वलित करके एक थाली में रखकर पूजा करें। इसके बाद महिलाएं अपने हाथ से सुहाग सामग्री लक्ष्मी को अर्पित करें। दूसरे दिन स्नान के बाद पूजा करके उस सामग्री को माता लक्ष्मी का प्रसाद मानकर प्रयोग करें। इससे लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। कार्यक्षेत्र में सफलता और आर्थिक सफलता के लिए श्रीसूक्त का पाठ करना चाहिए।
श्री लक्ष्मी आरती
ऊं जय लक्ष्मी अम्बे,मैया जय आनंद कन्दे।
सत् चित् नित्य स्वरूपा,सुर नर मुनि सोहे। ऊं जय
कनक समानन कलेवर, दिव्याम्बर राजे। मैया
श्री पीठे सुर पूजित, कमलासन साजे।। ऊं जय
तुम हो जग की जननी, विश्वम्भर रूपा। मैया
दुख दारिद्रय विनाशे, सौभाग्यं सहिता।। ऊं जय
नाना भूषण भाजत, राजत सुखकारी। मैया
कानन कुण्डल सोहत, श्री विष्णु प्यारी।।
ऊं जयउमा तुम्हीं, इन्द्राणी तुम सबकी रानी। मैया
पद्म शंख कर धारी, भुक्ति, मुक्ति दायी। ऊं जय
दुख हरती सुख करती, भक्तन हितकारी। मैया
मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी। ऊं जय
अमल कमल घृत मातः, जग पावन कारी। मैया
विश्व चराचर तुम ही, तुम विश्वम्भर दायी।। ऊं जय
कंचन थाल विराजत, शुभ्र कपूर बाती। मैया
गावत आरती निशदिन, जन मन शुभ करती।। ऊं जय
मंत्र पुष्पांजलि
दोनों हाथों में पुष्प रखें और इस मंत्री को बोले:
ऊं यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्ः।
तेहना कं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः।।
ऊं राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे।
स मे कामन् कामकामाय मह्यं कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु।।
कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नमः।
ऊं स्वस्ति साम्राज्यं भौज्यं स्वराज्यं वैराज्यं परमेष्ठयं
राज्यं महाराज्यमाधिपत्यमयं समन्तपर्याची स्यात्
सार्वभौमः सार्वायुषान्तादापरार्धात्। पृथिव्यै समुद्रपर्यन्ताया एकरादिति
तदप्येष श्लोकोभीगितो मरूतः परिवेष्टारो मरूत्तस्यावसन् गृहे।
आविक्षित्स्य कामप्रेर्विश्वेदेवाः सभासद इति।
ऊं विश्वतश्चक्षुरत विश्वतोमुखो विश्वतोबाहुरूत विश्वतस्पात्
सं बाहुभ्यां धमति सं पत्रत्रैर्घावाभूमी जययन् देव एकः।।
महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्।
ऊं या श्रीः स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मीः।
पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धिः। श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा
तां त्वां नताः स्म परिपालय देवि विश्वम्।।
ऊं महालक्ष्म्यै नमः मंत्रपुष्पांजलिं समर्पयामि।
हाथ में लिए पुष्प लक्ष्मी पर बरसा दें। प्रदक्षिणा कर साष्टांग प्रणाम करें।